बीजेपी ने असम विधानसभा चुनाव (Assam Assembly Election Results) में न केवल 10 दलों के महागठबंधन की चुनौती को ध्वस्त किया, बल्कि वो कारनामा किया जो राज्य में कभी भी कोई गैर कांग्रेस सरकार नहीं कर पाई. असम में पहली बार कोई गैर कांग्रेस सरकार लगातार दूसरी बार सत्ता में आ रही है. असम में विपक्षी दलों के महाजोत के मुकाबले बीजेपी की अगुवाई वाला गठबंधन (मित्रजोत) सत्ता में वापसी करता दिख रहा है. इस गठबंधन में असम गण परिषद और यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल शामिल थे.
असम में पहली बार गैर कांग्रेस सरकार 1978 में बनी थी, जब जनता पार्टी सत्ता में आई. लेकिन 18 माह में अंदरूनी गुटबाजी के कारण गोलप बोरबोरा की सरकार गिर गई. असमिया आंदोलन को लेकर राज्य में 1985 और 1996 के बीच राज्य में असम गण परिषद की सरकार बनी, लेकिन वो भी लगातार सत्ता में नहीं रही. वर्ष 2001 से 2016 तक लगातार असम में तरुण गोगोई के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार रही.
1. हिन्दू वोटों को एकजुट किया
नतीजे संकेत दे रहे हैं कि बीजेपी असम में कांग्रेस गठबंधन में शामिल बदरुद्दीन अजमल पर लगातार निशाना साधते हुए बीजेपी हिन्दू वोटों को ध्रुवीकरण करने में सफल रही. 2014, 2016 और 2019 के चुनाव में बीजेपी का शानदार प्रदर्शन इसलिए इस बार भी जारी रहा. ऊपरी और उत्तरी असम में बीजेपी ने क्लीन स्वीप किया.
2. सीएए मुद्दे पर आक्रामक रुख
संशोधित नागरिकता कानून को लेकर चुनाव के शुरुआती दौर में बचाव की मुद्रा में रही बीजेपी ने बाद में खुलकर राय रखी. घुसपैठ का मुद्दा उठाते हुए सत्तारूढ़ पार्टी ने दावा किया कि महागठबंधन सत्ता में आया तो असमिया पहचान खतरे में पड़ जाएगा. माना जा रहा है कि ध्रुवीकरण की यह तरकीब चुनाव में काम करती दिखी.
3. कल्याणकारी योजनाओं का असर
असम में सर्बानंद सोनोवाल सरकार की कल्याणकारी योजनाओं ने भी लगता है कि असर दिखाया है. हजारों की संख्या में बेघरों को भूमि के पट्टे, लाखों आवासों के निर्माण के साथ महिलाओं को वित्तीय सहायता देने वाली उरुनोदोई जैसी स्कीम का असर भी है कि बीजेपी सत्ता विरोधी सुरों की चुनौती को आसानी से तोड़ पाई. मेधावी लड़कियों को स्कूटर देने और अटल अमृत अभियान भी वोटरों के बीच पैठ कायम करने में मददगार रहा. चाय बागान वर्करों के सीधे खाते में मजदूरी से भी सरकार को फायदा होता दिख रहा है.
4. सोशल इंजीनियरिंग की रणनीति
विश्लेषकों का कहना है कि असमिया वोटरों के अलावा बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग की रणनीति पर सफल होती दिख रही है. कार्बी, दिमासा, मीशिग, राभा और तिवा समुदाय के मतदाता भी पार्टी के पक्ष में खड़े दिखाई दिए. महाजोत उन्हें लुभाने में विफल रहा.
5.विपक्षी गठबंधन में रही भ्रम की स्थिति
महागठबंधन भले ही चुनाव के ऐन वक्त में बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट को अपने पाले में लाने में कामयाब रहा, लेकिन बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद क्षेत्र में जिस तरह का प्रभाव माना जा रहा था, वो ये राजनीतिक दल नहीं छोड़ पाया. बोडो मतदाताओं और एआईयूडीएफक के मुस्लिम वोटरों के बीच टकराव ने भी संभवतः महाजोत को नुकसान पहुंचाया. जबकि बीजेपी ने यूपीपीएल को पाले में लाकर बोडो वोटर को लुभाया