अनुच्छेद 35A से छिन गए थे जम्मू-कश्मीर के गैर-निवासियों के अहम अधिकार : सुप्रीम कोर्ट

CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि लेकिन अनुच्छेद 16(1) के तहत एक सीधा अधिकार है, जो छीन लिया गया वह राज्य सरकार के तहत रोजगार था. राज्य सरकार के तहत रोजगार विशेष रूप से अनुच्छेद 16(1) के तहत प्रदान किया जाता है.

विज्ञापन
Read Time: 27 mins
अनुच्छेद 370 मामले पर सुनवाई के दौरान CJI ने की बड़ी टिप्पणी
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 370 की सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने एक बड़ी टिप्पणी की है. उन्होंने सुनवाई के दौरान कहा कि अनुच्छेद 35-A ने नागरिकों के कई मौलिक अधिकारों को छीन लिया है. इसने नागरिकों से जम्मू- कश्मीर में रोजगार, अवसर की समानता, संपत्ति अर्जित करने के अधिकार छीना है. ये अधिकार खास तौर पर गैर-निवासियों से छीने गए हैं.

CJI ने आगे कहा कि राज्य के अधीन किसी भी कार्यालय में रोजगार या नियुक्ति से संबंधित मामलों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समानता, अचल संपत्ति अर्जित करने का अधिकार और राज्य सरकार के तहत रोजगार का अधिकार आता है. ये सब ये अनुच्छेद नागरिकों से छीनता है. ऐसा इसलिए भी क्योंकि ये निवासियों के विशेष अधिकार थे और गैर-निवासियों के अधिकार से बाहर किए गए. उन्होंने कहा कि संवैधानिक सिद्धांत के अनुसार, भारत सरकार एक एकल इकाई है. भारत सरकार एक शाश्वत इकाई है. 

"हमने 2019 में पिछली गलती को सुधार लिया है"

बता दें कि CJI ने यह बात तब कही जब केंद्र की ओर से एसजी तुषार मेहता ने कहा कि पहले की गलती का असर आने वाली पीढ़ियों पर नहीं पड़ सकता है. हमने 2019 में पिछली गलती को सुधार लिया है. इसपर CJI ने कहा कि एक स्तर पर आप सही हो सकते हैं कि भारत का गणतंत्र एक दस्तावेज है जो जम्मू-कश्मीर संविधान की तुलना में उच्च मंच पर है. लेकिन एक और बात यह है कि आपने यह जताने की कोशिश की है कि जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा विधानसभा थी, लेकिन  विधानसभा संविधान सभा नहीं है.

Advertisement

यह सही नहीं हो सकता है क्योंकि अनुच्छेद 238 संविधान सभा की मंज़ूरी के बाद ही विषयों को राज्य के दायरे में लाता है. इसलिए इसे केवल विधानसभा कहना सही नहीं हो सकता है. अनुच्छेद 370 को हटाने को लेकर केन्द्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता दलील रख रहे हैं. 

Advertisement

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सभी मामलों को संशोधन के साथ लागू किया गया था. उदाहरण के लिए, धारा 368 को तो लागू किया गया था लेकिन इस प्रावधान के साथ कि भारतीय संविधान में किया गया कोई भी संशोधन जम्मू-कश्मीर पर तब तक लागू नहीं होगा जब तक कि धारा 370 के रास्ते लागू नहीं किया जाता है. उदाहरण के लिए, भारत के संविधान में संशोधन किया गया और अनुच्छेद 21ए- शिक्षा का अधिकार जोड़ा गया है. यह 2019 तक जम्मू-कश्मीर पर कभी लागू नहीं हुआ क्योंकि इस रूट का पालन ही नहीं किया गया था. 

Advertisement

CJI के तीखे सवाल

इस पर CJI ने कहा कि इसी तरह आपने कहा था कि प्रस्तावना में 1976 में संशोधन किया गया था. इसलिए धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद संशोधन को जम्मू-कश्मीर में कभी नहीं अपनाया गया. फिर एसजी मेहता ने कहा कि हां, यहां तक ​​कि "अखंडता" शब्द भी लागू नहीं किया गया था. रोजगार भी जीने का अधिकार है.

Advertisement

सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि लेकिन अनुच्छेद 16(1) के तहत एक सीधा अधिकार है, जो छीन लिया गया वह राज्य सरकार के तहत रोजगार था. राज्य सरकार के तहत रोजगार विशेष रूप से अनुच्छेद 16(1) के तहत प्रदान किया जाता है. इसलिए जहां एक ओर अनुच्छेद 16(1) को संरक्षित रखा गया, वहीं 35ए ने सीधे तौर पर उस मौलिक अधिकार को छीन लिया और इस आधार पर किसी भी चुनौती से सुरक्षा दी जाती थी. इसी तरह, अनुच्छेद 19 - यह देश के किसी भी हिस्से में रहने और बसने के अधिकार को मान्यता देता है. इसलिए 35ए द्वारा सभी तीन मौलिक अधिकार अनिवार्य रूप से छीन लिए गए. न्यायिक समीक्षा की शक्ति छीन ली गई. 

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दिया जवाब

इसपर, एसजी मेहता  ने कहा यह 2019 तक हुआ. मैं आपसे इस मामले को जम्मू-कश्मीर के लोगों के नजरिए से देखने का आग्रह कर रहा हूं. यहां जिस चीज पर आपत्ति जताई गई है वह सत्ता का संवैधानिक प्रयोग है जो मौलिक अधिकार प्रदान करता है, संपूर्ण संविधान लागू करता है, जम्मू-कश्मीर के लोगों को बराबरी पर लाता है. यह उन सभी कानूनों को लागू करता है जो जम्मू-कश्मीर में कल्याणकारी कानून हैं जो पहले लागू नहीं किए गए थे.इसकी सूची मेरे पास है. अब तक, लोगों को आश्वस्त किया गया था कि यह आपकी प्रगति में बाधा नहीं है, यह एक विशेषाधिकार है जिसके लिए आप संघर्ष करते हैं. अब लोगों को एहसास हो गया है कि उन्होंने क्या खोया है. अब निवेश आ रहा है. अब पुलिसिंग केंद्र के पास होने से पर्यटन शुरू हो गया है.

जम्मू-कश्मीर में परंपरागत रूप से ज्यादा बड़े उद्योग नहीं थे. वे कुटीर उद्योग थे. आय का स्रोत पर्यटन था. अभी 16 लाख पर्यटक आए हैं नए-नए होटल खुल रहे हैं जिससे बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिलता है. संविधान सभा उस अर्थ में कानून बनाने वाली संस्था नहीं है. जम्मू-कश्मीर का संविधान केवल एक कानून के बराबर है, यह एक प्रकार का संविधान नहीं है जैसा कि हम समझते हैं, गवर्नेंस का डाक्यूमेंट्स नहीं है. 2019 तक, जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के  न्यायाधीश "राज्य के संविधान के प्रति सच्ची निष्ठा" का शपथ लेते थे. जबकि उन पर भारत का संविधान लागू करने का दायित्व था. लेकिन उन्होंने जो शपथ ली वह जम्मू-कश्मीर के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त कर रही थी. उन्होंने विधानसभा बहस का हवाला दिया कि संसद ने अनुच्छेद 370 को "अस्थायी प्रावधान" के रूप में देखा. इसपर CJI ने कहा कि ये व्यक्तिगत विचार हैं. अंततः, ये एक सामूहिक रूप में संसद की अभिव्यक्तियां नहीं हैं. 

Featured Video Of The Day
Maharashtra Train Accident: जलगांव ट्रेन हादसे में अब तक 11 की मौत, चश्मदीद ने क्या बताया?
Topics mentioned in this article