बारामती सीट: 'साहेब','दादा' और 'ताई' की जंग का गवाह बनेगा 2024 का चुनाव, BJP को क्या होगा फायदा?

Baramati Parliamentary Constituency: Lok Sabha Elections 2024 से पहले NDTV INDIA लेकर आया है KYC यानी Know Your Constituency सीरीज. इसी सीरीज में आज बात बारामती लोक की. यहां की मौजूदा सांसद हैं शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले . वे यहां से लगातार तीन बार से सांसद हैं.यहां से सबसे ज्यादा 6 बार शरद पवार सांसद रहे हैं. हालांकि इस बार मामले में ट्विस्ट है. इस बार यहां मुकाबला पवार Vs पवार होने की संभावना है. क्योंकि अजित पवार की पत्नी सुनेत्रा पवारके चुनावी मैदान में उतरने की संभावना है.

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Baramati Lok Sabha Seat: शरद पवार ने करीब 3-4 दशक पहले एक ऐलान किया था- अगर जरूरत पड़ी तो वे अपने शरीर पर राख लगाकर हिमालय चले जायेंगे लेकिन इंदिरा कांग्रेस में कभी शामिल नहीं होंगे. हालांकि उसके कुछ सालों बाद यानी 1986 में उन्होंने उन्हीं इंदिरा गांधी के बेटे राजीव गांधी की मौजूदगी में औरंगाबाद में अपनी पूरी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया. लेकिन एक दशक से कुछ ही ज्यादा वक्त गुजरा था कि शरद पवार ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर कांग्रेस से नाता तोड़कर जून 1999 में अपनी नई पार्टी बना ली. वो पार्टी है- राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी. जब से ये पार्टी बनी है तब से बारामती लोकसभा सीट पर इसी का कब्जा है.दरअसल पिछले चार दशकों से बारामती की सियासत शरद पवार के आस-पास घूमती रही है...लेकिन साल 2024 में हालात बदल गए हैं. इस बार यहां मुकाबला पवार Vs पवार होने की संभावना है. सवाल ये है भी है कि क्या 2024 में बीजेपी पिछले दरवाजे पहली बार बारामती में एंट्री मार सकेगी?...आखिर क्या है बारामती लोकसभा सीट का इतिहास...लोकसभा चुनाव की विशेष सीरीज में बात इसी सीट की.

बारामती अपने गन्ने के बागानों के लिए भी मशहूर है...जहां भी चले जाइए खेतों में गन्ने आपको दिख ही जाएंगे.इसी वजह से यहां की सियासत में किसान फैक्टर अहम हो जाता है. खुद शरद पवार भी इसी के दम पर न सिर्फ बारामती बल्कि प्रदेश और देश की सियासत में भी दम रखते हैं. लेकिन ऐसा हमेशा से नहीं था. बारामती और शरद पवार या यूं कह लीजिए पवार फैमली एक दूसरे की पूरक है. दरअसल बारामती में लहलहाते गन्ने की फसल के पीछे बहुत हद तक शरद पवार का योगदान है. क्योंकि  साल 1960 तक बारामती सूखाग्रस्त क्षेत्र था. यहां मुश्किल से 300mm ही बारिश होती थी और गन्ने की खेती के लिए कम से कम 600 mm बारिश की आवश्यकता होती है. ऐसी स्थिति में साल 1971 में शरद पवार ने एग्रीकल्चर डेवलपमेंट ट्रस्ट की नींव रखी. ये ट्रस्ट आज 15 लाख किसानों को कम क़ीमत में अपनी उपज बढ़ाने की अलग-अलग तरह से ट्रेनिंग दे रहा है. बारामती के कृषि विज्ञान केंद्र भी इस इलाके में खेती को बढ़ाने में अहम योगदान देता है. शरद पवार एंड फैमली को ताकत इन्हीं किसानों से मिलती है.

खैर सियासी हिसाब-किताब बताने से पहले ये जान लेते हैं कि बारामती का इतिहास क्या है? इस शहर का लगभग 400 वर्षों का लंबा इतिहास है. यहां दो पुराने मंदिर हैं जिनका निर्माण 750 ईस्वी के आसपास हुआ था.उनमें से एक श्री काशीविश्वेश्वर का है और दूसरा सिद्धेश्वर मंदिर. दोनों ही मंदिरों की वास्तुकला बेहद उम्दा है. प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ.शेजवलकर के मुताबिक निजाम शआह ने साल 1603 में बारामती को मालोजीराजे भोंसले को उपहार में दिया गया था. बाद में ये इलाका छत्रपति शिवाजी महाराज के अधीन आ गया.उस समय इसका प्रशासन दादोजी कोंडदेव द्वारा किया जाता था. बाद में कुछ वक्त तक ये पूरा इलाका मुगलों के कब्जे में आया लेकिन बाद में शाहू महाराज ने इसे जीत लिया. उन्होंने बारामती का प्रभार बाबूजी नाइक को सौंप दिया. वे बेहद अच्छे प्रशासक माने जाते थे. उनके वक्त में बारामती का खूब फला-फूला. 

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आगे बढ़ने से पहले बारामती की डेमोग्राफी भी समझ लेते हैं. इस लोकसभा सीट के अंदर 6 विधानसभा सीटें आती हैं. जिसमें दौंड,इंदापुर,बारामती,पुरंदर,भोर और खड़कवासला शामिल हैं.फ़िलहाल इनमें से दो सीटों पर एनसीपी, एक-एक सीट पर कांग्रेस, बीजेपी, शिवसेना और राष्ट्रीय समाज पक्ष के व‍िधायक काबिज हैं.इस सीट को शरद पवार की वजह से राज्य की हाई प्रोफाइल सीट के तौर पर देखा जाता है. उन्हें महाराष्ट्र की सियासत में साहेब के नाम से जाना जाता है. साल 1957 से पहले बारामती लोकसभा सीट अस्तित्व में नहीं थी.

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यहां पहला चुनाव 1957 में हुआ तब कांग्रेस के केशवराव जेधे यहां के पहले सांसद चुने गए. उसके बाद 1957 से लेकर 1971 तक यह सीट कांग्रेस पार्टी के कब्जे में थी. 1977 के चुनाव में यहां जनता पार्टी के संभाजी काकड़े सांसद चुने गए. शरद पवार यहां से 1984 में पहली बार सांसद बने. हालांकि 1985 में वे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने तो ये सीट खाली हुई और एक बार फिर  संभाजी काकड़े ने जीत दर्ज कर ली.

हालांकि 1991 के बाद से इतिहास बदला और अब तक ये सीट पवार फैमली के कब्जे में रही.

 1991 में अजित पवार यहां सांसद बने. 1996 से लेकर 2004 तक लगातार 4 बार शरद पवार ही यहां से सांसद रहे. इस दौरान वे केन्द्र में कई बड़े पदों पर रहे. शरद पवार के बाद ये सीट को उनकी बेटी सुप्रिया सुले ने 2009 से लेकर अब तक अपने कब्जे में रखा है. साल 2014 की मोदी लहर में महाराष्ट्र में कई बड़े नाम धाराशाई हो गए लेकिन बारामती सीट पर पवार परिवार का ही कब्जा रहा.
 हालांकि 2019 के बाद से गोदावरी और नर्मदा में पानी बहुत बह चुका है. बारामती सीट पर अब फिर से सुर्खियों में है और वजह है पवार Vs पवार की जंग. ये लगभग तय है कि NCP की ओर से सुप्रिया सुले ही चौथी बार उम्मीदवार होंगी लेकिन ट्वीस्ट ये है कि राज्य के उपमुख्यमंत्री अजित पवार अपनी पत्नी सुनेत्रा पवार को यहां से उतारने की तैयारी में हैं. सुनेत्रा का रथ संसदीय क्षेत्र में घूम रहा है. उसके जवाब में अब सुप्रिया का रथ भी उतर गया है.यानी बारामती की सीट पर इस बार साहेब यानी शरद पवार, दादा यानी अजित पवार और ताई यानी सुप्रिया सुले की दिलचस्प जंग देखने को मिलेगी. एक सवाल ये भी है कि क्या इस जंग से बीजेपी को फायदा होगा? जिसका कमल कभी भी बारामती में नहीं खिला. 

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