बिहार में मतदाता सूची के SIR कराने का मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट , चुनाव आयोग के आदेश को दी गई चुनौती

इस याचिका में कहा गया है कि चुनाव आयोग का ये आदेश मनमाना है. इससे लाखों मतदाता अपने मताधिकार से वंचित हो सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट से इस मामले में दखल देने की भी मांग की गई है. 

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चुनाव आयोग के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई याचिका

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  • बिहार में चुनाव से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है.
  • चुनाव आयोग के आदेश को एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने चुनौती दी है.
  • याचिका में आयोग के आदेश को मनमाना बताते हुए लाखों मतदाताओं के वंचित होने का खतरा बताया गया है.
  • चुनाव आयोग ने 2003 के बाद से मतदाता सूची की अद्यतन प्रक्रिया को आवश्यक बताया है.
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नई दिल्ली:

बिहार में चुनाव से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी SIR का मुद्दा अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग के इस आदेश को चुनौती दी गई है. आयोग के खिलाफ ये याचिका एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने दाखिल की है. इस याचिका में कहा गया है कि चुनाव आयोग का ये आदेश मनमाना है. इससे लाखों मतदाता अपने मताधिकार से वंचित हो सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट से इस मामले में दखल देने की भी मांग की गई है. 

याचिकाकर्ता ने अनुमान लगाया है  कि 3 करोड़ से अधिक मतदाता, विशेष रूप से एससी, एसटी और प्रवासी श्रमिकों जैसे हाशिए के समूहों से, SIR आदेश में निर्धारित सख्त आवश्यकताओं के कारण अपने वोट के अधिकार से वंचित हो सकते हैं.याचिका के अनुसार, बिहार से हाल की रिपोर्ट, जहां SIR प्रक्रिया पहले ही शुरू हो चुकी है, संकेत देती है कि ग्रामीण क्षेत्रों और हाशिए के समुदायों के लाखों मतदाताओं के पास उनसे मांगे जा रहे दस्तावेज़ नहीं हैं.

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क्या है SIR

अब आप सोच रहे हैं होंगे कि आखिर ये SIR है क्या? जिसे लेकर इतना बवाल मचा हुआ है. ये है बिहार विधानसभा चुनाव से पहले निर्वाचन आयोग की विशेष प्रक्रिया Special Intensive Revision,जिसे संक्षेप में SIR यानी सर कहा जा रहा है. दरअसल,स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए किसी भी चुनाव से पहले मतदाता सूची को अपडेट किया जाता है जो एक सामान्य प्रक्रिया है,लेकिन चुनाव आयोग ने इस बार 1 जुलाई से मतदाता सूची की विशेष गहन समीक्षा शुरू कर दी है. इसे लेकर विपक्ष सवाल उठा रहा है, नीयत पर शक़ कर रहा है.

चुनाव आयोग ने दी थी ये दलील

चुनाव आयोग की दलील दी थी कि बिहार में मतदाता सूची की गंभीर समीक्षा की ऐसी आख़िरी प्रक्रिया 2003 में हुई थी और उसके बाद से नहीं हुई है. इसलिए ये मुहिम ज़रूरी है. समीक्षा के लिए चुनाव आयोग ने मतदाताओं के लिए एक फॉर्म तैयार किया है, जो मतदाता 1 जनवरी, 2003 की मतदाता सूची में शामिल थे, उन्हें सिर्फ़ ये Enumeration Form यानी गणना पत्र भरकर जमा करना है. उन्हें कोई सबूत नहीं देना होगा. बिहार में ऐसे 4.96 करोड़ मतदाता हैं. चुनाव आयोग ने 2003 की ये वोटर लिस्ट अपनी वेबसाइट पर डाल दी है.

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चुनाव आयोग क्या कर रहा

अब सारा हंगामा 2003 के बाद मतदाता बने लोगों से सबूत मांगने को लेकर है. चुनाव आयोग के मुताबिक 1 जुलाई 1987 से पहले पैदा हुए नागरिकों जो 2003 की मतदाता सूची में नहीं थे, उन्हें अपनी जन्मतिथि और जन्मस्थान का सबूत देना होगा. ऐसे सभी मतदाता आज की तारीख़ में 38 साल या उससे बड़े होंगे.जो लोग 1 जुलाई 1987 से लेकर 2 दिसंबर 2004 के बीच पैदा हुए हैं, उन्हें अपनी जन्मतिथि और जन्मस्थान और अपने माता-पिता में से किसी एक की जन्मतिथि और जन्मस्थान का सबूत देना होगा. ये सभी लोग क़रीब आज 21 से 38 साल के बीच के होंगे. इसके अलावा 2 दिसंबर 2004 के बाद पैदा हुए नागरिकों को अपनी जन्मतिथि और जन्मस्थान और अपने माता-पिता दोनों की ही जन्मतिथि और जन्मस्थान का भी सबूत देना होगा. बस इन ही सबूतों की मांग को लेकर सारा विवाद खड़ा हो गया है कि इतनी जल्दी ये सबूत कहां से लेकर आएं. विपक्ष ने और कई नागरिक संगठनों ने ये सवाल खड़े किए हैं.

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