भीमा कोरेगांव हिंसा : SC ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्राध्यापक हनी बाबू को निचली अदालत में जाने को कहा

जमानत को लेकर हनी बाबू ने हाईकोर्ट का रुख किया तो कोर्ट ने कहा कि उनकी याचिका वापस लेने की अनुमति देने वाले सुप्रीम कोर्ट के आदेश में उन्हें हाईकोर्ट जाने की स्वतंत्रता नहीं दी गई है और उन्हें सुप्रीम कोर्ट से स्पष्टीकरण मांगने को कहा गया था.

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  • सुप्रीम कोर्ट ने भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में पूर्व डीयू प्राध्यापक हनी बाबू को जमानत के लिए सीधे हाईकोर्ट या निचली अदालत जाने को कहा है.
  • सुप्रीम कोर्ट ने बाबू की मांग खारिज की जिसमें उन्होंने अपनी पिछली अपील वापस लेने के बाद जमानत याचिका पर सुनवाई का स्पष्टीकरण मांगा था.
  • सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि हाईकोर्ट को बाबू की जमानत याचिका पर विचार करने का निर्देश नहीं दिया जा सकता .
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भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्राध्यापक हनी बाबू को  जमानत के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट या निचली अदालत में जाने को कहा है. सुप्रीम कोर्ट ने उस मांग को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने इस बिंदु पर स्पष्टीकरण मांगा था कि उनकी पिछली अपील वापस लेने से हाईकोर्ट को उनकी जमानत याचिका पर सुनवाई करने से नहीं रोका जा सकता.

जस्टिस पंकज मिथल और जस्टिस पीबी वराले की पीठ ने कहा कि आपका मुख्य आधार यह है कि किसी अन्य आरोपी को जमानत मिल गई है, जिस पर निचली अदालत भी विचार कर सकती है. सुप्रीम कोर्ट उच्च न्यायालय को उनकी जमानत याचिका पर विचार करने का निर्देश नहीं दे सकता. पीठ ने बाबू को पिछले साल वापस ली गई अपनी पिछली अपील को फिर से शुरू करने की छूट दी.

दरअसल, बाबू ने पिछले साल 3 मई को इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से अपनी जमानत याचिका वापस ले ली थी, क्योंकि उन्होंने हाईकोर्ट जाने का फैसला किया था. उनके वकील ने तब कहा था कि हाईकोर्ट ने मामले में पांच सह-आरोपियों को जमानत दे दी है. जब बाबू ने हाईकोर्ट का रुख किया तो कोर्ट ने कहा कि उनकी याचिका वापस लेने की अनुमति देने वाले सुप्रीम कोर्ट के आदेश में उन्हें हाईकोर्ट जाने की स्वतंत्रता नहीं दी गई है और उन्हें सुप्रीम कोर्ट से स्पष्टीकरण मांगने को कहा गया है.

बाबू के वकील ने आज दलील दी कि उन्होंने विचाराधीन कैदी के रूप में पांच साल बिताए हैं और उन्होंने हाईकोर्ट जाने के लिए सुप्रीम कोर्ट से विशेष अनुमति याचिका वापस ले ली. NIA के वकील ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि यह याचिका सुनवाई योग्य नहीं है और NIA कोर्ट में नई ज़मानत याचिका दायर की जानी चाहिए. उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट एक अपीलीय न्यायालय है और यह मामला गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के आरोपों से संबंधित है.

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