दिल्ली सरकार की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा दिल्ली पुलिस अधिकारियों की जांच कर सकती है: HC

जस्टिस जसमीत सिंह ने कहा कि जब किसी अथॉरिटी को शिकायत की जाती है, तो शिकायत दर्ज करते समय इसकी जांच करना उसका कर्तव्य और अधिकार है और वह उचित परिश्रम के बाद मामले को देखने के लिए संबंधित अथॉरिटी को स्थानांतरित कर सकता है.  

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कोर्ट ने कहा कि भ्रष्टाचार की शिकायत पर दिल्ली सरकार की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा जांच कर सकती है. 
नई दिल्ली:

दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने सोमवार को कहा कि गृह मंत्रालय (Home Ministry) के तहत आने वाले शहर के पुलिस अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों से संबंधित शिकायत होने पर दिल्ली सरकार (Delhi Government) की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा जांच कर सकती है. जस्टिस जसमीत सिंह ने कहा कि जब किसी अथॉरिटी को शिकायत की जाती है, तो शिकायत दर्ज करते समय इसकी जांच करना उसका कर्तव्य और अधिकार है और वह उचित परिश्रम के बाद मामले को देखने के लिए संबंधित अथॉरिटी को स्थानांतरित कर सकता है.  

अदालत दिल्ली पुलिस के एक उप-निरीक्षक की याचिका पर विचार कर रही थी, जिसने निचली अदालत द्वारा भ्रष्टाचार विरोधी कानून के तहत उसके खिलाफ आरोप तय करने को इस आधार पर चुनौती दी थी कि भ्रष्टाचार निरोधक शाखा केंद्र सरकार के कर्मचारियों से संबंधित अपराधों की जांच नहीं कर सकती है और उसके द्वारा की गई कोई भी कार्रवाई अस्वीकार्य और कानून के खिलाफ होगी. 

इस मामले में शिकायतकर्ता ने भ्रष्टाचार निरोधक शाखा को एक लिखित शिकायत की थी कि याचिकाकर्ता ने उसे शस्त्र लाइसेंस देने के लिए अपनी रिपोर्ट भेजने के लिए रिश्वत के रूप में 20,000 रुपये का भुगतान करने के लिए कहा था और बाद में एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी और उसके खिलाफ दर्ज है. याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि वह अनुशासनात्मक जांच में बरी हो गया है. इसलिए उसे आपराधिक कार्यवाही में दोषी नहीं ठहराया जा सकता है.  

अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता की यह दलील कि भ्रष्टाचार निरोधक शाखा के पास शिकायत के आधार पर उसके मामले की जांच करने का अधिकार नहीं है, ठहर नहीं सकती है.   

अदालत ने एक अन्य मामले में पारित एक पूर्व आदेश का उल्लेख किया और उद्धृत किया ‘अपराध की जांच और मुकदमा चलाने के लिए जीएनसीटीडी के एसीबी को दिल्ली पुलिस अधिकारी के संबंध में भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम के तहत शिकायत पर विचार करने और उस पर कार्रवाई करने का अधिकार है. 

अदालत ने हालांकि वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता को राहत दी और उसके खिलाफ आरोपों के साथ-साथ बाद की कार्यवाही को इस आधार पर खारिज कर दिया कि वह विभागीय कार्यवाही में योग्यता के आधार पर बरी हो गया था.  

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