अग्निपथ योजना सरकार के गले की फांस बनती जा रही है. इसका अंदाजा अब इस बात से लगा लीजिए की एमपी के सीएम शिवराज सिंह चौहान के आश्वासन के बाद भी राज्य में हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए. ग्वालियर में भीषण झड़प और पथराव के एक दिन बाद इंदौर के लक्ष्मीबाई नगर रेलवे स्टेशन से हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए. प्रदर्शनकारियों ने दो ट्रेनों को अवरुद्ध कर दिया और कम से कम पांच पुलिसकर्मियों को घायल कर दिया. जिसमें एक सब-इंस्पेक्टर भी शामिल था, जिसके कान पर पत्थर से वार किया गया था.
भीड़ को रोकने के लिए इंदौर के महू छावनी शहर की सुरक्षा के लिए सेना के जवानों को बुलाया गया था. विरोध प्रदर्शनों देख साफ मालूम पड़ रहा है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का आश्वसान भी किसी काम नहीं आया. दरअसल एमपी सीएम ने बुधवार को घोषणा की थी कि राज्य पुलिस सेवा भर्ती में 'अग्निवीर' को प्राथमिकता दी जाएगी. उन्होंने कहा था कि अग्निपथ योजना के तहत सेवा देने वाले सैनिकों को मध्य प्रदेश पुलिस में भर्ती में प्राथमिकता दी जाएगी. अप्रैल से विरोध प्रदर्शन कर रहे पूर्व सैनिकों ने उनके वादों पर सवाल उठाए हैं, उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य सरकार ने इस साल पूर्व सैन्य कर्मियों के लिए पुलिस में 10 प्रतिशत आरक्षण को समाप्त कर दिया है.
विरोध प्रदर्शन में भाग लेने वाले एक सेवानिवृत्त सैनिक अनिल सिंह ने कहा, "हमें 1999 से 10 प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिल रहा है, लेकिन राज्य सरकार ने इसे रोक दिया है. हम राज्य सरकार से हमारे अनुरोध पर विचार करने का अनुरोध कर रहे हैं." इस मामले को लेकर कुछ पूर्व सैनिकों ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय का भी दरवाजा खटखटाया है, जिसने राज्य सरकार और मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग (एमपीपीएससी) को सेवानिवृत्त सैन्यकर्मियों को आरक्षण का लाभ नहीं देने के लिए नोटिस जारी किया है.
याचिकाकर्ताओं ने एक याचिका में दावा किया कि पूर्व सैनिकों को एमपीपीएससी-2019 भर्ती में जो वादा किया गया था उस पर अमल नहीं किया गया. मानदंडों के तहत, पूर्व सैनिकों को राज्य पुलिस बल में भर्ती के लिए शारीरिक मानक परीक्षणों में छूट मिलती है. ग्रुप 'सी' पदों में उनके लिए दस प्रतिशत और ग्रुप 'डी' पदों में 20 प्रतिशत रिक्तियां आरक्षित हैं. उन्हें औद्योगिक भूखंडों, शेडों और उचित मूल्य की दुकानों के आवंटन में भी प्राथमिकता मिलती है.
हाल ही में, मध्य प्रदेश पुलिस में कांस्टेबल के 6,000 पदों के लिए 30,000 से अधिक उम्मीदवारों ने आवेदन किया था. नियमों के मुताबिक पूर्व सैनिकों के लिए करीब 600 सीटें आरक्षित की जानी थीं, लेकिन इसमें सिर्फ छह का ही चयन हुआ. याचिकाकर्ता नरिंदर पाल सिंह रूपरा के वकीलों ने कहा, "मैंने अजीत सिंह और 32 अन्य की ओर से पहली याचिका पेश की, जिसके मुताबिक पूरे मध्य प्रदेश में एक भी पूर्व सैनिक का चयन नहीं किया गया. आरक्षित सीटों को कहीं भी स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है."
नरिंदर पाल सिंह रूपरा ने कहा, "पहली याचिका में, मुझे निर्देश दिया गया था कि पूर्व सैनिकों में से एक भी उम्मीदवार का चयन नहीं किया गया था. हमने एक आरटीआई भी दायर की और पता चला कि पूरे मध्य प्रदेश से केवल छह उम्मीदवारों का चयन किया गया था, यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है." "जबकि 3,000 पूर्व सैनिकों का चयन किया जाना था, केवल छह लोगों को वास्तव में लिया गया था. मैंने यह कहते हुए एक याचिका दायर की कि यह गलत है," जब सरकार से इस बारे में पूछा गया तो उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं मिला.