बृज बिहारी प्रसाद मर्डर में आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला, दो दोषियों को सुनाई आजीवन कारावास की सजा

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि तिवारी और विजय कुमार शुक्ला उर्फ ​​मुन्ना शुक्ला के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) और 307 (हत्या का प्रयास) के तहत आरोप साबित हुए हैं.

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दोषियों को 15 दिन के भीतर आत्मसमर्पण करने को कहा

सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व सांसद सूरजभान समेत 6 लोगों को बरी करने के पटना हाई कोर्ट के फैसले में आंशिक रूप से निरस्त कर दिया. कोर्ट ने मुन्ना शुक्ला समेत दो दोषियों की उम्रकैद की सज़ा मुक़र्रर की. दोनों को 15 दिन के अंदर सरेंडर करने को कहा गया है. पटना हाई कोर्ट ने  इस केस में पूर्व सांसद सूरजभान सिंह, पूर्व विधायक ​​मुन्ना शुक्ला समेत 9 लोगों को बरी कर दिया था. इस आदेश को बृज बिहारी प्रसाद की पत्नी रमा देवी और सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.

पटना हाई कोर्ट के फैसले को किया निरस्त

जज संजीव खन्ना, संजय कुमार और आर महादेवन की पीठ ने सभी आरोपियों को बरी करने के पटना उच्च न्यायालय के फैसले को आंशिक रूप से निरस्त कर दिया और दोषी मंटू तिवारी और पूर्व विधायक शुक्ला को 15 दिन के भीतर आत्मसमर्पण करने को कहा. हालांकि, शीर्ष अदालत ने पूर्व सांसद सूरजभान सिंह समेत छह अन्य आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए उन्हें बरी करने के उच्च न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा.

सजा सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

पीठ ने कहा कि तिवारी और विजय कुमार शुक्ला उर्फ ​​मुन्ना शुक्ला के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) और 307 (हत्या का प्रयास) के तहत आरोप साबित हुए हैं. साथ ही पीठ ने उन्हें 15 दिन के भीतर आत्मसमर्पण करने को कहा. उच्च न्यायालय ने 24 जुलाई 2014 को कहा था कि अभियोजन पक्ष के साक्ष्यों पर गौर करने के बाद सूरजभान सिंह उर्फ ​​सूरज सिंह, मुकेश सिंह, लल्लन सिंह, मंटू तिवारी, कैप्टन सुनील सिंह, राम निरंजन चौधरी, शशि कुमार राय, मुन्ना शुक्ला और राजन तिवारी संदेह का लाभ पाने के हकदार हैं.

इसने अधीनस्थ अदालत के 12 अगस्त 2009 के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें उन्हें दोषी ठहराया गया था और सभी आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की पूर्व सांसद एवं बृज बिहार प्रसाद की पत्नी रमा देवी और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने साक्ष्य के अभाव में आरोपियों को बरी करने के उच्च न्यायालय के 2014 के आदेश को चुनौती दी थी.

(भाषा इनपुट्स के साथ)

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