क्या 15 वर्ष से अधिक उम्र की मुस्लिम लड़की शादी कर सकती है? SC करेगा जांच

सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार को नोटिस जारी किया है. सुप्रीम कोर्ट ने वकील राजशेखर राव को इस मामले में अमाइकस क्यूरी नियुक्त किया है. इस मामले में अब 7 नवंबर को सुनवाई होगी. 

विज्ञापन
Read Time: 20 mins
NCPCR ने पंजाब और  हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी.
नई दिल्ली:

क्या यौवनावस्था प्राप्त करने वाली 15 साल से अधिक उम्र की मुस्लिम लड़की शादी कर सकती है? सुप्रीम कोर्ट इसका परीक्षण करेगा. SC द्वारा पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले का परीक्षण किया जाएगा. SC ने पंजाब सरकार को नोटिस जारी किया है. सुप्रीम कोर्ट ने वकील राजशेखर राव को इस मामले में अमाइकस क्यूरी नियुक्त किया है.  इस मामले में अब 7 नवंबर को सुनवाई होगी. 

NCPCR की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सवाल उठाया कि क्या हाईकोर्ट ऐसा आदेश दे सकता है?  दरअसल राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR ) ने पंजाब और  हरियाणा हाईकोर्ट के हालिया फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर की है. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि एक 16 वर्षीय मुस्लिम लड़की वैध विवाह में प्रवेश कर सकती है. 

ये भी पढ़ें : Video: सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं इस क्यूट सी बिल्ली के एक्सप्रेशन

हाईकोर्ट ने इस फैसले में मुस्लिम लड़की (16 साल) को सुरक्षा प्रदान की थी, जिसने अपनी पसंद के मुस्लिम लड़के (21 साल) से ​​शादी की थी. अदालत दोनों द्वारा दायर एक प्रोटेक्शन पिटिशन पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने मुस्लिम रीति-रिवाजों और समारोहों के अनुसार शादी की थी. कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत लड़की की उम्र विवाह योग्य है. पहले के फैसलों से यह स्पष्ट है कि एक मुस्लिम लड़की की शादी मुस्लिम पर्सनल लॉ द्वारा शासित होती है. 16 वर्ष से अधिक होने के कारण अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ विवाह में प्रवेश करने के लिए सक्षम है. लड़के की उम्र 21 वर्ष से अधिक बताई गई है. इस प्रकार दोनों याचिकाकर्ता मुस्लिम पर्सनल लॉ द्वारा परिकल्पित विवाह योग्य आयु के हैं. सर दिनशाह फरदुनजी मुल्ला की पुस्तक 'प्रिंसिपल्स ऑफ मोहम्मडन लॉ' के अनुच्छेद 195 के अनुसार, स्वस्थ दिमाग का प्रत्येक मुसलमान, जिसने यौवन प्राप्त कर लिया है, विवाह के अनुबंध में प्रवेश कर सकता है और पन्द्रह वर्ष की आयु पूर्ण करने पर साक्ष्य के अभाव में यौवन माना जाता है."

Advertisement

 NCPCR की याचिका के अनुसार, हाईकोर्ट का फैसला बाल विवाह की अनुमति देता है और यह बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 का उल्लंघन है. याचिका में कहा गया है कि अधिनियम के प्रावधान धर्मनिरपेक्ष हैं और सभी धर्मों पर लागू होते हैं.  ये POCSO एक्ट की भावना के खिलाफ है, जो एक धर्मनिरपेक्ष कानून भी है. कानून के मुताबिक 18 साल से कम उम्र का कोई भी बच्चा वैध सहमति नहीं दे सकता.

याचिका में आगे तर्क दिया गया कि बाल संरक्षण कानूनों को जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देने वाले संविधान के अनुच्छेद 21 के साथ अलग नहीं देखा जा सकता.

Advertisement

Video : मल्लिकार्जुन खड़गे ने कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव के रिजल्ट पर क्या कहा, यहां देखिए

Advertisement
Featured Video Of The Day
Kundarki में Samajwadi Party की हार पर BJP पर लगे आरोप, सपा प्रत्याशी Haji Mohammad Rizwan क्या बोले
Topics mentioned in this article