"आखिरी सैलरी से 119 गुना ज्यादा कमाई": IAS पर अब जांच एजेंसियों का शिकंजा, Paytm से भी कनेक्शन

कई जांच एजेंसियों की तरफ से भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे रमेश अभिषेक(Ramesh Abhishek Corruption Case) पेटीएम के तीन स्वतंत्र डायरेक्टर्स में से एक हैं, जो फिलहाल आरबीआई की जांच के घेरे में है.

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बिहार कैडर के आईएएस अधिकारी रमेश अभिषेक पर भ्रष्टाचार का आरोप.
नई दिल्ली:

भ्रष्टाचार के एक मामले में बिहार कैडर के एक आईएएस अधिकारी रमेश अभिषेक (Bihar IAS Corruption Case) पर जांच एजेंसियों का शिकंजा कस गया है. CBI ने मंगलवार को उनके खिलाफ FIR दर्ज करने के बाद उनके परिसरों की तलाशी ली. जिस मामले का निपटारा उन्होंने सेवा में रहते किया था, रिटायर होने के बाद एक दर्जन से ज्यादा निजी कंपनियों से परामर्श शुल्क के रूप में करोड़ों रुपए लेने का आरोप रमेश अभिषेक पर लगा है. जांच एजेंसी ने उनकी बेटी वेनेसा के खिलाफ भी मामला दर्ज किया है.  सीबीआई, ईडी और लोकपाल उन पर लगे आरोपों की जांच कर रहा है.

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अधिकारी पर आय से अधिक संपत्ति बनाने का आरोप

अधिकारियों के मुताबिक, भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के 1982 बैच के बिहार कैडर के अधिकारी अभिषेक 2019 में DIPPT से सेवानिवृत हुए थे, इसके बाद उन्होंने एक निजी कंपनी में सेवा दी. वह डीआईपीपीटी. में सचिव पद पर रह चुके हैं. उन पर आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने का आरोप है, जिसका ब्यौरा तक उनके पास नहीं है. लोकपाल भी अभिषेक के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के आरोपों की जांच कर रहा है. 

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सीबीआई की तरफ से दर्ज की गई एफआईआर में कहा गया है, "सचिव डीपीआईआईटी या फॉरवर्ड मार्केट कमीशन के अध्यक्ष के पद पर रहते उन्होंने विभिन्न संस्थाओं और संगठनों से परामर्श और पेशेवर शुल्क के रूप में बड़ी रकम वसूली,  जिनके साथ उनका लेनदेन था." ईडी के मुताबिक, अभिषेक ने लोकपाल के सामने एक हलफनामा दायर किया, जिसमें उन्होंने बताया कि सेवानिवृत्ति के बाद 15 महीनों में उन्हें 2.7 करोड़ की फीस मिली, जो "उनकी लास्ट सरकारी सैलरी 2.26 लाख रुपए से 119 गुना ज्यादा "

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16 कंपनियों को फायदा पहुंचाने का आरोप

सीबीआई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ''विभिन्न एजेंसियों की अब तक की जांच से पता चला है कि उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग में सचिव के पद पर रहते हुए अभिषेक ने करीब 16 कंपनियों को फायदा पहुंचाया. '' FIR में कहा गया है कि उन्होंने इस रकम से दिल्ली के पॉश ग्रेटर कैलाश इलाके में सबसे पहले एक घर खरीदा, जिससे उन पर शक गहरा गया. 

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बता दें कि रमेश अभिषेक 22 फरवरी से जुलाई 2019 तक डीपीआईआईटी सचिव के पद पर तैनात थे. इससे पहले 21 सितंबर से जुलाई 2019 तक वह फॉरवर्ड मार्केट कमीशन के अध्यक्ष रहे. साल 2019 में वह DPIIT और निजी कंपनियों से विभिन्न पदों पर सेवानिवृत्त हुए. अभिषेक भी पेटीएम के तीन स्वतंत्र डायरेक्टर्स में से एक हैं जो फिलहाल आरबीआई की जांच का सामना कर रहे हैं. 

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Paytm से रमेश अभिषेक का खास कनेक्शन

एक अधिकारी ने बताया, ''एक स्वतंत्र निदेशक देश के कानूनों का पालन करते हुए हितधारकों के हित में काम करने और निरीक्षण, मार्गदर्शन और स्वतंत्र फैसला देने का काम करता है.'' सूत्रों के मुताबिक, सचिव के रूप में सेवाएं देते हुए रमेश अभिषेक ने कथित तौर पर मूल कंपनी वन 97 कम्युनिकेशंस को आईपीओ लाने में मदद की. वह औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने और व्यापार करने में आसानी के लिए  नीतियां बनाने से भी जुड़े थे. 

एक अधिकारी ने कहा, ''सेवा में रहते हुए, उन्होंने मेक इन इंडिया, स्टार्ट-अप इंडिया और व्यापार को आकर्षित करने के लिए एफडीआई के उदारीकरण की पहल को लागू करने में भी अहम भूमिका निभाई.'' रमेश अभिषेक फिलहाल कई जांच एजेंसियों द्वारा भ्रष्टाचार के आरोपों को सामना कर रहे हैं. कई मामले अभी भी अदालत में हैं, क्यों कि वह दावों को गलत बता रहे हैं. 

कई जांच एजेंसियों के निशाने पर रमेश अभिषेक

रमेश अभिषेक के लिए मुश्किलें तब और बढ़ गईं, जब लोकपाल ने 2 फरवरी, 2022 के एक आदेश में कहा कि भ्रष्टाचार के आरोपों की गहन जांच की जरूरत है. "तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, हम भ्रष्टाचार से संबंधित इन आरोपों के को मूकदर्शक बनकर नहीं देख सकते, इनसे सख्ती से निपटा जाना चाहिए.  खासकर तब जब शिकायतकर्ता द्वारा दी गई जानकारी के बड़े हिस्से को लोक सेवक (प्रतिवादी) द्वारा स्वीकार कर लिया गया हो. " इसलिए, हम इस शिकायत से संबंधित सभी कागजात के साथ मामले को ईडी के पास भेज देते हैं.''

लोकपाल नेजरूरी कार्रवाई का निर्देश देते हुए ईडी से रमेश अभिषेक की ग्रेटर कैलाश की प्रॉर्टी की कीमत तय करने को कहा. उन्होंने कहा कि ईडी को यह भी जांच करनी चाहिए कि क्या लोक सेवक [प्रतिवादी] और उसके रिश्तेदारों द्वारा प्राप्त मेहनताना  मामले में हितों का कोई टकराव था.  इस जांच के दौरान, यह भी पता लगाया जाना चाहिए कि क्या लोक सेवक [प्रतिवादी] को यह करने की जरूरत थी कि संबंधित प्राधिकारी को सूचित करें, ग्रेटर कैलाश-2 में खरीदी गई उनकी प्रॉपर्टी के पुनर्विकास की कीमत को लेकर क्या उचित अथॉरिटी को सूचित किया गया था या नहीं."

शुरुआती ईडी रिपोर्ट के आधार पर, लोकपाल ने 3 जनवरी, 2023 को एजेंसी को आगे की जांच का निर्देश दिया था. अभिषेक रमेश ने उन आदेशों को दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी थी, अदालत ने मई 2023 में लोकपाल की कार्रवाई में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था. 

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