महाराष्‍ट्र विधानसभा का शीतकालीन सत्र कल से, अजित पवार ने सरकार के इस आमंत्रण को ठुकराया

अजित पवार ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार ने हमें चाय पार्टी के लिए आमंत्रित किया है लेकिन हम इस निमंत्रण का बहिष्कार कर रहे हैं. इसके साथ ही उन्‍होंने एक बार फिर महाराष्ट्र की हस्तियों के अपमान का मामला उठाया.

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अजित पवार ने महाराष्‍ट्र सरकार पर हमला बोला है. (फाइल)
मुंबई:

महाराष्‍ट्र में शिंदे सरकार और महाविकास अघाड़ी के बीच छिड़ा घमासान थमने का नाम नहीं ले रहा है. महाविकास अघाड़ी के नेता विभिन्‍न मुद्दों को लेकर सरकार पर लगातार निशाना साधा रहे हैं. ऐसे में अब राष्‍ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजित पवार ने विधानसभा सत्र के पहले होने वाली महाराष्‍ट्र सरकार की चाय पार्टी के आमंत्रण को ठुकरा दिया है. साथ ही पवार ने महाराष्‍ट्र की विभिन्‍न हस्तियों के अपमान और कर्नाटक से सीमा विवाद के मुद्दे पर राज्‍य सरकार को घेरा है. माना जा रहा है कि महाराष्‍ट्र में आगामी विधानसभा सत्र हंगामेदार हो सकता है. महाराष्‍ट्र विधानसभा का शीतकालीन सत्र सोमवार से नागपुर में शुरू होने जा रहा है. 

अजित पवार ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार ने हमें चाय पार्टी के लिए आमंत्रित किया है लेकिन हम इस निमंत्रण का बहिष्कार कर रहे हैं. बता दें कि इस तरह का आयोजन महाराष्‍ट्र विधानसभा के हर सत्र से पहले होता है. 

इसके साथ ही उन्‍होंने एक बार फिर महाराष्ट्र की हस्तियों के अपमान का मामला उठाया और कहा कि कोई माफी मांगने को भी तैयार ही नहीं हैं. राष्‍ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने एक दिन पहले 'हल्‍ला बोल' मार्च में महाराष्‍ट्र के राज्‍यपाल भगत सिंह कोश्‍यारी के बयानों को लेकर उन्‍हें हटाने की मांग की थी. 

अजित पवार ने महाराष्‍ट्र-कर्नाटक सीमा विवाद का मुद्दा भी उठाया. उन्‍होंने कहा कि बेलगाम, करवार, निपानी को महाराष्ट्र में शामिल किया जाना चाहिए, लेकिन महाराष्ट्र के कई शहर अब इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि क्या उन्हें कर्नाटक में जाना चाहिए, महाराष्ट्र के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ. 

साथ ही उन्‍होंने कई परियोजनाओं के दूसरे राज्‍यों में जाने को लेकर भी शिंदे सरकार पर निशाना साधा है. अजित पवार ने कहा कि महाराष्ट्र की कई परियोजनाओं को अब दूसरे राज्यों में स्थानांतरित कर दिया गया है. इन परियोजनाओं से लाखों लोगों को रोजगार मिलता और करोड़ों का राजस्व प्राप्‍त होता. राज्य सरकार को केंद्र में जाकर इसके लिए लड़ना चाहिए था, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. 

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