Exclusive : रील के 'सिया-राम' की जिंदगी में क्या है रियल राम-सीता का मतलब?

रामायण सीरियल में प्रभु श्रीराम का चरित्र जीवंत करने वाले अरुण गोविल कहते हैं, "जीवन से लेकर अंत तक आपको पता है क्या कहा जाता है....जब इंसान इस दुनिया से चला जाता है, तो कहा जाता है... "राम नाम सत्य है..." राम इस तरह से हमारे जीवन से जुड़े हैं..

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अरुण गोविल और दीपिका चिखलिया को राम मंदिर के उद्घाटन का न्योता मिला है.

नई दिल्ली:

अयोध्या में बरसों इंतजार के बाद राम मंदिर (Ayodhya Ram Mandir) बन रहा है. 22 जनवरी को भगवान श्रीराम अपने मंदिर में विराजमान होने जा रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) यजमान बनकर श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा (Ram Mandir Consecration)करेंगे. टीवी के प्रभु श्रीराम (अरुण गोविल), माता सीता (दीपिका चिखलिया) और लक्ष्मण (सुनील लहरी) भी इस अनुष्ठान के साक्षी बनेंगे.

NDTV ने 'अयोध्या एक अध्याय' कार्यक्रम के तहत दीपिका चिखलिया और अरुण गोविल से खास बातचीत की. इस दौरान टीवी के 'सिया-राम' ने बताया कि उनके लिए रामायण के प्रभु श्रीराम और माता सीता का क्या मतलब है?

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रामायण में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का चरित्र निभाने वाले अरुण गोविल ने कहा, "राम जीवन हैं... राम मेरी आस्था हैं... राम इस देश का गौरव हैं...राम हमारी पहचान हैं... राम हर तरह से हमारे जीवन से जुड़े हैं... जब हमें पीड़ा होती है तो हम कहते हैं कि 'हाय राम'... मुंह से ये ही निकलता है. जब को अचूक बात होती है, तो रामबाण याद आता है... राम एक छोटा सा शब्द है. लेकिन ये हमारे जीवन से इस तरह से जुड़ा है कि हर एक परिस्थिति में हम राम का नाम जरूर लेते हैं..." 

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अरुण गोविल कहते हैं, "जीवन से लेकर अंत तक आपको पता है क्या कहा जाता है....जब इंसान इस दुनिया से चला जाता है, तो कहा जाता है... "राम नाम सत्य है..." राम इस तरह से हमारे जीवन से जुड़े हैं...हमें राम से अपने आपको ना अलग करना चाहिए और ना हम अलग कर सकते हैं..."

सीता के बिना राम अधूरे हैं- दीपिका चिखलिया
वहीं, रामायण सीरियल में सीता माता का चरित्र करने वालीं दीपिका चिखलिया ने कहा, "सीता के बिना राम अधूरे हैं... शिव शक्ति एक हैं.. आज अगर सीता जी नहीं, होती तो शायद रामायण नहीं होती.. जहां स्त्री होती हैं... पुरुष वहीं पूरा होता है... यही प्रकृति का नियम है... सीता जी का चरित्र बहुत मजबूत और स्वतंत्र है. यह किरदार वफादार है और धर्म से बहुत जुड़ा हुआ है... कर्तव्य से जुड़ा हुआ है... सीता जी बहुत आत्म सम्मानी और स्वाभिमानी थीं. क्योंकि जहां-जहां उन्हें लगा कि वो प्रभु श्रीराम के जीवन में बाधा बन रही हैं... वो रास्ते से हट गईं. गर्भवती होने के बावजूद वो राम के आदेश पर अयोध्या से चली जाती हैं. उन्होंने अपने बच्चों लव-कुश को अकेले पाला-पोषा." 

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दीपिका चिखलिया बताती हैं, "जब सीता जी को लगा कि उनका धर्म प्रभु श्रीराम के साथ खड़े रहना है, तो वह 14 वर्ष के वनवास में अपने प्रभु श्रीराम के साथ थीं. उनके पिता जनक ने वनवास में जाने के लिए मना किया था. माता कौश्लया ने भी कहा था कि तुम राजकुमारी हो, वन में नहीं रह पाओगी. लेकिन सीता माता अपने निर्णय पर अड़ी रहीं. उन्हें पता था कि वो ठीक कर रही हैं... यही उनका पत्नीधर्म है. उन्हें जो ठीक लगता था वो करती थीं..."

समृद्ध हो रही पूरी अयोध्या 
इस दौरान अरुण गोविल ने राम मंदिर बनने से पहले और बाद की अयोध्या में आया फर्क भी बताया. उन्होंने कहा, " कुछ महीने पहले मैं एक फिल्म की शूटिंग के लिए अयोध्या गया था. उस समय की जो अयोध्या थी और जो आज की अयोध्या है.. दोनों में जमीन-आसमान का फर्क है. आज की अयोध्या इतनी सुंदर हो गई है, जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती. जिस तरह से दीपक जलाए जाते हैं. जैसी सजावट होती है. यहां बड़ी-बड़ी दुकानें खुल गई हैं. आज हर ब्रांड अयोध्या में है. नगर का पूरा विकास हुआ है. रामलला की प्राण प्रतिष्ठा अभी नहीं हुई है, लेकिन करीब-करीब 25 हजार लोग रोजाना बाहर से अयोध्या आते हैं. पूरी अयोध्या समृद्ध हो रही है." 

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गोविल ने कहा, "जहां तक आध्यात्मिकता की बात है, तो अयोध्या की कोई सीमा नहीं है. राम मंदिर एक तरह से राष्ट्र मंदिर है. इससे हर किसी को प्रेरणा मिलेगी. अयोध्या जाने के बाद आप खुद ही आध्यात्म की दुनिया में पहुंच जाते हैं. राम मंदिर जो हम सभी को प्रेरणा देगा, यही पहले और बाद की अयोध्या के बीच फर्क है."

टीवी के 'राम-सीता' ने सुनाईं रामायण की दोहा-चौपाई
इंटरव्यू के दौरान टीवी के सियाराम यानी दीपिका चिखलिया और अरुण गोविल ने रामायण से दोहा-चौपाई भी सुनाईं. अरुण गोविल ने कहा, "एक दोहे को मैंने मेरे जीवन में उतारा है... "राम-नाम-मनि-दीप धरु, जीह देहरी द्वार। 'तुलसी' भीतर बाहिरौ, जौ चाहसि उजियार॥" यानी घर की ड्होड़ी पर दीपक रखा दो.. तो वो बाहर भी और अंदर भी उजाला देता है.. उसकी तरह अपने मुख की ड्योरी पर यानी जीभ पर राम नाम की मणि रखने से तुलसी दास जी कहते हैं कि तुम्हारे भीतर भी और बाहर भी उजाला हो जाएगा."

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दीपिका चिखलिया कहती हैं, "मुझे ऐसा कोई दौहा तो याद नहीं आ रहा है.. लेकिन हमारे सीरियल का ही एक भजन था.. "ठुमक चलत रामचंद्र" ये मैं बहुत सुनती हूं.. एक दोहा है, जिसमें मैं बहुत मानती हूं.. मुझे उनके शब्द याद नहीं है.. लेकिन ये है कि "जो भी राम चाहेंगे... वही होगा.."

इस दोहे को अरुण गोविल पूरा करते हैं. वो कहते हैं... "होइहि सोइ जो राम रचि राखा"... यानी होगा वही जो रामजी ने रचकर रखा है...

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