क्या वारदात का इंतजार है, तभी जागेंगे... महाराष्ट्र सरकार को हाईकोर्ट ने क्यों लगाई तगड़ी फटकार?

हाईकोर्ट में दाखिल रिपोर्ट के मुताबिक, 45,000 से ज्यादा सरकारी और 11,000 से ज्यादा प्राइवेट स्कूलों में CCTV कैमरे नहीं लगे हैं. 25,000 से अधिक सरकारी और 15,000 प्राइवेट स्कूलों में स्टाफ का बैकग्राउंड चेक नहीं हुआ है.

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मुंबई:

बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को महाराष्ट्र सरकार को कड़ी फटकार लगाई. वजह ये रही कि सरकार ने बच्चों की सुरक्षा से जुड़े अपने ही दिशानिर्देश सही तरीके से लागू नहीं किए. मई 2025 में जारी गाइडलाइंस का मकसद था स्कूलों को सेफ जोन बनाना. लेकिन सरकार की कार्रवाई से अदालत बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं हुआ. हाईकोर्ट ने सरकार के लिए कड़े निर्देश जारी किए हैं.

हाईकोर्ट की सख्ती के बाद बनाए थे नियम

दरअसल, पिछले साल बदलापुर के एक स्कूल में दो नाबालिग बच्चियों के साथ यौन शोषण की वारदात के बाद ये मुद्दा उठा था. हाईकोर्ट ने मई में इस मामले पर स्वतः संज्ञान लिया. इसके बाद राज्य के स्कूल शिक्षा एवं खेल विभाग ने एक जीआर (सरकारी आदेश) जारी किया. इसमें सभी स्कूलों को सुरक्षा के सख्त इंतज़ाम करने के निर्देश दिए गए थे.

'आदेश महज कागजों तक सीमित न रहें: कोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट की जस्टिस रेवती मोहिते देरे और जस्टिस संदीश बी. पाटिल की खंडपीठ ने शुक्रवार को इस मामले पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से कहा, “क्या आप किसी और घटना का इंतजार कर रहे हैं, क्या तभी जागेंगे? अपने ही सरकारी स्कूलों में आपने कदम नहीं उठाए हैं.” अदालत ने साफ कहा कि आदेश सिर्फ कागजों पर नहीं होने चाहिए बल्कि जमीन पर भी दिखने चाहिए.

सुरक्षा इंतजामों में बड़ी खामियां

अदालत में दाखिल रिपोर्ट के मुताबिक, शिकायत पेटी लगाने और सुरक्षा समिति बनाने जैसे कुछ इंतजाम किए गए, लेकिन कई अहम उपायों को पूरी तरह नज़रअंदाज़ किया गया.

  • 45,000 से ज्यादा सरकारी और 11,000 से ज्यादा प्राइवेट स्कूलों में अब तक CCTV कैमरे नहीं लगे हैं.
  • 25,000 से ज्यादा सरकारी और 15,000 प्राइवेट स्कूलों में स्टाफ का बैकग्राउंड चेक ही नहीं हुआ.
  • करीब 68,000 स्कूलों में ट्रांसपोर्ट सेफ्टी उपाय जैसे जीपीएस, ड्राइवर की जांच या बसों में महिला अटेंडेंट की व्यवस्था नहीं है.
  • काउंसलिंग, साइबर सेफ्टी, डिजास्टर मैनेजमेंट और रेजिडेंशियल स्कूलों की सुरक्षा की तो समीक्षा तक नहीं हुई.

जज बोले, गलत बयान मत दीजिए

सुनवाई के दौरान सरकारी वकील की तरफ से कहा गया कि पैरेंट्स को व्हाट्सऐप और ईमेल के जरिए नियमों की सूचना दी गई थी. लेकिन अदालत में एमिकस क्यूरी रेबेका गोंसाल्वेस ने साफ कहा कि सभी माता-पिता के पास इन प्लेटफॉर्म्स की सुविधा नहीं है. इस पर जस्टिस देरे ने सख्त लहजे में कहा, “मेरे भाई खुद पैरेंट हैं, उन्हें कोई जीआर नहीं मिला. गलत बयान मत दीजिए... अदालत ने सरकार से कहा कि हमें आपके राजनीतिक या विभागीय झगड़ों से कोई मतलब नहीं है.”

हाईकोर्ट ने दिए ये निर्देश

हाईकोर्ट ने शिक्षा विभाग को आदेश दिया कि हर स्कूल की सुरक्षा व्यवस्था का पूरा ब्यौरा आधिकारिक वेबसाइट पर सार्वजनिक किया जाए ताकि माता-पिता खुद देख सकें कि बच्चों की पढ़ाई जहां हो रही है, वहां कितनी सुरक्षा है. इसके अलावा कोर्ट ने रेजिडेंशियल स्कूल, आश्रमशाला और आंगनवाड़ी जैसे ग्रामीण इलाकों में चल रहे संस्थानों की स्थिति पर भी सवाल उठाए. इस मामले की अगली सुनवाई अब 30 सितंबर को होगी.

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