असम में कोयले की 'चूहा सुरंगों' में कैद जिंदगियां कब आजाद होंगी? एक रिपोर्टर की आंखोंदेखी

असम के दिमा हसाओ में हर गुजरता दिन हौसला तोड़ रहा है. कोयले की चूहा सुरंगों में 9 लोग फंसे हैं. वे कब निकलेंगे, कैसे निकलेंगे, तमाम रेस्क्यू ऑपरेशन के बीच यह सवाल हवा में तैर रहा है. भूखे-प्यासे बैठे परिजनों की आंखें मानो पथरा रही हैं...

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कुछ-कुछ फिल्म 'तुम्बाड' जैसा. फर्क इतना है कि यहां हस्तर सोना नहीं, कोयले का टुकड़ा देता है. यहां लालच नहीं है. पेट की आग है. बेबसी है. गरीबी है. असम में धरती के गर्भ से दो टुकड़े कोयले के निकालने उतरे लोग फंसे हुए हैं. जमीन से 300 फीट नीचे कोयले की 'चूहा सुरंगों' में वे कहां हैं, पिछले पांच दिनों से कुछ पता नहीं है. असम के दिमा हसाओ जिले के उमरांगसो के पास के इलाके को असम क्वेरी के नाम से जाना जाता है. इस पहाड़ी इलाके की अवैध कोयले की खदान में पानी भर गया है. सरकारी आंकड़े बता रहे हैं कि नौ लोग लापता हैं. ऑपरेशन का आज पांचवां दिन है. हर बढ़ते दिन के साथ धड़कनें बढ़ रही हैं. NDTV इंडिया के रिपोर्टर रतनदीप ने हादसे वाली जगह पर जाकर क्या देखा, क्या महसूस किया, वह आंखें खोलने वाला है. देश के इस सुदूर इलाके में तमाम चुनौतियों के बीच जिंदगियों को बचाने की जंग कैसे चल रही है, पढ़िए उनकी आंखोंदेखी...

असम का दिमा हसाओ एक पहाड़ी जिला है. दिमासा समुदाय बहुलता में है, जो जाहिर तौर पर जिले के नाम में भी दिखता है. दिमा हसाओ ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल के अंदर पड़ता है. जिला अपनी प्रशासनिक व्यवस्था एक हद तक खुद देखता है. जहां यह घटना घटी है, इसे असम क्वेरी के नाम से जाना जाता है. वह विशेष इलाका, जहां यह हादसा हुआ है, उसे कालामाटी कोल क्वेरी कहते हैं.

Photo Credit: 310 फीट गहरी कोयले के खदान में उतरते बचावकर्मी

कोयले का सिंडिकेट... सब चल रहा

यह इलाका असम के माइन्स ऐंड मिनिरल्स के तहत आता है. दिमा हसाओ की पहाड़ियों पर ऑटोनॉमस काउंसिल कोयला निकालते के लिए परमिट देती है. असम की सरकार हालांकि कालामाटी कोल क्वेरी को अवैध कोयला खदान बता रही है. स्थानीय मीडिया में भी इस पूरे इलाके में अवैध कोयला खनन के एक बहुत बड़े सिंडिकेट के चलने की खबरें छपती रही हैं.  इस इलाके के पास का सबसे नजदीक का जो शहर है, वह उमरांगसो है. यह खदान वाली जगह से करीब 25 किलोमीटर दूर है. मगर शहर से कोयला खदान तक पहुंचने का कोई रास्ता नहीं है. आपको वहां पहुंचने के लिए ऑफ रोडिंग करनी पड़ेगी. 25 किलोमीटर का सफर आप तभी तय कर पाएंगे, अगर आपके पास 4 बाई 4 वील गाड़ी है. नॉर्मल गाड़ी इस रास्ते पर नहीं चल पाएगी. करीब दो से ढाई घंटे में आप खदान तक पहुंचते हैं. 

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खुला 'रैट होल' जैसा 25 किलोमीटर का रास्ता

आखिर यह रास्ता बना क्यों नहीं है? यह सवाल कई बार मन में उठता है. एक बड़ी वजह कि क्या कोयले के सौदागरों को सड़क का न होना सूट करता होगा? सड़क नहीं, तो कोयले की अवैध खनन की पूरी सेफ्टी! जाहिर है वजह यही है. किसी सिंडिकेट के इलाके में घुसने जैसा है यह 25 किलोमीटर क सफर. 25 किलोमीटर का यह रास्ता कई बार खुला हुआ रैट होल जैसा लगता है. कहां जा रहा है कुछ पता नहीं. कई सस्पेंस छिपे हुए हैं. 

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असम के कालामाटी में धरती के जिस्म पर दाग जैसी दिख रहीं कोयले की खदानें

यह पानी आ कहां से रहा है?

रास्ता किसी तरह कटा और हम उस जगह पहुंचे जहां रेस्क्यू ऑपरेशन चल रहा था. वहां देखा कि कोयले की खदान में पानी भर गया है.पानी को बाहर निकाला जा रहा है. लेकिन पानी निकलने का नाम नहीं ले रहा है.जितना पानी बाहर निकाला जा रहा है, उतना ही अंदर भर रहा है. आखिर यह रहस्य क्या है. यह पानी आखिर कहां से फूट रहा है. रेस्क्यू टीमें भी हैरान-परेशान दिख रही हैं. एक वजह जो सबको लग रही है वह यह कि खदान में किसी प्राकृतिक स्रोत से पानी का कनेक्शन बन गया है शायद. पहाड़ी के बास ही कोपिली नदी के ऊपर एक बहुत बड़ा बांध बना है. उसका पानी तो नहीं शायद! एक्सपर्ट में मन में कई तरह के सवाल हैं. इस सब चुनौतियों के बीच सांसों को बचाने की जंग चल रही है. नौसेना एक अलग लड़ाई लड़ रही है. उसके एक्सपर्ट गोताखोर पानी में गोता लगाते हैं. कुछ देर तक सस्पेंस हवा में तैरता रहता है. और फिर खाली हाथ लौटते जवानों को देख एक हताशा हावी होने लगती है. 

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गूगल अर्थ से कुछ ऐसी दिखती हैं खदानें!

समय हाथ से फिसल रहा है

चुनौतियां किसी जंग के मैदान से कई गुना ज्यादा हैं. 300 फीट का खदान का गड्ढा. इतना अंधेरा, ऊपर से एसिड वाला पानी. गोताखोरों के रोबोटिक इंस्ट्रूमेंट भी जवाब दे जा रहे हैं. जानें बचाने के लिए पानी निकालना हर हाल में जरूरी है. इसके लिए हर मुमकिन कोशिश चल रही है. कोल इंडिया के पंपों को भी एयरलिफ्ट किया गया है. एयरलिफ्ट करने के बाद इन पंपों को चालू करना भी टास्क है. इसमें भी वक्त लग रहा है. और इन सबके बीच समय हाथ से फिसल रहा है. उम्मीदें धुंधली पड़ रही हैं. 

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जान बचाने की हर मुमकिन कोशिश

सब अंधेरे में, कोई नक्शा नहीं

आखिर वे नौ लोग कोयले की इस खदान में कहां फंसे हो सकते हैं? सामने काली सी पहाड़ी पर नजर मारने पर यह सवाल हरदम दिमाग में कौंधता है. एक्सपर्ट्स और बचाव में लगी टीमों से बात करने पर जो एक चीज साफ होती चली जाती है कि सबकुछ अंधेरे में तीर मारने जैसा ही चल रहा है. ये सुरंगें अंदर कहां तक जाती होंगी, किस दिशा में होंगी, इसका कोई ब्लू प्रिंट नहीं है. होगा भी कैसे. दुनिया का सबसे खतरनाक काम, जिसे रैट माइनिंग कहा जाता है, वह ऐसे ही चलता है. और खासकर जब वह चोरी-छिपे अवैध तरीके से चल रहा हो. 

रैट होल का रहस्यमय जाल

दरअसल असम के इस सुदूर पहाड़ी इलाके में कोयला निकालने का जो तरीका है, वह आदिमयुग वाला है. इसे अगर मैं आपको समझाऊं तो यह ऐसा कि एक बड़ा सा गड्डा है. गहराई होगी करीब 310 फीट. इसे आप सुरंगों का दरवाजा मान लीजिए. इस गड्ढे के धरातल पर चार सुरंगें निकली हुई हैं. इसे रैट होल कहते हैं. यह रैट होल धरती के अंदर कुछ इस तरह से घुस गई हैं, जिस तरह से कोई चूहा बिल को खोदता है. कोई तय दिशा नहीं. और हर सुरंग से कई दूसरीं सुरंगें निकली हुई हैं. ये कहां तक जाती हैं, किस तरफ जाती हैं, यह पता लगाना नामुमकिन है. इसका न कोई नक्शा है. न कोई रेकॉर्ड है. न कोई बताने वाला. सुरंगों के इस जाल में फंसे हुए लोग कहां मिल सकते हैं, यह अनुमान लगाना मुश्किल काम है. 

गंदा है, पर धंधा है

सबसे बड़ी बात यह है कि इस पूरे इलाके का कोई जियोलॉजिकल और हाइड्रोलॉजिकल सर्वे नहीं हुआ है. कोयले की इन खदानों के बीच क्या कोई पानी का स्रोत है. क्या यह बांध की झील से लिंक हो सकती है, इसकी भी कोई जानकारी नहीं है. सालों से यह धंधा चला रहा है. अवैध और वैध, दोनों तरह से कोयले की खानों का यह बिजनस जारी है. कभी इस इलाके का कोई सर्वे  न तो असम सरकार ने करवाया और न ही जिला काउंसिल ने, जो कि परमिट देती है. 

उन गरीब की लाशें भी नहीं मिली थीं...

कोयले की खदानों में यह पहली घटना नहीं है. 2018 में दिमा हसाओ से सटे हुए मेघालय के जयंतिया हिल रीजन में कसान जगह में ठीक ऐसी ही घटना घटी थी. उसमें 15 लोग फंस गए थे. दो महीने तक बचाव के लिए ऑपरेशन चलता रहा. पानी नहीं निकल पाया. दो शव जरूर निकले. बाद में ऑपरेशन को बंद कर देना पड़ा. न केंद्र, न राज्य, न स्थानीय प्रशासन, कभी किसी ने इन हादसों से सीख नहीं ली. लोग सब भूल गए. जो मरने वाले थे, वे बहुत गरीब थे. जो वहां काम करते हैं, वे इतने गरीब हैं कि अपनी जिंदगी को दांव पर लगाकर दिन में 2 हजार रुपये कमाने के लिए निकलते हैं. क्योंकि यह पैसा उनकी जिंदगी के लिए बहुत जरूरी है. 

बचाव स्थल पर वे जिंदा लाशें

और इन सबके पीछे जो रोने वाले हैं, उनके परिवार के लोग, वे अभी भी रो रहे हैं. परिवार के लोग चार दिनों से भूखे-प्यासे बैठे हैं. पथरीली आंखों से वह खोए हुए से हैं. बड़े बड़े अधिकारी वहां हैं, लेकिन इन जिंदा लाशों को दिलासा देने का वक्त किसी के पास नहीं है. तो यह है इस घटना का वह मंजर जो मैंने जिया. कह नहीं सकता कि यह ऑपरेशन कब तक चलेगा. कसान की तरह क्या दो महीने? प्रार्थना तो है कि सुरंगों से वे 9 जिंदा लौट आएं. मगर हर बीतता दिन हौसले को तोड़ रहा है. क्या इस घटना से सीख ली जाएगी. शायद नहीं. किसी के लिए असम क्वेरी जाने का रास्ता शायद अगली बार ऐसा ही मिले. भगवान न करे मुझे यहां लौटकर आना पड़े.

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