बैडमिंटन खिलाड़ी लक्ष्य सेन और चिराग सेन को जन्म प्रमाण पत्र में हेराफेरी मामले में सुप्रीम कोर्ट से मिली बड़ी

जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ ने FIR रद्द करने की दोनों भाइयों की याचिका स्वीकार कर ली है. पीठ ने कहा कि सक्षम प्राधिकारियों द्वारा पहले ही की जा चुकी कई तथ्यात्मक जांचों के आलोक में, आरोपों की जांच के लिए आपराधिक जांच आवश्यक होने का सुझाव "खोखला" लगता है.

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नई दिल्ली:

बैडमिंटन खिलाड़ी लक्ष्य सेन और उनके भाई चिराग सेन को जन्म प्रमाण पत्र में हेराफेरी करने के आरोप पर आपराधिक कार्यवाही मामले में बड़ी राहत मिली है. ऐसा इसलिए क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने कार्यवाही को रद्द कर दिया है. बेंगलुरु में दर्ज एफआईआर पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "आरोप साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है और भारतीय खेल प्राधिकरण (SAI) ने जाँच और मेडिकल परीक्षण के बाद उन्हें पहले ही क्लीन चिट दे दी है."

जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ ने FIR रद्द करने की दोनों भाइयों की याचिका स्वीकार कर ली है. पीठ ने कहा कि सक्षम प्राधिकारियों द्वारा पहले ही की जा चुकी कई तथ्यात्मक जांचों के आलोक में, आरोपों की जांच के लिए आपराधिक जांच आवश्यक होने का सुझाव "खोखला" लगता है. पीठ ने कहा कि शिकायतें मिलने पर, SAI ने 2016 में एक सत्यापन प्रक्रिया शुरू की थी, जिसमें दिल्ली के एम्स में मेडिकल परीक्षण और दंत परीक्षण शामिल था .

हमारा विचार है कि अपीलकर्ताओं के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही जारी रखना पूरी तरह से अनुचित है. रिकॉर्ड से पता चलता है कि जिन आरोपों को अब पुनर्जीवित करने की मांग की जा रही है, उनकी पहले सक्षम प्राधिकारियों द्वारा जांच की गई थी, जिनमें आगे की कार्यवाही के लिए कोई ठोस आधार नहीं मिला.  तब से अब तक कोई नया सबूत सामने नहीं आया है जो उचित जांच के बाद पहले से बंद पड़े मामले को फिर से खोलने का औचित्य सिद्ध कर सके.

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अपीलकर्ता राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय बैडमिंटन प्रतियोगिताओं में भारत का प्रतिनिधित्व किया है और राष्ट्रमंडल खेलों तथा विश्व बैडमिंटन महासंघ (BWF) के अंतरराष्ट्रीय आयोजनों में पदक सहित कई पुरस्कार अर्जित किए हैं. ऐसे लोगों, जिन्होंने बेदाग रिकॉर्ड बना रखा है और निरंतर उत्कृष्टता के माध्यम से देश का नाम रोशन किया है, को प्रथम दृष्टया साक्ष्य के अभाव में आपराधिक ट्रायल की कठिन परीक्षा से गुजरने के लिए मजबूर करना न्याय के उद्देश्यों की पूर्ति नहीं करेगा. पीठ ने कहा कि ऐसी परिस्थितियों में आपराधिक कानून का सहारा लेना प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा, जिसे यह अदालत बर्दाश्त नहीं कर सकती.

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खिलाड़ियों के खिलाफ ये शिकायत उनके पिता द्वारा दाखिल 1996 के जीपीएफ नामांकन फॉर्म पर आधारित है, जिसमें अलग-अलग जन्मतिथियां थीं लेकिन पीठ ने इस दस्तावेज को विश्वसनीय मानने से इनकार कर दिया. शिकायतकर्ता ने न तो किसी सिविल मंच के समक्ष आधिकारिक जन्म रिकॉर्ड की वैधता को चुनौती दी है और न ही इस बारे में कोई स्पष्टीकरण दिया है कि कथित विसंगतियों को उसी समय क्यों नहीं उठाया गया.

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रिकॉर्ड में रखी गई सामग्री से यह स्पष्ट है कि आरोप अनुमान और अटकलों पर आधारित हैं, और स्पष्ट रूप से अपीलकर्ताओं को बदनाम करने के इरादे से हैं. किसी भी बेईमानी से प्रलोभन या लाभ का प्रदर्शन नहीं किया गया है, न ही राज्य या किसी तीसरे पक्ष को कोई गलत नुकसान पहुंचाया गया है.

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यहां तक कि उक्त फॉर्म को अंकित मूल्य पर लेने पर भी, न तो यह प्रदर्शित किया गया है कि खिलाड़ियों - जो उस समय नाबालिग थे - या उनके कोच की इसकी तैयारी में कोई भूमिका थी, और न ही यह दर्शाया गया है कि दस्तावेज का इस्तेमाल कभी भी झूठे बहाने से लाभ प्राप्त करने के लिए किया गया था. अपीलकर्ताओं को किसी दोषपूर्ण कृत्य या इरादे से जोड़ने वाली किसी भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सामग्री का अभाव इस निष्कर्ष को पुष्ट करता है कि आरोप, भले ही अपने उच्चतम स्तर पर लिए गए हों, उपरोक्त प्रावधानों के तहत आपराधिक मुकदमा चलाने के औचित्य के लिए आवश्यक सीमा को पूरा नहीं करते हैं.
 

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