Analysis : लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों का संदेश क्या है? संजय पुगलिया ने डिकोड कर दिया 

Election result 2024 : देश में लोकसभा चुनाव संपन्न हो गया है. भाजपा की अगुवाई वाली एनडीए को बहुमत मिला है और अब नरेंद्र मोदी लगातार तीन बार प्रधानमंत्री बनने वाले देश के दूसरे पीएम बनने जा रहे हैं.

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Lok Sabha Election result 2024 : लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों के क्या मायने हैं? 10 साल बाद देश में किसी दल को बहुमत नहीं मिला है. एनडीए को बहुमत मिल गया है लेकिन भाजपा बहुमत से चूक गई. इस तरह से वोट कर जनता ने क्या संदेश दिया? एनडीटीवी के एडिटर इन चीफ संजय पुगलिया ने इसे डिकोड किया. उन्होंने कहा कि 20224 के लोकसभा चुनाव का मैंडेट समझना मुश्किल है, लेकिन नामुमकिन नहीं है. यह अनएक्सपेक्टेड है, क्योंकि हम सब लोग अपने पूर्वाग्रहों के मुताबिक एक ओपिनियन बनाकर बैठे थे कि ये मैंडेट ऐसा आएगा या वैसा आएगा. मैंडेट का मतलब बड़ा सिंपल है कि एक सरकार जो 10 साल से पावर में थी, उसको पब्लिक ने रूल करने के लिए तीसरी बार मौका दिया है. 

क्यों आया ऐसा जनादेश?
संजय पुगलिया ने अपनी बात को विस्तार से समझाते हुए पूछा कि चुनाव में किसको बहुमत मिला है? बहुमत एनडीए को मिला है. एनडीए के नंबर कम हुए हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वो हार गई है तो कोल्ड लॉजिक लगाइए और ऑब्जेक्टिव फैक्ट देखिए कि नरेंद्र मोदी लेड बीजेपी और एनडीए को तीसरी बार जनता ने मौका दिया गया है. पब्लिक ने जनादेश दिया है कि आप गवर्न करिए. कंटिन्यूटी का मैसेज है. इसमें कंटिन्यूटी का मैंडेट है. इस मैंडेट को एक और तरीके से समझने की जरूरत है. पूरे चुनाव में डोमिनेंट फ्लेवर क्या है? वह है एंटी इनकंबेंसी का. नवीन पटनायक के खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी थी. जगन रेड्डी के खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी और बीजेपी के खिलाफ भी एंटी इनकम्बेंसी के पॉकेट्स हैं- जैसे यूपी, जैसे की महाराष्ट्र. वो इसलिए है कि इस डोमिनेंट एंटी इनकम्बेंसी के माहौल में बीजेपी ने दरअसल एंटी इनकम्बेंसी को डक किया है और उसको यह एहसास पहले से ही कहीं ना कहीं रहा होगा, इसीलिए उसने जो रणनीति बनाई, उस वजह से यह नंबर आ पहुंचा है कि एनडीए को क्लियर कट मेजॉरिटी है तो एंटी इनकम्बेंसी थी मगर उसको डक किया है. एलाइज को अच्छा ढूंढा और एक अच्छी तरीके से एक फाइट देने की कोशिश की. दो विधानसभाएं हासिल की और कंटिन्यूटी का मैसेज लेकर के आए और साथ में एक कोएलिशन एरा में लौटकर आना पड़ा. 

जनता क्या चाहती है नई सरकार से?
भारत पिछले 10 साल को छोड़ दीजिए तो लंबे दौर तक कोएलिशन एरा में ही था. गठजोड़ वाले ही सरकारों में था और गठजोड़ की सरकारों का मतलब अस्थिर सरकार नहीं है. पॉलिसी की स्टेबिलिटी और बड़े-बड़े पॉलिसी के रिफॉर्म कोएलिशन गवर्नमेंट के दौरान ही हुए हैं. संजय पुगलिया ने कहा कि अपोजिशन को उम्मीद से ज्यादा कामयाबी मिली है. यही वजह है कि इसके ठीक पहले जब उसने एग्जिट पोल देखे तो शोर मचाना शुरू किया और चुनाव के मैंडेट को डी-लेजिटिमाइज करने का एक माहौल सा बनाया, लेकिन अब सब शांत हैं. किसी को कोई ईवीएम से कंप्लेन नहीं है, क्योंकि विपक्ष को भी बहुत सफलता मिली है. हालांकि, यह सफलता उनको पब्लिक ने दी है. पब्लिक ने तय किया है कि वह क्या ओपिनियन रखते हैं और क्या चाहते हैं, तो पब्लिक क्या चाहती है? पब्लिक एक संतुलन चाहती है. पब्लिक ने सेंटरिस्ट पॉलिटिक्स का रास्ता चुनने के लिए रूल करने वाली पॉलिटिकल पार्टी को मैसेज दिया है. यह बड़ा सिंपल मैसेज और मैंडेट है, लेकिन यह मैंडेट हिस्टोरिक सिर्फ इसलिए है क्योंकि लगातार तीसरी बार बीजेपी को रूल करने का मौका मिला है. 

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क्या कांग्रेस कर सकती है सरकार बनाने का दावा?
संजय पुगलिया बताते हैं कि बीजेपी ने यह भांप लिया था कि शायद तीसरी बार में 10 साल की एंटी इनकम्बेंसी है. इससे मुश्किल हो सकती है, इसीलिए बिल्कुल आखिरी दौर में उसने कितनी सफाई से अपने नए गठजोड़ के सहयोगी चुने. नीतीश कुमार को लाए. चंद्रबाबू नायडू को लाए और एचडी देवेगौड़ा की पार्टी को लाए. बीजेपी की एक दूसरी सफलता देखिए कि उड़ीसा उनके लिए ग्रीन फील्ड स्टेट था. पहली बार बड़े पैमाने पर वहां प्रवेश करना चाहते थे और वहां उड़ीसा के राज्य को अब रूल करने का उनको मौका मिल गया है और बीजेपी चूंकि आंध्र प्रदेश में नायडू के साथ थी तो वहां भी अब वो कोलिशन पार्टनर के तौर पर एक राज्य में और रूलिंग पोजीशन में आ गई है, इसीलिए यह मैंडेट कंटिन्यूटी का है. यह मैंडेट विपक्ष को रूल करने का नहीं है. क्या विपक्ष के पास इतने नंबर हैं कि वह कल को दावा करें राष्ट्रपति के पास जाकर कि वह सरकार बनाना चाहते हैं? इस बीच यह नंबर ऐसे हैं, जिसमें कि हम लोगों को समझ में नहीं आ रहा कि पब्लिक क्या कह रही है तो चर्चा यह चल रही है कि अब यह एलाई छोड़ देगा या वह एलाई छोड़ देगा तो क्या होने वाला है? हमारा मोटा-मोटा अनुमान है कि जो एलाई इस वक्त एनडीए के साथ हैं वो बीजेपी को और एनडीए को छोड़ेंगे नहीं. वह उसके साथ रहेंगे. इसलिए कांग्रेस पार्टी लेड इंडिया एलायंस जो है, उसके पास कोई ऐसा मौका या आधार नहीं है कि वह कह सके कि उसको मैंडेट मिला हुआ है. 100 सीटों के आसपास अगर कांग्रेस पार्टी को मिलता है और वहीं पर बीजेपी को 240 के आसपास मिलता है तो सबसे बड़ी पार्टी कौन है और सबसे बड़ा एलायंस किसके पास है? यह क्लेरिटी रखनी चाहिए. 

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यूपी ने दिखाई अलग राह
अब आते हैं आखिरी बात पर कि इस मैंडेट को बीजेपी किस तरह से पढ़े. संजय पुगलिया ने कहा कि मैंडेट बड़ा साफ है कि आपने (भाजपा ने) बहुत मेहनत की है. बहुत अच्छा काम किया है लेकिन हमको (जनता को) ऐसा लगता है कि हमारी जो एस्पिरेशन है और आपने जो किया है- परफॉर्मेंस में गैप है, इसीलिए हम आपको एक लिमिटेड मैंडेट दे रहे हैं और अब आप गवर्न करके दिखाइए क्योंकि ये तीसरा कार्यकाल है तो बहुत अच्छे से पता है बीजेपी को और एनडीए को कि अब परफॉर्मेंस के पैरामीटर बदलने पड़ेंगे और वहां पर हमको लगता है कि जो पॉलिसी की कंटिन्यूटी है वो रहेगी और हाई ग्रोथ का रास्ता चुनना पड़ेगा जो नौकरियां क्रिएट करें. तीसरी बात और आखिरी बात है कि जब हम कहते हैं कास्ट की पॉलिटिक्स चलती है, रिलीजन की चलती है तो सोशल रियलिटीज बड़ी साफ हैं. गरीबों (पिछड़े और दलितों) ने कहा है कि हमको हमारा उत्थान भी चाहिए और हमको पावर में प्रतीकात्मक नहीं असली शेयर भी चाहिए. यह मैसेज यूपी से आया है. आप लब्बोलुबाब यह देखिए कि पूरा जो मैंडेट है, यूपी को बाहर निकाल दें तो आप पाएंगे कि यह मैंडेट कंटिन्यूटी का है. एक स्ट्रांग और स्थिर और एक कंटिन्यूटी वाली सरकार चलाने का है. 

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