केंद्र सरकार ने आज सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) को सूचित किया है कि कोविड -19 टीकाकरण (Covid-19 Vaccination) अभियान में न्यायाधीशों, वकीलों और कानूनी बिरादरी के अन्य सदस्यों को प्राथमिकता देना भेदभावपूर्ण होगा. एक जनहित याचिका पर केंद्र ने एक नोटिस का जवाब देते हुए कहा कि पेशे के आधार पर टीकाकरण के लिए किसी को सूचीबद्ध करना राष्ट्र के हित में नहीं है. PIL में जजों, वकीलों, कोर्ट के कर्मचारियों और कानूनविदों को प्राथमिकता के तौर पर पहले टीका देने की मांग की गई थी.
केंद्र ने अपने एफिडेविट में कहा, "कोविड-19 टीकाकरण अभियान वकीलों के लिए एक अलग वर्ग के आधार पर नहीं चलाया जा सकता है. पेशे के आधार पर टीकाकरण को प्राथमिकता देना राष्ट्रीय हित में नहीं है, इससे देश में भेदभाव पैदा होगा."
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भारत में जनवरी में व्यापक टीकाकरण अभियान की शुरुआत की गई थी, जिसके पहले चरण में लगभग 3 करोड़ फ्रंटलाइन हेल्थ वर्कर्स, सुरक्षाकर्मियों और सफाईकर्मियों को टीके लगाए जा चुके हैं. फिलहाल दूसरा चरण चल रहा है. 1 मार्च से शुरू हुए दूसरे चरण के तहत 60 साल से ऊपर के बुजुर्गों या 45 साल से ऊपर के ऐसे लोंगों को टीके लगाए जा रहे हैं जो किसी डायबिटीज, कैंसर जैसी किसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं.
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पिछले महीने अरविंद सिंह नाम के एक शख्स द्वारा दायर जनहित याचिका में कहा गया था कि "पुलिस, सुरक्षा बल, राजस्व अधिकारी - इन सभी लोगों को प्राथमिकता दी गई है लेकिन ये सभी लोग, जो कुछ भी करते हैं, न्यायिक प्रणाली में परिणत होते हैं. जबकि वकील, न्यायिक कर्मचारी, न्यायाधीश वैक्सीन के लिए प्राथमिकता सूची में शामिल नहीं हैं."