सुप्रीम कोर्ट ने लॉकडाउन के दौरान बैंक ऋण पर वसूले जा रहे ब्याज पर ब्याज मामले में दखल देने से इंकार किया.सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राजकोषीय नीतियों का मामला केंद्र सरकार और आरबीआई के अधिकार क्षेत्र में है. अदालत इस मुद्दे पर न्यायिक समीक्षा नहीं कर सकती. आर्थिक नीति निर्णयों पर न्यायिक समीक्षा का सीमित दायरा है. कोर्ट व्यापार और वाणिज्य के शैक्षणिक मामलों पर बहस नहीं करेगा. हम ये तय नहीं कर सकते कि कौन सी सार्वजनिक नीति बेहतर हो सकती है. बेहतर नीति के आधार पर किसी नीति को रद्द नहीं कर सकते.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस दौरान ईएमआई ना भरने पर जुर्माना भी ना लगाया जाए. अगर लिया गया है तो अगली EMI में एडजस्ट करे.
साथ ही कोर्ट ने कहा कि सरकार, आरबीआई विशेषज्ञ की राय के आधार पर आर्थिक नीति तय करते हैं. कोर्ट से आर्थिक विशेषज्ञता की उम्मीद नहीं की जा सकती. इन मुद्दों पर न्यायिक दृष्टिकोण से संपर्क करना चाहिए क्योंकि वे विशेषज्ञ नहीं हैं.
साथ ही कोर्ट ने कहा, हम आर्थिक नीति पर केंद्र के सलाहकार नहीं हैं. महामारी ने पूरे देश को प्रभावित किया, सरकार ने वित्तीय पैकेज की पेशकश की. सरकार को सार्वजनिक स्वास्थ्य, नौकरियों का ध्यान रखना पड़ा, आर्थिक तंगी रही. लॉकडाउन के कारण टैक्स खोने के बाद आर्थिक राहत की घोषणा करने के लिए केंद्र, आरबीआई को नहीं कह सकते.महामारी के कारण होने वाले लॉकडाउन की अवधि के दौरान बैंकों को लोन पर ब्याज माफ करने के लिए कहने के लिए केंद्र को निर्देशित नहीं किया जा सकता.
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दरअसल सुप्रीम कोर्ट में मोरेटोरियम अवधि को बढ़ाने और ब्याज पर ब्याज को माफ करने की याचिका दाखिल की गई थी. इसके अलावा पावर सेक्टर, रियल एस्टेट व अन्य सेक्टरों ने भी इस योजना में शामिल करने की मांग की गई थी. कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं, केंद्र, आरबीआई और हस्तक्षेपकर्ताओं की सुनवाई के बाद पिछले साल 17 दिसंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था. याचिकाकर्ताओं ने लोन वसूली पर 6 महीने की अवधि की मोहलत के विस्तार की मांग की है जिसकी घोषणा रिजर्व बैंक ने COVID-19 महामारी के कारण की थी.
भारतीय रिज़र्व बैंक ने 1 मार्च 2020 से 31 मई, 2020 के बीच होने वाले सावधि ऋणों की सभी किस्तों के भुगतान पर बैंकों और वित्तीय संस्थानों को तीन महीने की मोहलत देने की अनुमति देने के लिए 27.03.2020 को अधिसूचना जारी की थी. यह अवधि बाद में 31 अगस्त 2020 तक 3 महीने और बढ़ा दी गई थी. याचिकाकर्ताओं ने शुरुआत में 31 दिसंबर तक की मोहलत के विस्तार की मांग की थी.
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19 नवंबर को, केंद्र ने अदालत से हस्तक्षेप ना करने और अनुच्छेद 32 के तहत उधारकर्ताओं को और राहत ना देने का आग्रह किया था क्योंकि सरकार पहले से ही "इसके शीर्ष पर" थी. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया था कि तकनीकी विशेषज्ञों के साथ कई राहत पैकेज और योजनाओं पर काम किया गया था और राजकोषीय नीति के मुद्दों में न्यायालय के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है. हालांकि, इससे पहले केंद्र सरकार और आरबीआई ने कुछ वर्गौं के लिए दो करोड़ रुपये तक के लोन पर ब्याज पर छूट देने पर सहमति जताई थी.
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