...जब पहली बार अटॉर्नी जनरल ने दी थी हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती

हाईकोर्ट ने मीडिया नें प्रचार के बाद दोषी को जयपुर के स्टेडियम ग्राउंड या रामलीला ग्राउंड में सार्वजनिक तौर पर फांसी देने का आदेश दिया था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का फैसला रद्द कर दिया था.

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1985 में अटॉर्नी जनरल ने राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुरुवार को बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) के 'स्किन टू स्किन' फैसले को रद्द कर दिया. खास बात ये है कि हाईकोर्ट के इस विवादित फैसले को देश के अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल (Attorney General) ने ही चुनौती दी थी. ये दूसरा मौका है जब अटॉर्नी जनरल ने किसी फैसले को चुनौती दी हो. फैसले के बाद जब जस्टिस यू यू ललित ने कहा कि यह शायद पहली बार है जब अटॉर्नी जनरल ने आपराधिक मामले के फैसले को चुनौती दी है.

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इस पर जस्टिस एस रवींद्र भट ने बताया कि इससे पहले 1985 में अटॉर्नी जनरल ने राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी. जिसमें एक दोषी को सार्वजनिक तौर पर फांसी देने के आदेश दिए थे. उस समय भारत के अटार्नी जनरल के परासरन ने आपराधिक पक्ष के एक फैसले के खिलाफ अपील की थी. ये मामला भारत के अटार्नी जनरल बनाम लछमा देवी [A.I.R. 1986 SC 467] और अन्य के तौर पर है. 

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दरअसल, इस मामले में हाईकोर्ट ने मीडिया नें प्रचार के बाद दोषी को जयपुर के स्टेडियम ग्राउंड या रामलीला ग्राउंड में सार्वजनिक तौर पर फांसी देने का आदेश दिया था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि सार्वजनिक फांसी से मौत की सजा देना संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करने वाला एक बर्बर अभ्यास होगा. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का फैसला रद्द कर दिया था.

गौरतलब है कि दहेज की उम्मीदें पूरी न होने पर लिच्छमा देवी को अपनी बहू पुष्पा पर मिट्टी का तेल डालकर उसकी हत्या करने और उसे जिंदा जलाने का दोषी ठहराया गया था. राजस्थान हाईकोर्ट में 21 नवंबर 1985 को जस्टिस जीएम लोढा और जस्टिस जी के शर्मा ने उसे सरेआम मीडिया में प्रचार के बाद फांसी देने का फैसला सुनाया था.

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