जस्टिस यशवंत वर्मा Vs जस्टिस शेखर यादव : प्रक्रिया में फंसे दो मामले

एक्ट में प्रावधान किया गया है कि, "ऐसे आरोपों के साथ-साथ उन आधारों का विवरण भी जज को सूचित किया जाएगा जिन पर प्रत्येक आरोप आधारित है और उन्हें समिति द्वारा इस संबंध में निर्दिष्ट समय के भीतर बचाव का लिखित बयान प्रस्तुत करने का उचित अवसर दिया जाएगा "

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नई दिल्ली:

इलाहाबाद हाईकोर्ट से जुड़े दो जजों पर आरोप लगे. एक जस्टिस शेखर यादव पर हेट स्पीच देने के, जबकि जस्टिस यशवंत वर्मा के घर के जला हुआ कैश मिला. लेकिन जजेज इनक्वायरी एक्ट और इन हाउस प्रॉसीजर ( आंतरिक जांच प्रक्रिया ) के दो प्रावधानों ने एक जज जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ आगामी संसद सत्र में ही हटाने के प्रस्ताव को शुरु करने के मुहाने पर पहुंचा दिया. लेकिन दूसरे जज जस्टिस शेखर यादव का क्या होगा, ये भी तय नहीं है. 

दरअसल, जैसे ही जस्टिस यादव का पिछले साल 8 दिसंबर को वीएचपी के एक कार्यक्रम में दिए गए आपत्तिजनक भाषण सामने आया तो वरिष्ठ वकील और सांसद कपिल सिब्बल के नेतृत्व में 55 सांसदों ने 13 दिसंबर को ही उनके खिलाफ राज्यसभा स्पीकर यानी उपराष्ट्रपति को हटाने का प्रस्ताव सौंप दिया था. इसके चलते सुप्रीम कोर्ट इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज शेखर कुमार यादव के खिलाफ इन हाउस जांच शुरू नहीं कर सका. राज्य सभा सचिवालय ने मार्च में ही इस मामले की सूचना सुप्रीम कोर्ट में सेकेट्ररी जनरल को पत्र लिखकर दे दी थी. इससे जजेज इन्कवायरी एक्ट के तहत अनिवार्य प्रक्रिया शुरू हो गई. जिसके अनुसार अगर राज्यसभा अध्यक्ष प्रस्ताव स्वीकार करते हैं, तो उन्हें तीन सदस्यीय जांच पैनल का गठन करना होगा, जिसमें मुख्य न्यायाधीश या सुप्रीम कोर्ट के जज, हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और एक ‘प्रख्यात न्यायविद' शामिल होंगे, जो उन आधारों की जांच करेंगे, जिनके आधार पर संबंधित जज को हटाने की मांग की गई है. इसके बाद समिति संबंधित जज के खिलाफ आरोप तय करेगी.

एक्ट में प्रावधान किया गया है कि, "ऐसे आरोपों के साथ-साथ उन आधारों का विवरण भी जज को सूचित किया जाएगा जिन पर प्रत्येक आरोप आधारित है और उन्हें समिति द्वारा इस संबंध में निर्दिष्ट समय के भीतर बचाव का लिखित बयान प्रस्तुत करने का उचित अवसर दिया जाएगा "

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राज्यसभा स्पीकर को निष्कासन प्रस्ताव प्रस्तुत करने के चार दिन बाद, तत्कालीन CJI संजीव खन्ना के नेतृत्व वाले कॉलेजियम ने महसूस किया कि उनके पास आंतरिक जांच प्रक्रिया उपलब्ध नहीं थी क्योंकि मामला पहले से ही राज्यसभा अध्यक्ष के विचाराधीन है. राज्यसभा सचिवालय ने तत्कालीन सीजेआई को इसकी जानकारी दी. इसके बाद से इस मामले में जो भी होगा वो राज्यसभा में ही होगा. CJI या सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले में कोई दखल नहीं दे सकता.

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वहीं, दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के आधिकारिक आवास में 14 मार्च को आग लगी और भारी मात्रा में नकदी पाई गई. लेकिन किसी सांसद ने उनके खिलाफ निष्कासन प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने के लिए सांसदों (राज्यसभा में न्यूनतम 50 सांसद या लोकसभा में 100 सांसद) को इकट्ठा करने की कोशिश नहीं की. चूंकि एक सप्ताह से अधिक समय तक कोई निष्कासन प्रस्ताव नहीं आया, इसलिए तत्कालीन CJI खन्ना ने आंतरिक प्रक्रिया शुरू की और एक अनौपचारिक जांच का आदेश दिया और तीन जजों की कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में साफ कर दिया कि जस्टिस वर्मा के घर से कैश मिला था.

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इसके बाद जस्टिस खन्ना ने जजेज इन्कवायरी एक्ट और संविधान के तहत निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार जस्टिस वर्मा के खिलाफ हटाने का प्रस्ताव शुरू करने के लिए पीएम और राष्ट्रपति को जांच रिपोर्ट भेज दी, जिस पर सरकार का कहना है कि आगामी मानसून सत्र में जस्टिस वर्मा के खिलाफ प्रस्ताव लाने की तैयारी है.

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दरअसल, पिछले साल 17 दिसंबर को, CJI खन्ना की अगुवाई में कॉलेजियम में चार सबसे वरिष्ठ जज - जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस ए एस ओक शामिल थे. जस्टिस यादव के 8 दिसंबर के भाषण की समाचार रिपोर्टों पर ध्यान दिया और 10 दिसंबर को इस मुद्दे की जांच के लिए हाईकोर्ट से भाषण का "विवरण और जानकारी " मांगी थी.

जस्टिस यादव 17 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में कॉलेजियम के सामने पेश हुए और अपने भाषण के उद्देश्य, अर्थ और संदर्भ को स्पष्ट करने की पेशकश की, जबकि उन्होंने कहा कि मीडिया ने अनावश्यक विवाद पैदा करने के लिए उनके भाषण से चुनिंदा उद्धरण दिए. लेकिन कॉलेजियम उनके स्पष्टीकरण से सहमत नहीं था और भाषण में उनके द्वारा कुछ बयानों को जिस लापरवाही से पेश किया गया था, उसके लिए उन्हें फटकार लगाई थी. कॉलेजियम ने उनसे कहा कि संवैधानिक पद पर होने के नाते एक HC या SC जज का आचरण, व्यवहार और भाषण लगातार जांच के दायरे में रहता है और इसलिए उनसे उच्च पद की गरिमा बनाए रखने की अपेक्षा की जाती है.

इसके बाद ये मामला यहीं रुक गया और 13 फरवरी को राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने स्पष्ट किया कि केवल संसद को ही हाईकोर्ट जज को संवैधानिक रूप से हटाने का अधिकार है, क्योंकि जस्टिस शेखर यादव को हटाने का नोटिस उनके पास लंबित है.

राज्यसभा  सभापति ने राज्यसभा महासचिव से यह जानकारी सुप्रीम कोर्ट सेकेट्ररी जनरल को भी साझा करने को कहा कि उच्च सदन के 55 सदस्यों ने संविधान के अनुच्छेद 124(4) के तहत जस्टिस यादव को हटाने की मांग करते हुए सभापति को नोटिस दिया है.

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