जिबूती में चीन अपने पहले विदेशी सैन्य अड्डे पर एयरक्राफ्ट कैरियर, बड़े युद्धपोत और पनडुब्बियों (Aircraft carriers, large warships and submarines) को तैनात कर सकता है. इसे ऐसा कदम माना जा रहा है जिसका भारतीय नौसेना के लिए गहरा सुरक्षा प्रभाव होगा. चीन के इस विदेशी सैन्य अड्डों से जुड़ी खास बातें अमेरिका के रक्षा विभाग की वार्षिक रिपोर्ट में प्रकाशित की गई है जिसे अमेरिकी कांग्रेस के समक्ष पेश किया गया है. रविवार को जारी यह रिपोर्ट एनडीटीवी की ओर से इस सैन्य अड्डे की हाई रिजॉल्यूशन सैटेलाइट तस्वीरें प्रकाशित किए जाने के करीब चार माह से भी समय में आई है. इन तस्वीरों में एक बड़े चीनी नौसेना के जहाज को डॉक (गोदी) में देखा जा सकता है. यह चीन के Assault forces का आधारस्तंभ है.
अमेरिकी रक्षा विभाग की यह 2022 चीन सैन्य शक्ति रिपोर्ट (2022 China Military Power Report) बताती है, "मार्च 2022 में FUCHI II श्रेणी (Type 903A) के आपूर्ति जहाज ने 450 मीटर के एक हिस्से में ठिकाना बनाया. जिबूती बेस पर ठिकाना बनाने वाला यह पहला जहाज था, जिससे पता चला कि यह Pier अब चालू हो गया है."रिपोर्ट बताती है, "यह स्थान PLA नौसेना के एयर क्राफ्ट कैरियर, अन्य बड़ी पनडुब्बियों को समायोजित करने में सक्षम है. " यह पहली बार नहीं है जब अमेरिका ने चीन द्वारा हिंद महासागर क्षेत्र में विमान वाहक तैनात करने की तैयारी की आशंका जताई है. वर्ष 2017 में यूएस पैसिफिक कमांड की कमान संभाल रहे एडमिरल हैरी हैरिस जूनियर ने NDTV से कहा था, "उन्हें हिंद महासागर में आगे बढ़ने से रोकने के लिए कुछ भी नहीं है."
तब से, चीन अपने एयरक्राफ्ट कैरियर विकसित करने में व्यस्त रहा है. अब उसके पास तीन परिचालन पोत (Operational ship) हैं, जिनमें से हर पोत पिछले वाले की तुलना में अधिक सक्षम है. दूसरी ओर, भारतीय नौसेना के पास इस समय दो एयरक्राफ्ट कैरियर आईएनएस विक्रमादित्य और आईएनएस विक्रांत हैं जो अभी भी पूरी तरह से संचालित होने से कुछ महीने दूर हैं.
अमेरिकी रिपोर्ट में कहा गया है, "PLA नौसेना जहाज, पहिएदार बख्तरबंद वाहनों और तोपखाने के साथ जिबूती बेस पर तैनात हैं." रिपोर्ट यह भी कहती है कि जिबूती बेस में तैनात चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) बलों ने ड्रोन उड़ाकर अमेरिकी फ्लाइट्स में हस्तक्षेप किया है.दूसरे शब्दों में कहें तो अमेरिकी सेना का मानना है कि क्षेत्र में तैनात चीनी बलों ने क्षेत्र में अमेरिकी फ्लायर्स के 'विजन' को अस्थायी रूप से ब्लाइंड या खराब करने के लिए जमीन आधारित लेजर का उपयोग किया है, इन्होंने अमेरिकी ड्रोन को भी निशाना बनाया है. जिबूती के बेस से यह प्रतीत होता है कि बीजिंग उन स्थानों की पहचान और वहां की जमीन हासिल करने का प्रयास कर रहा है जहां वह अपनी सैन्य उपस्थिति का विस्तार कर सकता है.
590 मिलियन डॉलर की लागत से निर्मित और 2016 से निर्माणाधीन, जिबूती सैन्य अड्डा बाब-एल-मंडेब जलडमरूमध्य पर स्थित है. यह अंतरराष्ट्रीय व्यापार के सबसे महत्वपूर्ण चैनलों में से एक है जो स्वेज नहर की ओर जाता है. भारतीय नौसेना के लिए इस सैन्य अड्डो का संचालन कई अहम सवाल खड़े करता है.
भारतीय नौसेना के लिए, इस बेस का संचालन एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठाता है. भारत के पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल अरुण प्रकाश (सेवानिवृत्त) कहते हैं, प्रकाश कहते हैं, "भारत के लिए यह एक संकेत है कि एक चीनी स्क्वाड्रन, हिंद महासागर के नजदीक आ रहा है. इस स्क्वाड्रन को क्या एक एयरक्राफ्ट कैरियर लीड करेगा?"
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