भोपाल में बिजी ईस्टर्न बाईपास पर 100 मीटर सड़क धंसी तो किसानों पर फोड़ दिया ठीकरा

चार लेन वाला भोपाल ईस्टर्न बाईपास राज्य की सबसे व्यस्त सड़कों में से एक है. यह इंदौर, होशंगाबाद, जबलपुर, जयपुर, मंडला और सागर जैसे प्रमुख शहरों को जोड़ता है.

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  • भोपाल के ईस्टर्न बाईपास पर करीब 100 मीटर सड़क अचानक धंस गई, जिससे 30 फुट गहरा गड्ढा बन गया
  • ये बाईपास जिस कंपनी ने बनाया था, जिसका अनुबंध 2020 में रद्द कर कंपनी को ब्लैकलिस्ट कर दिया गया था
  • शुरुआती जांच में घटिया निर्माण और किसानों द्वारा की गई खुदाई से पानी भरने को भी जिम्मेदार बताया गया है
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भोपाल:

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में ईस्टर्न बाईपास पर सूखी सेवनिया रेलवे ओवरब्रिज (ROB) के पास करीब 100 मीटर लंबा हिस्सा सोमवार की दोपहर अचानक धंस गया. इससे सड़क पर करीब 30 फुट गहरा गड्ढा बन गया. गनीमत रही कि उस वक्त कोई गाड़ी वहां से नहीं गुजर रही थी, वरना बड़ा हादसा हो सकता था. सरकार की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट में हादसे की वजह न सिर्फ निर्माण की घटिया क्वालिटी बताई गई, बल्कि किसानों को भी ज़िम्मेदार ठहराया गया है.

सबसे बिजी सड़कों में से एक

चार लेन वाला भोपाल ईस्टर्न बाईपास राज्य की सबसे व्यस्त सड़कों में से एक है. यह इंदौर, होशंगाबाद, जबलपुर, जयपुर, मंडला और सागर जैसे प्रमुख शहरों को जोड़ता है. इसका निर्माण एम/एस ट्रांसट्रॉय प्राइवेट लिमिटेड हैदराबाद ने बीओटी यानी Build, Operate, Transfer मॉडल पर किया है. परियोजना 2012–13 में पूरी हुई थी, जिसके लिए 2010 में 15 साल की रियायत अवधि वाला कॉन्ट्रैक्ट हुआ था.

बनाने वाली कंपनी ब्लैकलिस्ट

लेकिन यह साझेदारी ज़्यादा दिन नहीं चली. 2020 में सरकार ने अनुबंध रद्द कर दिया क्योंकि कंपनी ने शर्तों का पालन नहीं किया. इसके बाद कंपनी को तीन साल के लिए ब्लैकलिस्ट कर दिया गया और बाईपास की जिम्मेदारी सीधे मध्य प्रदेश रोड डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (MPRDC) के अधीन आ गई, जो जरूरत पड़ने पर छोटे-मोटे मरम्मत के काम आउटसोर्स करती रही.

बाईपास धंसने के लिए किसान जिम्मेदार

अब बाईपास का करीब 100 मीटर हिस्सा धंसने पर बवाल हुआ तो अधिकारियों ने कहा कि किसानों द्वारा खेतों के लिए की गई खुदाई से सड़क किनारे बना ड्रेनेज सिस्टम बाधित हो गया था. इससे बारिश का पानी तटबंध के भीतर जमा होता गया. इस पानी ने धीरे-धीरे मिट्टी को कमजोर कर दिया और नतीजतन सड़क का हिस्सा धंस गया. यानी जो पानी बहकर निकल जाना था, वह रुक गया और जमीन के अंदर भरता रहा.

टेक्निकल जांच में दिखीं कई खामियां

घटना की टेक्निकल जांच रिपोर्ट में कई गंभीर खामियां उजागर हुई हैं. रीइन्फोर्स्ड अर्थ (RE) वॉल जो सड़क के तटबंध को सहारा देती है, स्वीकृत मानकों के अनुसार नहीं बनाई गई थी. जो मिट्टी इस्तेमाल हुई, उसकी क्वालिटी घटिया थी. पत्थर की पिचिंग (stone pitching) जो जल निकासी और मिट्टी का कटाव रोकने के लिए जरूरी होती है, वह भी नहीं की गई थी.

10 दिन में मरम्मत करने का लक्ष्य

जांच में यह भी सामने आया कि किसानों ने दीवार के पास मिट्टी खोदी थी, जिससे ड्रेनेज बाधित हो गया. इससे बारिश का पानी तटबंध के भीतर ही फंस गया और मिट्टी की पकड़ ढीली पड़ गई. जब दबाव बढ़ा तो दीवार और सड़क दोनों एक साथ धराशायी हो गए. घटना के तुरंत बाद मध्य प्रदेश रोड डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (MPRDC) ने इलाके को बैरिकेड कर ट्रैफिक दूसरी लेन में डायवर्ट कर दिया, जिससे वाहनों की आवाजाही सामान्य बनी रही. इधर, सड़क के क्षतिग्रस्त हिस्से की मरम्मत शुरू कर दी गई है, जिसे दस दिनों में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है. साइट की मिट्टी के नमूने जांच के लिए लोक निर्माण विभाग की केंद्रीय प्रयोगशाला में भेजे गए हैं.

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'जांच के बाद जवाबदेही तय करेंगे'

MPRDC के प्रबंध निदेशक बी.एस. मीना ने घटना की जांच के लिए तीन सदस्यीय तकनीकी समिति बनाई है. इस कमिटी में चीफ इंजीनियर बी.एस. मीना, महाप्रबंधक मनोज गुप्ता और महाप्रबंधक आर.एस. चंदेल शामिल हैं. यह समिति सात दिनों के भीतर विस्तृत रिपोर्ट देगी. रिपोर्ट आने के बाद निर्माण एजेंसी, कंसल्टेंट या विभागीय अधिकारियों की जवाबदेही तय की जाएगी.

MPRDC की डिविजनल मैनेजर सोनल सिन्हा ने एनडीटीवी से कहा कि करीब 100 मीटर सड़क धंसी है, जिससे लगभग 30 फुट गहरा गड्ढा बन गया. जांच के लिए टीम गठित कर दी गई है. प्रारंभिक जांच से पता चला है कि रिटेनिंग वॉल ध्वस्त हुई. विस्तृत रिपोर्ट आने के बाद सटीक कारण सामने आएगा.

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फिर से उठे पुराने सवाल 

यह घटना एक बार फिर राज्य में सड़क निर्माण की गुणवत्ता और निगरानी पर सवाल खड़े करती है. 2020 के बाद से इस बाईपास की देखरेख बिना स्थायी एजेंसी के की जा रही है. इंजीनियरों ने पहले भी चेताया था. वैसे इस हादसे के बाद लोगों को लोक निर्माण मंत्री राकेश सिंह की तीन महीने पुरानी टिप्पणी भी याद आ रही है- “अब तक ऐसी कोई तकनीक नहीं बनी है जो गारंटी दे सके कि सड़कें सुरक्षित रहेंगी.”

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