AGR बकाया विवाद : क्यों SC से झटके पर झटके खा रही हैं टेलीकॉम कंपनियां? यहां समझिए क्या है पूरा मामला

AGR Dues Case : सुप्रीम कोर्ट ने टेलीकॉम कंपनियों को बकाया एजीआर चुकाने के लिए 10 साल का समय दिया था लेकिन फिर कंपनियों की ओर से कहा गया कि बकाये की गणना में गलतियां हुई हैं और प्रविष्टियों में दोहराव भी पाया गया है.

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AGR Dues Case Hearing में टेलीकॉम कंपनियों को SC से आज फिर झटका. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
नई दिल्ली:

AGR बकाये यानी Adjusted Gross Revenue (समायोजित सकल राजस्व) पर कानूनी लड़ाई देख रही टेलीकॉम कंपनियों को सुप्रीम कोर्ट से फिर से झटका मिला है. शीर्ष अदालत ने वोडाफोन आइडिया, भारती एयरटेल और टाटा जैसी बड़ी टेलीकॉम कंपनियों ने उनके द्वारा चुकाए जाने वाले एजीआर बकाया की गणना में गलतियों का आरोप लगाते हुए दायर की गई याचिकाओं को शुक्रवार को खारिज कर दिया है.

सुप्रीम कोर्ट ने इन कंपनियों को बकाया एजीआर चुकाने के लिए 10 साल का समय दिया है, लेकिन फिर कंपनियों की ओर से कहा गया कि बकाये की गणना में गलतियां हुई हैं और प्रविष्टियों यानी एन्ट्रीज़ में दोहराव भी पाया गया है. कोर्ट ने 19 जुलाई को इसपर सुनवाई कर फैसला सुरक्षित रखा था और आज उनकी अर्जियां खारिज कर दी गई हैं.

सुप्रीम कोर्ट का क्या है फैसला?

टेलीकॉम कंपनियों की इस विषय पर दूरसंचार विभाग के साथ कानूनी लड़ाई चली है. विभाग ने कोर्ट में एक हलफनामे में कहा था कि बकाये वाली कंपनियों को 20 साल का वक्त दिया जाए कि वो अपना पूरा बकाया इस दौरान चुका दें. इसमें सलाना किस्तों के हिसाब से पेमेंट करने का प्रस्ताव था. हालांकि शीर्ष अदालत ने पिछले साल सितंबर में बकाया राशि का भुगतान करने के लिए एजीआर से संबंधित 93,520 करोड़ रुपये का भुगतान करने के लिए संघर्ष कर रही कंपनियों को 10 साल का समय दिया था.

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कोर्ट ने यह भी कहा था कि टेलीकॉम कंपनियों को 31 मार्च 2021 तक दूरसंचार विभाग द्वारा मांगे गए कुल बकाये का 10 प्रतिशत भुगतान करना होगा और बाकी राशि एक अप्रैल, 2021 से 31 मार्च, 2031 तक सालाना किस्तों में चुकाई जा सकती है. आदेश में ऐसा कहा गया था कि कंपनियों को हर साल 7 फरवरी को या उससे पहले किस्त भरनी होगी. अगर ऐसा नहीं होता है तो पहला तो उनपर ब्याज बढ़ेगा, दूसरे उनपर कोर्ट की अवमानना की कार्रवाई भी हो सकती है.

एजीआर बकाया के संबंध में दूरसंचार विभाग की मांग को अंतिम मानते हुए शीर्ष अदालत ने कहा था कि दूरसंचार कंपनियों कोई विवाद पैदा नहीं करेंगी और कोई पुनर्मूल्यांकन नहीं होगा.

AGR मामला क्या है?

भारत में काम करने वाली टेलीकॉम कंपनियों को अपने राजस्व का एक हिस्सा लाइसेंस फीस के तौर पर और सरकारी स्पेक्ट्रम का इस्तेमाल करने के लिए स्पेक्ट्रम चार्ज के तौर पर दूरसंचार विभाग को चुकाना पड़ता है. अब एक मसला यहां यह है कि विभाग ने AGR की अपनी परिभाषा में कहा है कि टेलीकॉम कंपनियों को AGR निकालने के लिए अपने राजस्व में गैर-टेलीकॉम स्रोतों जैसे कि डिपॉजिट ब्याज और संपत्तियों को बेचने से मिले लाभ को भी इसमें जोड़ना होगा. टेलीकॉम कंपनियों को यहीं दिक्कत थी.

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उन्होंने इस परिभाषा को सुप्रीम कोर्ट सहित कई फोरमों में चुनौती दी थी. अक्टूबर, 2019 में कोर्ट ने इस मामले में फैसला देते हुए दूरसंचार विभाग की परिभाषा का पक्ष लिया. अदालत ने कहा था कि कंपनियों को बकाया, बकाये पर जुर्माने और देरी होने से जुर्माने पर बने ब्याज को चुकाना होगा. 

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कंपनियों ने इस फैसले को रिव्यू करने की अपील की थी, जिसे कोर्ट ने फिर खारिज कर दिया था और बकाया चुकाने के लिए डेडलाइन दी थी.

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किस पर कितना था बकाया?

एजीआर बकाये पर फैसला आने तक भारती एयरटेल पर 36,000 करोड़ बकाया था, हालांकि, फैसले तक कंपनी ने 40 फीसदी का बकाया चुका दिया था. वोडाफोन आइडिया के लिए स्थिति काफी गंभीर रही है. कंपनी पर 58,000 करोड़ का बकाया था. दोनों कंपनियों ने उस वक्त 15 साल का वक्त मांगा था, लेकिन आखिरी अपडेट तक उनके पास हिसाब-किताब चुकता करने के लिए 10 साल का वक्त है.

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