राज्यों ने बांट दिए प्रतिबंधित दवाओं के भी लाइसेंस: CDSCO की जांच में बड़ा खुलासा

ड्रग कंट्रोलर ने सभी राज्यों के औषधि नियंत्रकों से कहा है कि वे ऐसे एफडीसी के लिए अपने लाइसेंस प्रक्रिया की समीक्षा करें और नियमों के प्रावधानों का कड़ाई से पालन करने पर जोर दें.

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नई दिल्ली:

केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) की जांच में बड़ा खुलासा हुआ है. इसमें कहा गया है कि कई राज्यों ने प्रतिबंधित दवाओं के लाइसेंस भी बांट दिए. राज्यों ने लाइसेंस देते वक्त न नियम को देखा और न ही इसकी जांच की. केंद्र सरकार ने जारी आदेश में राज्यों की इस लापरवाही का खुलासा किया है. साथ ही इसे सार्वजनिक स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बताया गया है.

केंद्र ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि किसी भी अफसर ने मंजूरी देने से पहले 2019 के नियमों को नहीं पढ़ा, न ही जानने की कोशिश भी की. बाजार में मौजूद प्रतिबंधित एफडीसी दवाओं की शिकायत पर संज्ञान लेने के बाद केंद्र सरकार की जांच में पूरा मामला सामने आया है.

12 से भी ज्यादा राज्यों ने दिए लाइसेंस

  • बुखार, मधुमेह, बीपी, कोलेस्ट्रॉल और फैटी लीवर के लिए इस्तेमाल ये दवाएं बाजार तक पहुंची
  • देश के कई राज्यों ने बिना जांच और नियमों की अनदेखी कर प्रतिबंधित दवाओं के लाइसेंस जारी कर दिए
  • कई राज्यों ने फार्मा कंपनियों को लाइसेंस देने से पहले इन दवाओं की सुरक्षा और प्रभाव के बारे में जानना तक जरूरी नहीं समझा

इसका खामियाजा यह रहा कि करीब तीन दर्जन से ज्यादा तरह की दवाएं भारतीय बाजार में पहुंच गईं, जिनका इस्तेमाल बुखार, मधुमेह, बीपी, कोलेस्ट्रॉल और फैटी लीवर जैसी परेशानियों के लिए किया जा रहा है.

यह पूरा मामला फिक्स डोज कॉम्बिनेशन यानी निश्चित खुराक संयोजन (FDC) दवाओं से जुड़ा है. जिन दवाओं को दो या उससे अधिक सक्रिय दवाओं को मिश्रित करके बनाया जाता है वह एफडीसी की श्रेणी में आती हैं.

फार्मा कंपनियों का मानना है कि उन्हें यह लाइसेंस राज्य के प्राधिकरण से प्राप्त हुआ है. इसलिए प्रतिबंधित दवाओं का उत्पादन करने पर उन्होंने कोई अपराध नहीं किया है.

11 अप्रैल को जारी आदेश में ड्रग कंट्रोलर डॉ. राजीव सिंह रघुवंशी ने बिना जांच दवाओं का लाइसेंस बांटने को सार्वजनिक स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बताया. उन्होंने लिखा है कि राज्यों के दवा नियामक संगठनों ने कुछ एफडीसी दवाओं के उत्पादन और बिक्री की अनुमति देने से पहले नियमों की जानकारी नहीं ली. साथ ही मंजूरी से पहले इन दवाओं की सुरक्षा और प्रभावकारिता को भी नहीं जांचा गया.

दरअसल, कुछ एफडीसी दवाएं ऐसी हैं जिन्हें सुरक्षा और प्रभावकारिता का मूल्यांकन किए बिना निर्माण, बिक्री या फिर वितरण का लाइसेंस नहीं दिया जा सकता. इसका औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम 1940 के तहत एनडीसीटी नियम 2019 में प्रावधान भी है, लेकिन केंद्रीय एजेंसी की जांच में पता चला कि लाइसेंस देते समय जिम्मेदार अफसरों ने इन नियमों पर ध्यान तक नहीं दिया.

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ड्रग कंट्रोलर ने साफ तौर पर कहा है कि ऐसे अस्वीकृत एफडीसी को मंजूरी देना सीधे तौर पर रोगी सुरक्षा से समझौता करने जैसा है. रघुवंशी ने सभी राज्यों के औषधि नियंत्रकों से कहा है कि वे ऐसे एफडीसी के लिए अपने लाइसेंस प्रक्रिया की समीक्षा करें और नियमों के प्रावधानों का कड़ाई से पालन करने पर जोर दें.

उन्होंने साफ तौर पर कहा है कि किसी भी एफडीसी दवा का लाइसेंस देने से पहले औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम 1940 के तहत एनडीसीटी नियम 2019 के प्रावधान का अच्छे से अध्ययन करना अनिवार्य है.

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सीडीएससीओ ने सभी राज्यों के लिए जारी आदेश के साथ दवाओं की एक सूची भी भेजी है, जिसमें तकरीबन 35 तरह की एफडीसी दवाएं हैं, जिनके लाइसेंस फार्मा कंपनियों को सौंप दिए गए.

केंद्रीय एजेंसी ने निर्माता कंपनियों से तत्काल लाइसेंस सरेंडर करने के लिए कहा है. साथ ही जिला औषधि निरीक्षक से बाजारों में इन दवाओं की जांच करने के लिए भी कहा गया है.
 

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