हरियाणा की भारती ने लड़कियों को दी नई उड़ान, ड्रॉपआउट छात्राओं के लिए खोला शिक्षा केंद्र

आइए आपको बताते हैं कि हरियाणा के सोनीपत जिले में राजापुर गांव की रहने वाली भारती नाम की एक लड़की ने कैसे ड्रॉप आउट लड़कियों की पढ़ाई फिर से शुरू करवाई. उन्हें इस काम में किन किन रुकावटों का सामना करना पड़ा.

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पिता की मौत के बाद पढ़ाई का सपना अधूरा लग रहा था, लेकिन हरियाणा के सोनीपत जिले के राजापुर गांव की भारती ने न सिर्फ अपनी शिक्षा पूरी की, बल्कि दर्जनों ड्रॉपआउट लड़कियों की जिंदगी बदल दी. एक एनजीओ से जुड़कर खुद आगे बढ़ीं और फिर 'बदलाव की किरण' नाम से मुहिम शुरू की, जिससे आज गांव की लगभग 50 लड़कियां दोबारा स्कूल और कॉलेज में लौट चुकी हैं.

पिता की मौत के बाद चुना पढ़ाई का रास्ता

हरियाणा के सोनीपत जिले में राजापुर गांव की रहने वाली भारती कहती हैं कि साल 2008 में पिता की मृत्यु के बाद हमारे परिवार में भाइयों का ही निर्णय माना जाता था. 2018 में जब भारती ने बारहवीं कक्षा उत्तीर्ण की तो वह आगे भी पढ़ाई जारी रखना चाहती थीं पर उन्हें घर से इसके लिए कोई सपोर्ट नहीं मिला. इसी बीच गांव की आशा वर्कर्स के जरिए उन्हें 'ब्रेकथ्रू' एनजीओ के बारे में पता चला. ये लोग हमारे यहां जेंडर भेदभाव के मुद्दे पर कार्य कर रहे थे. भारती ने बताया कि ब्रेकथ्रू वालों ने जब उनके परिवार को लड़कियों की पढ़ाई-लिखाई का महत्व समझाया तो वे राजी हो गए. इसके बाद भारती ने बैचलर ऑफ सोशल वर्क (BSW) में एडमिशन लिया.

भारती आगे कहती हैं कि इसके बाद मैंने 'बदलाव की किरण' नाम से ग्रुप बनाया और गांव में अपनी जैसी ड्रॉप आउट लड़कियों को फिर से पढ़ाई-लिखाई से जोड़ने का प्रयास शुरू किया. उन्होंने गांव में सर्वे किया कि कितनी लड़कियां स्कूल से ड्रॉप आउट हैं. इस दौरान उन्हें यह भी पता चला कि माता-पिता को ये ही पता नहीं होता था कि उनकी लड़कियां कौन सी क्लास में पढ़ रही हैं. सर्वे के दौरान उन्हें अपनी जाति की वजह से काफी दिक्कत आई. लोग उन्हें अपने घर के अंदर नहीं आने देते थे और अच्छी तरह से बात नहीं करते थे.

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अपने सामुदायिक केंद्र में आने वाली लड़िकयों के साथ भारती.

सामुदायिक केंद्र बना दिखाई शिक्षा की राह 

लड़कियों को पढ़ाने के लिए भारती ने गांव की सरपंच से बात की और उनसे इसके लिए जगह मांगी. भारती कहती हैं, सरपंच ने उन्हें गांव का सामुदायिक केंद्र इस काम के लिए दे दिया. वहां गांव के पुरुष पहले ताश खेलते रहते थे और उन्होंने भारती को सामुदायिक केंद्र दिए जाने का विरोध भी किया. बारह ड्रॉप आउट लड़कियों से शुरू हुए इस अभियान में अब लगभग गांव की पचास ड्रॉप आउट लड़कियां शामिल हो गई हैं.

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इनमें जो बारहवीं के बाद पढ़ाई छोड़ी हुई लड़कियां थी, उन्हें भारती ने कॉलेज भेजा. दसवीं के बाद ड्रॉप आउट लड़कियों को फिर से स्कूल भेजा और छोटी क्लास में ही स्कूल से ड्रॉप आउट लड़कियों को उन्होंने सामुदायिक केंद्र में ही पढ़ाया. जब उनका बेसिक क्लियर किया जाता था तब उन्हें स्कूल भेजा जाता था. यही काम वह अब भी कर रही हैं, इनमें कुछ लड़कियां अब बाहर जाकर नौकरी भी करने लगी हैं.

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मेंस्ट्रुअल हाइजीन की जानकारी से बदली सोच 

भारती कहती हैं सामुदायिक केंद्र में वह लड़कियों को उनकी पर्सनल हाइजीन के बारे में भी जानकारी देती हैं. लड़कियों को नहीं पता होता कि मेंस्ट्रुअल पैड कैसे इस्तेमाल किया जाता है. वह यह बातें जब घर में बताती हैं तो उनके घर की महिलाएं भी जानकारी लेने सामुदायिक केंद्र आती हैं.

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भारती की मां का नाम कृष्णा है. वह कहती हैं कि गांव वाले कहते थे कि ये अपनी लड़की को कहां-कहां भेजते रहती है. मैं कभी स्कूल ही नहीं गई इसलिए मुझे पता था कि मेरी लड़की गांव की लड़कियों को पढ़ाकर सही काम कर रही है.

गांव की ही सोनिया और सरला बारहवीं के बाद स्कूल ड्रॉप आउट थीं और घर में ही बैठी रहती थीं. वह कहती हैं जब भारती ने हमारे परिवार से हमारी पढ़ाई के बारे में बात की, हम लोग आईटीआई जाने लगे.

लड़कियां पढ़ेंगी तो गांव का नाम रोशन होगा

कलजिंदर कौर उस समय गांव की सरपंच थीं, जब भारती ने गांव की ड्रॉप आउट लड़कियों को फिर से स्कूल भेजने की शुरुआत करने की ठानी. उन्होंने बताया कि जब भारती ने मुझे बताया कि वह गांव की ड्रॉपआउट लड़कियों के लिए शिक्षा केंद्र खोलना चाहती हैं, तो उसकी बात सुनकर मैंने सोचा कि इससे तो हमारे गांव की ड्रॉप आउट लड़कियां अच्छी शिक्षा प्राप्त कर सकेंगी और फिर वे किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ सकती हैं.

उन्होंने कहा कि इस पहल की सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि लड़कियों के लिए एक सेफ स्पेस तैयार किया जाए. इसके लिए गांव का सामुदायिक केंद्र सबसे बेहतर विकल्प लगा. उन्हें पंचायती स्तर पर भी लोगों को समझाना पड़ा कि यह शिक्षा केंद्र लड़कियों की पढ़ाई को व्यवस्थित रूप देगा.

कलजिंदर कौर गर्व से कहती हैं कि ड्रॉप आउट लड़कियों के लिए शिक्षा केंद्र खुलने से गांव की लड़कियों में काफी बदलाव आया है. पचास के आसपास लड़कियां इसमें पढ़ने के लिए जाती हैं और उनके साथ गांव की आंगनवाड़ी वर्कर व अन्य कामकाजी महिलाएं भी केंद्र में जाती हैं. लड़कियां अब अपने घर के बड़ों से बातचीत करते हुए अपने सपनों के बारे में बात रखने की हिम्मत कर पाई हैं. कई लड़कियां अब उच्च शिक्षा लेते हुए अपने सपने पूरे कर रही हैं. कुछ नौकरी भी कर रही हैं. खुद भारती भी अब ब्रेकथ्रू एनजीओ में नौकरी कर रही हैं.

बदली गांव की सोच 

कर्मवीर सिंह और राजेंद्र कुमार, राजापुर में वर्तमान पंचायत समिति के सदस्य हैं. दोनों कहते हैं कि भारती के इस काम से गांव में लड़कियों की स्थिति में सुधार आया है. कर्मवीर कहते हैं कि हमारे गांव के लोग भी समझदार हैं और शिक्षा के महत्व को समझते हैं. इसलिए भारती की इस पहल का सभी ने स्वागत किया और ड्रॉपआउट लड़कियों को भारती के पास फिर से पढ़ाई-लिखाई के लिए भेजा.

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