आपके घर में हर महीने खर्चा कितना होता है? कहां से कितना पैसा आता है? क्या बचत हो रही है या कर्ज़ बढ़ रहा है? इन सबका हिसाब तो आप रखते ही होंगे! अब सोचिए, जब एक घर के खर्चे का इतना बारीकी से हिसाब रखा जाता है, तो पूरे देश की अर्थव्यवस्था का हिसाब-किताब भी रखना पड़ेगा! और यही काम करता है Economic Survey! लेकिन ये सिर्फ़ एक रिपोर्ट नहीं, बल्कि सरकार के कामकाज का असली रिपोर्ट कार्ड होता है! अब सवाल ये है कि Economic Survey से आपको क्या फर्क पड़ता है? ये Budget से पहले क्यों आता है?
इकोनॉमिक सर्वे: ये होता क्या है?
देखिए, अगर Union Budget देश की आमदनी और खर्चे का प्लान है, तो Economic Survey उस Budget का X-Ray होता है! यानी कि इस Survey में बताया जाता है कि पिछले साल देश की आर्थिक सेहत कैसी रही, GDP कितनी बढ़ी या गिरी, महंगाई ने कितनी मार मारी, बेरोज़गारी का क्या हाल रहा, इंडस्ट्री और खेती कैसे चले, एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट में क्या उठा-पटक हुई और देश के पैसों की स्थिति कैसी है! इसमें सिर्फ इसी साल की बात नहीं होती, पिछले कुछ सालों का भी पूरा लेखा-जोखा होता है. इसे Finance Ministry जारी करती है, और इसके पीछे का सबसे बड़ा दिमाग होता है – Chief Economic Advisor (CEA) का। अब ये समझिए कि CEA का रोल डॉक्टर जैसा होता है, जो पूरे देश की अर्थव्यवस्था का चेकअप करके रिपोर्ट तैयार करता है और सरकार को बताता है कि क्या दवा दी जानी चाहिए.
इकोनॉमिक सर्वे के दो बड़े हिस्से
Economic Survey को दो हिस्सों में बांटा जाता है – पार्ट ए और पार्ट बी. Part A यानी देश की आर्थिक सेहत का रिपोर्ट कार्ड! इसमें GDP Growth, Industry Growth, Inflation, Forex Reserves, Export-Import जैसे बड़े-बड़े आर्थिक आंकड़ों की कहानी होती है! सरकार की नीतियां कैसी रहीं? कितना फायदा या नुकसान हुआ? Economic Growth का ट्रेंड कैसा रहा? आगे क्या संभावनाएं हैं? ये सब जानकारियां पार्ट ए में होती हैं. अब बात पार्ट बी की. तो Part B में ये बताया जाता है कि जनता के लिए क्या किया गया? बेरोज़गारी की दर कितनी है? नए रोजगार कितने बने? शिक्षा, स्वास्थ्य, गरीबी, जलवायु परिवर्तन पर सरकार ने कितना खर्च किया? किसानों और छोटे कारोबारियों को क्या मदद मिली? महंगाई का जनता पर क्या असर पड़ा? यानी ये Survey सिर्फ आंकड़ों का खेल नहीं, बल्कि यह बताता है कि आम आदमी की ज़िंदगी पर सरकार की नीतियों का क्या असर पड़ा.
इकोनॉमिक सर्वे बजट से पहले क्यों?
अब ये सवाल ज़रूरी है कि Economic Survey को बजट से ठीक एक दिन पहले ही क्यों लाया जाता है? सबसे पहली वजह तो यही है कि Budget में क्या होने वाला है, उसकी झलक यहीं मिल जाती है! दूसरा ये कि Market और Investors को Budget से पहले संकेत मिल जाता है! तीसरा, सरकार को भी पता चलता है कि किन सेक्टर्स को Budget में ज्यादा फोकस देना चाहिए! और चौथा ये कि जनता को भी समझ आ जाता है कि सरकार की नीतियों से उसका फायदा हो रहा है या नुकसान! अब Budget में सरकार जितनी भी बड़ी घोषणाएं करती है, उसका बेसिक आइडिया इसी Economic Survey से मिलता है! इसे और आसान तरीके से कहूं तो इकोनॉमिक सर्वे वो दस्तावेज़ है जिसे देखकर सरकार बजट में फैसले लेती है! जैसे अगर सर्वे में कहा गया कि किसानों की आमदनी कम हुई है, तो बजट में कृषि पर ज़्यादा पैसा आएगा। या अगर एक्सपोर्ट कमज़ोर है, तो निर्यात को बढ़ावा देने वाली योजनाएं बनेंगी।और इन सबका सीधा असर आपकी जेब पर पड़ता है.
इकोनॉमिक सर्वे का इतिहास
अब थोड़ा इतिहास जान लेते हैं कि पहले क्या होता था? आपको जानकर हैरानी होगी कि पहले इकोनॉमिक सर्वे और बजट दोनों एक साथ ही आते थे. 1950 से 1964 तक यही चलता रहा. लेकिन बाद में सरकार ने इसे अलग कर दिया ताकि Budget बनाने से पहले देश की आर्थिक स्थिति का सही-सही आकलन किया जा सके.
इकोनॉमिक सर्वे कैसे सरकार को आईना दिखाता है?
अब असली मसला यही है कि Economic Survey सिर्फ़ एक रिपोर्ट है या सरकार का असली रिपोर्ट कार्ड? अव्वल तो इससे बेरोज़गारी का सच पता चलता है! सरकार हर बार नए रोजगार की बातें करती है, लेकिन Economic Survey में असली आंकड़े आते हैं कि सच में कितनी नौकरियां पैदा हुईं और कितने लोग बेरोज़गार हुए. दूसरा, इससे महंगाई की असली हकीकत सामने आती है. पेट्रोल-डीजल, खाने-पीने की चीजें, दवाइयां – इन सबकी कीमतें कितनी बढ़ीं या घटीं, इसका सटीक डेटा यहीं मिलेगा. तीसरा, इससे किसानों और कारोबारियों की हालत भी पता चल जाती है. कृषि और MSMEs पर सरकार कितना ध्यान दे रही है, ये भी इसी रिपोर्ट से साफ होता है! चौथा है राजकोषीय घाटा यानी Fiscal Deficit! – सरकार का खर्चा उसकी आमदनी से ज्यादा है या कम? क्या सरकार उधार लेकर काम चला रही है? ये भी पता चल जाता है. और पांचवां, विदेशी निवेश और व्यापार का हाल. यानी बाहर से कितना पैसा आया और भारत का व्यापार कैसा रहा, ये भी Economic Survey से ही पता चलता है.
इस बार के इकोनॉमिक सर्वे से क्या उम्मीदें हैं?
2025 के Budget से पहले आने वाले Economic Survey में कुछ बड़े मुद्दे सामने आ सकते हैं, जैसे:
GDP ग्रोथ रेट: क्या भारतीय अर्थव्यवस्था 7% से आगे बढ़ रही है?
बेरोज़गारी: क्या नए रोजगार बन रहे हैं या हालत और खराब है?
महंगाई: खाने-पीने की चीजों और ईंधन की कीमतों पर क्या रिपोर्ट आएगी?
सरकार की आमदनी: टैक्स और सरकारी कमाई का क्या हाल है?
रुपए की स्थिति: डॉलर के मुकाबले रुपया मजबूत हो रहा है या गिर रहा है?
कृषि और उद्योग: किसानों और बिज़नेस सेक्टर की हालत कैसी है?
पर सबसे बड़ा सवाल: 2025 का सर्वे क्यों है खास? तो बता दें कि इस बार सर्वे की थीम है 'डी-रेगुलेशन' यानी सरकार नियमों को 'ढीला' करेगी. सरकार चाहती है कि बिज़नेस करना आसान हो और कागज़ी दौड़ कम हो.
आखिर इसका आप पर क्या असर पड़ेगा?
अगर आप आम आदमी हैं, तो ये Survey आपको बताएगा कि महंगाई बढ़ेगी या घटेगी? नौकरी मिलने की संभावनाएं कैसी हैं? सरकार किस चीज़ पर ज्यादा खर्च करेगी? अगर आप Investor या बिज़नेसमैन हैं, तो इससे आपको अपने Investments और Business Strategies प्लान करने में मदद मिलेगी. यानी Economic Survey को समझना सिर्फ सरकार के लिए नहीं, बल्कि आपके लिए भी उतना ही ज़रूरी है तो कुल मिलाकर Economic Survey सरकार की असली Performance Report है. ये सरकार के कामकाज का एक Mirror होता है, जो दिखाता है कि देश की Economy किस हाल में है. अब देखना ये होगा कि इस बार Economic Survey कौन-कौन से राज़ खोलता है और क्या Budget 2025 में आम आदमी को कितनी राहत मिलती है. अगर आपको लगता है कि बजट सिर्फ़ टैक्स बढ़ाने-घटाने की बात है, तो गलत समझ रहे हैं! असली गेम तो इकोनॉमिक सर्वे में शुरू हो चुका होता है. अगली बार जब सर्वे आए, तो उसे ज़रूर पढ़ें... क्योंकि ये सिर्फ़ किताब नहीं, आपके भविष्य का ब्लूप्रिंट है.