- सुप्रीम कोर्ट ने जनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के दुरुपयोग से जुड़ी जनहित याचिका पर सोमवार को सुनवाई की
- मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने कहा कि न्यायपालिका को AI और डिजिटल टूल्स के गलत इस्तेमाल की जानकारी है
- याचिका में केंद्र सरकार से न्यायिक संस्थाओं में GenAI उपयोग के लिए व्यापक नीति या कानून बनाने की मांग की गई
सुप्रीम कोर्ट में एआई जेनेरेटेड फोटो-वीडियो मामले पर सुनवाई के दौरान CJI बोले कि हमने अपनी मॉर्फ की हुई तस्वीरें भी देखी हैं. कोर्ट ने सोमवार को जनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (GenAI) के दुरुपयोग को लेकर दायर एक जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई की. इस दौरान मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने कहा कि न्यायपालिका इस बात से भली-भांति अवगत है कि AI और डिजिटल टूल्स का किस तरह से गलत इस्तेमाल किया जा रहा है. CJI गवई ने सुनवाई के दौरान मुस्कुराते हुए कहा- हां हां, हमने अपनी मॉर्फ की हुई तस्वीरें भी देखी हैं.
सीजेआई ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अनुपम लाल दास से यह भी पूछा, आप चाहते हैं कि इसे अभी खारिज कर दें या दो हफ्ते बाद देखें? इसके बाद पीठ ने मामले को दो हफ्ते बाद के लिए स्थगित कर दिया.
AI और जनरेटिव एआई में अंतर!
यह याचिका वकील कार्तिकेय रावल ने दायर की है, जिसमें केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग की गई है कि वह न्यायिक और अर्ध-न्यायिक संस्थाओं में GenAI के उपयोग के लिए व्यापक नीति या कानून बनाए. याचिका में कहा गया है कि सामान्य एआई (AI) और जनरेटिव एआई (GenAI) में अंतर है. GenAI नई और काल्पनिक जानकारी उत्पन्न कर सकती है. जिससे झूठे केस लॉ, एआई बायस (AI Bias) और ‘हैलुसिनेशन' जैसी स्थितियां पैदा हो सकती हैं.
मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने कहा कि GenAI की 'ब्लैक बॉक्स' प्रकृति और पारदर्शिता की कमी भारतीय न्याय प्रणाली में अस्पष्टता और मनमानी ला सकती है, जो संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है. याचिका में यह भी कहा गया है कि GenAI द्वारा उपयोग किए जाने वाले डेटा में मौजूद सामाजिक पूर्वाग्रह, भेदभाव और रूढ़िवादिता न्यायिक निष्पक्षता को प्रभावित कर सकते हैं. इसलिए, न्यायपालिका में एआई के उपयोग के लिए यह आवश्यक है कि डेटा निष्पक्ष, पारदर्शी और जवाबदेह हो.













