गुलेल के सहारे जंगलों को हरा-भरा कर रहा है मणिपुर का अनीश, 10 लाख से ज्यादा लगा चुके हैं पेड़

मानसून आते ही अनीश बीजों को गुलेल से बिखेरते रहते हैं और जब तक बरसात खत्म नहीं होती यह सिलसिला चलता रहता है. बीजों के इन गोलों में कई किस्म के बीज होते हैं. यह मणिपुर के बंजर पहाड़ों पर गुलेल से बीज बिखरा हैं और इसके जरिए वहां के एक बड़े हिस्से में हरियाली ले आए हैं.

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मणिपुर 77 फीसदी हिस्सा जंगलों से घिरा है. फिर भी पिछले 30 साल में 800 वर्ग किलोमीटर से कुछ ज्यादा के इलाके के जंगल कट चुके हैं. ऐसे में एक शख्स ने पेड़ लगाने की मुहिम शुरू की है. वो गुलेल के सहारे जंगलों को हरा भरा कर रहा है. पर्यावरण आंदोलनकारी अनीश अहमद मणिपुर के विष्णुपुर जिले के कुआकता गांव में रहते हैं और पेड़ लगाने के लिए मिशन मोड में काम कर रहे हैं.

अनीश अहमद का लक्ष्य ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने का है. अनीश पहले बीज इकट्ठा करके उनके गोले बनाते हैं और फिर गुलेल से ऐसी-ऐसी जगहों पर बिखेर देते हैं, जहां पर इंसानों का पहुंचना भी मुश्किल होता है. पिछले एक दशक से मणिपुर के दुर्गम पहाड़ी इलाकों में इसी मुहिम में लगे हैं और गुलेल चलाकर 10 लाख से भी ज्यादा पेड़ लगा चुके हैं.

अनीश अहमद कहते हैं, "घटते जंगलों को रोकने और जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने के लिए इस तरह से पेड़ लगाने में बहुत आसानी होती है और यह बहुत बड़े पैमाने पर करने की जरूरत है. इसलिए मैं इस अनोखी तरकीब का इस्तेमाल करता रहा हूं. मैं अपनी बचत से यह मुहीम चला रहा हूं. लेकिन समाज को इस काम की अहमियत जरूर समझ में आएगी. मुश्किलों और पैसों की चुनौतियों के बावजूद अनीश अहमद जलवायु संकट से निपटने के लिए अपना काम जारी रखे हैं."

मानसून आते ही अनीश बीजों को गुलेल से बिखेरते रहते हैं और जब तक बरसात खत्म नहीं होती यह सिलसिला चलता रहता है. बीजों के इन गोलों में कई किस्म के बीज होते हैं. यह मणिपुर के बंजर पहाड़ों पर गुलेल से बीज बिखरा हैं और इसके जरिए वहां के एक बड़े हिस्से में हरियाली ले आए हैं.

पेड़-जंगल और हरियाली हमारी सबसे बड़ी जरूरतों में से एक है. बेशक मणिपुर के अनीश अहमद अब सबके लिए एक मिसाल है. उनके जैसे कई और लोग भी हैं जो पर्यावरण को इसी तरह से बचा रहे हैं.

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