विवादास्पद फैसला देने वालीं बॉम्बे हाईकोर्ट की जज का कार्यकाल एक वर्ष के लिए बढ़ाया गया

बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच की जज पुष्पा गनेडीवाला ने अपने 19 जनवरी को पास किए गए आदेश में कहा था कि किसी भी छेड़छाड़ की घटना को यौन शोषण की श्रेणी में रखने के लिए घटना में 'यौन इरादे से किया गया स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट' होना चाहिए.

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बॉम्बे हाईकोर्ट की जज जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला का कार्यकाल एक साल के लिए बढ़ा दिया गया है. (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:

यौन उत्पीड़न के दो मामलों में विवादास्पद फैसले सुनाकर चर्चा में आई बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) की जज जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला का कार्यकाल एक साल के लिए बढ़ा दिया गया है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उनके कार्यकाल को दो साल के लिए विस्तार देने की सिफारिश की थी. उनका कार्यकाल शुक्रवार को खत्म हो रहा था. अब नया कार्यकाल 13 फरवरी से प्रभावी होगा. गनेडीवाला द्वारा दिए गए दो विवादास्पद फैसलों के बाद पिछले महीने उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम ने अतिरिक्त न्यायाधीश गनेडीवाला को स्थायी न्यायाधीश नियुक्त किए जाने के प्रस्ताव को दी गई अपनी मंजूरी वापस ले ली थी. 

बता दें कि बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच की जज पुष्पा गनेडीवाला ने अपने 19 जनवरी को पास किए गए आदेश में कहा था कि किसी भी छेड़छाड़ की घटना को यौन शोषण की श्रेणी में रखने के लिए घटना में 'यौन इरादे से किया गया स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट' होना चाहिए. उन्होंने कहा था कि नाबालिग को ग्रोप करना यानी टटोलना, यौन शोषण की श्रेणी में नहीं आएगा. 

बता दें कि एक सेशन कोर्ट ने  39 साल के एक शख्स को 12 साल की बच्ची का यौन शोषण करने के अपराध में तीन साल की सजा सुनाई थी, जिसे गनेडीवाला ने संशोधित किया था. बॉम्बे उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ की न्यायमूर्ति पुष्पा गनेडीवाला ने 19 जनवरी को पारित एक आदेश में कहा था कि यौन हमले का कृत्य माने जाने के लिए ‘‘यौन मंशा से त्वचा से त्वचा का संपर्क (Skin to Skin Contact) होना'' जरूरी है. महज छूना भर यौन हमले की परिभाषा में नहीं आता है. न्यायमूर्ति गनेडीवाला ने एक सत्र अदालत के फैसले में संशोधन किया, जिसने 12 वर्षीय लड़की का यौन उत्पीड़न करने के लिए 39 वर्षीय व्यक्ति को तीन वर्ष कारावास की सजा सुनाई थी. 

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ये था दूसरा फैसला
इसके तहत नाबालिग लड़की का हाथ पकड़ना और पैंट की ज़िप खोलना, POCSO के तहत यौन हमला नहीं  है. ये IPC की धारा 354 के तहत  यौन उत्पीड़न के तहत अपराध है.जस्टिस  पुष्पा की एकल पीठ ने 50 वर्षीय एक व्यक्ति द्वारा 5 साल की लड़की से यौन कृत्य मामले में ये फैसला दिया था. निचली अदालत ने इसे पोक्सो की धारा 10 के तहत यौन हमले के तहत उसे 5 साल के सश्रम कारावास और 25,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई थी .

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लड़की की मां ने शिकायत दी थी कि आरोपी की पैंट की ज़िप खुली हुई थी, और उसकी बेटी के हाथ उसके हाथ में थे. अदालत ने यौन हमले की परिभाषा में " शारीरिक संपर्क" शब्द की व्याख्या करते हुए कहा था कि इसका अर्थ है "प्रत्यक्ष शारीरिक संपर्क-यानी यौन प्रवेश के बिना स्किन- टू -स्किन- कॉन्टेक्ट." इसके बाद ये मामले सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में लाए गए थे.

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उच्च न्यायालय ने कहा, चूंकि आरोपी ने लड़की को निर्वस्त्र किए बिना उसके छूने की कोशिश की, इसलिए इस अपराध को यौन हमला नहीं कहा जा सकता है और यह भारतीय दंड संहिता की धारा 354 के तहत महिला के शील को भंग करने का अपराध है. धारा 354 के तहत जहां न्यूनतम सजा एक वर्ष की कैद है, वहीं पोक्सो कानून के तहत यौन हमले की न्यूनतम सजा तीन वर्ष कारावास है. (भाषा इनपुट्स के साथ)

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