पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे सामने आ गए हैं. बीजेपी ने जहां 4 राज्यों में जीत का परचम लहराया है. वहीं आम आदमी पार्टी ने पंजाब में एकतरफा जीत हासिल की है. इस जीत से किसी को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है, तो वह है कांग्रेस पार्टी. उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में कांग्रेस का सीधा मुकाबला भाजपा से था. लेकिन इन राज्यों के परिणामों में कांग्रेस पूरी तरह धराशायी हो गई है. इन चुनावों में कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा काफी सक्रिय दिखीं. कांग्रेस इस बार चुनावों में बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद लगा रही थी, लेकिन जनता ने कांग्रेस को पूरी तरह नकार दिया. इस बार कांग्रेस ने कृषि कानूनों को लेकर बीजेपी को घेरने की कोशिश की थी. किसानों के आंदोलन में कई बार कांग्रेस के बड़े नेता उनका समर्थन करते दिखे. इस चुनाव में कांग्रेस ने इसे चुनावी रंग देने की कोशिश की. लेकिन अंततः यह कोशिश भी नाकाम रही और वह जनता को रिझा नहीं पाई.
पंजाब में आम आदमी पार्टी (आप) का उदय कांग्रेस के लिए एक चिंताजनक संकेत है. यहां पर कांग्रेस का बहुत पहले से दबदबा रहा है. लेकिन इस बार कांग्रेस के कई दिग्गज चुनाव हार गए. मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और नवजोत सिंह सिद्धू सहित कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के हारने से पंजाब में कांग्रेस की मजबूती को बड़ा झटका लगा है.
वहीं आम आदमी पार्टी ने पंजाब चुनाव जीतने के बाद खुद को "राष्ट्रीय शक्ति" होने का दावा किया है. आम आदमी पार्टी के नेता राघव चड्ढा ने कहा है कि AAP अब राष्ट्रीय ताकत है, और यह अब देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के रूप में कांग्रेस की जगह लेगी. उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को लेकर कहा कि वह एक दिन देश का जरूर नेतृत्व करेंगे.
वहीं तृणमूल कांग्रेस के नेता और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भाजपा के खिलाफ व्यापक विपक्षी एकता की जरूरत की बात कही है. उन्होंने शिवसेना और राकांपा के नेताओं से मुलाकात की है और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के साथ भी बातचीत की है. 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले AAP और तृणमूल कांग्रेस दोनों ही भाजपा को प्रमुख चुनौती देते हुए दिखाई दे सकता है. वहीं पार्टी नेता शशि थरूर ने गुरुवार को पार्टी के संगठनात्मक नेतृत्व में सुधार करने का आह्वान किया है . कांग्रेस को इस साल एक अध्यक्ष का चुनाव करना है. लेकिन अध्यक्ष के चुनाव पर भी पांच राज्यों के पराजय का असर जरूर देखने को मिलेगा.
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