अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी (आप) और केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच एक दशक से जारी प्रतिद्वंद्विता आबकारी नीति से जुड़े धनशोधन के मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री की ईडी के हाथों गिरफ्तारी के साथ ही चरम पर पहुंच गयी.
दोनों दलों के बीच यह टकराव सत्ता की ओर उनके तेजी से आगे बढ़ने के साथ शुरू हुई. नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा 2014 में भारी जनादेश हासिल कर केंद्र की सत्ता में आयी तथा एक साल बाद आम आदमी पार्टी ने दिल्ली विधानसभा की 70 में 67 सीट जीतकर दिल्ली में सरकार बनायी.
उससे पहले भी, 2013 में अल्पकाल के लिए दिल्ली का मुख्यमंत्री रहने के बाद केजरीवाल ने 2014 के लोकसभा चुनाव में वाराणसी सीट पर मोदी को चुनौती दी थी जिसके बाद प्रतिद्वंद्विता की जमीन तैयार हुई जो सालों तक जारी है. इस साल फरवरी में विधानसभा में आप संयोजक केजरीवाल ने कहा था कि आप भाजपा के लिए ‘सबसे बड़ा खतरा' है. उन्होंने 2029 के लोकसभा चुनाव में उससे देश को मुक्त कराने का निश्चय किया.
शासन संबंधी मामलों को लेकर केजरीवाल सरकार और केंद्र के बीच टकराव ने दोनों दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का रूप ले लिया. दिल्ली में 2015 में सत्ता में आयी आम आदमी पार्टी सरकार अक्सर उपराज्यपाल के कार्यालय से भिड़ती रही है. उसकी शुरूआत सत्ता में आने के साथ ही भ्रष्टाचार निरोधक शाखा, वरिष्ठ अधिकारियों के स्थानांतरण एवं तैनाती, सरकारी फाइलों के मुद्दों पर तत्कालीन उपराज्यपाल नजीब जंग के साथ केजरीवाल सरकार के टकराव के साथ हुई थी.
आप और उपराज्यपाल कार्यालय के बीच यह तनातनी जंग के दिसंबर 2016 में इस्तीफा देने और पूर्व केंद्रीय गृह सचिव अनिल बैजल के उपराज्यपाल का पदभार संभालने के बाद भी जारी रहा. मई 2022 में वी के सक्सेना के उपराज्यपाल का पदभार संभालने के बाद दोनों पक्षों के बीच टकराव और तीखा हो चला.
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