आखिर क्यों नाराज़ थे दिग्गज नेता, कांग्रेस से 'आज़ाद' होने के पीछे 'गुलाम' की क्या है रणनीति...?

राज्यसभा में गुलाम नही आज़ाद को विदाई देते हुए ने अपने भाषण में PM मोदी ने कहा था,”मैं फिर एक बार उनकी सेवाओं के लिए आदरपूर्वक धन्यवाद करता हूं और व्यक्तिगत रूप से भी मेरा उनसे आग्रह रहेगा कि मन से मत मानो कि आप इस सदन में नहीं हो. आपके लिए मेरे द्वार हमेशा खुले रहेंगे...”

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नई दिल्ली:

कांग्रेस के दिग्गज नेता गुलाम नबी आजाद ने आज पार्टी की प्राथमिक सदस्यता समेत सभी पदों से इस्तीफा दे दिया. यह कोई अचानक उठाया गया कदम नहीं है. उन्होंने लम्बे समय से पार्टी नेतृत्व को अपनी नाराजगी का एहसास कराया है. सूत्रों के मुताबिक, गुलाम नबी की यह नाराजगी तब से शुरू हुई जब से पार्टी आलाकमान ने उन्हें दोबारा राज्यसभा न भेजने का फैसला ले लिया था. बहरहाल, अभी कुछ दिन पहले ही उन्होंने कश्मीर में पार्टी के प्रचार समिति से इस्तीफा दे दिया था.

आजाद ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पांच पन्नों का अपना इस्तीफा पत्र भेजा है. इस पत्र में गुलाम नबी आजाद ने कहा है कि पार्टी नेता राहुल गांधी अनुभवहीन लोगों से घिरे हुए हैं. उन्होंने पत्र में लिखा है,” बड़े अफसोस और बेहद भावुक दिल के साथ मैंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से अपना आधा सदी पुराना नाता तोड़ने का फैसला किया है." गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को निशाने पर लेते हुए आरोप लगाया है कि राहुल गांधी के अध्यक्ष (2013) बनने के बाद पुरानी कांग्रेस को खत्म कर दिया गया, जिसके कारण धीरे-धीरे पार्टी के जमीनी नेता दूर हो गए.

दरअसल, गुलाम नबी आज़ाद की नाराजगी उसी दिन झलक गई थी जब राज्यसभा से उन्हें विदाई दी जा रही थी. राज्यसभा का वो विदाई समारोह आज भी इसलिए याद किया जाता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सदन में गुलाम नबी के सम्मान में दिए गए भाषण के दौरान रोने लग गए थे. राज्यसभा में वो लम्हा काफी भावुक और गमगीन था. अपने भाषण में पीएम मोदी ने कहा था,” मैं फिर एक बार उनकी सेवाओं के लिए आदरपूर्वक धन्यवाद करता हूं और व्यक्तिगत रूप से भी मेरा उनसे आग्रह रहेगा कि मन से मत मानो कि आप इस सदन में नहीं हो. आपके लिए मेरे द्वार हमेशा खुले रहेंगे.”

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इसके बाद आजाद ने भी जमकर पीएम मोदी की तारीफ की थी. उन्होंने कहा था कि लोगों को पीएम मोदी से सीखना चाहिए. गुलाम नबी आज़ाद की यह विदाई साल 2021 के फरवरी महीने के शुरूआती हफ्ते में हुई थी. इस समारोह के बाद से कभी गांधी परिवार के सिपहसालार माने जाने वाले गुलाम नबी आजाद ने सोनिया-राहुल गांधी से दूरी बनानी शुरू कर दी.

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दूसरी तरफ भाजपा की भी कोशिश रही कि वो गुलाम नबी को रिझाते रहे. राज्यसभा से अश्रुपूर्ण विदाई के बाद भाजपा ने इसी साल मार्च महीने में आज़ाद को पद्म भूषण पुरस्कार से नवाजा. भले ही सार्वजनिक क्षेत्रों में उनके “योगदान” को लेकर ये पुरस्कार दिया गया हो लेकिन इस पुरस्कार के बड़े राजनीतिक मायने निकाले जा रहे थे.

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इतना ही नहीं, गुलाम नबी अपनी तरफ से भी कांग्रेस नेतृत्व को पिछले दो-तीन वर्षों से खुलकर चुनौती दे रहे थे. असंतुष्ट कांग्रेसियों के समूह G23 के वे निर्विवाद रूप से नेता रहे हैं. दरअसल कांग्रेस के अंदर वो बागी कांग्रेस खेमे की आवाज बनकर उभर रहे थे. G23 हमेशा ही पार्टी में बड़े बदलावों की पैरवी करता रहा है. इसी खेमे के एक दिग्गज नेता कपिल सिब्बल ने अभी  हाल में ही पार्टी से अपना नाता तोड़ लिया था.  

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बहरहाल, कांग्रेस नेतृत्व की तरफ से भी उन्हें खुश रखने की कोशिश होती रही है. इसी महीने 16 अगस्त को कांग्रेस ने आजाद को जम्मू-कश्मीर प्रदेश कैंपेन कमेटी का अध्यक्ष बनाया था. लेकिन नियुक्ति पत्र मिलने के दो घंटे के अंदर ही यह कहते हुए कि “ये मेरा डिमोशन है”, उन्होंने इस्तीफा दे दिया था. कांग्रेस आलाकमान ने उनके करीबी विकार रसूल वानी को प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया. फिर भी गुलाम नबी की नाराजगी दूर नहीं हुई. वो पिछले दस दिनों से अपने पांच पन्नों के इस्तीफा पत्र की ड्राफ्टिंग में लगे हुए थे. और आज उन्होंने कांग्रेस से अपना नाता-रिश्ता तोड़ लिया.

गुलाम नबी के करियर को कांग्रेस ने काफी सजाया संवारा. वो शुरूआती दौर में दो साल तक जम्मू-कश्मीर युवा कांग्रेस के अध्यक्ष रहे. फिर वो लगातार 37 वर्षों तक कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव रहे. इंदिरा गांधी, नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह के कैबिनेट में वो एक वरिष्ठ मंत्री माने जाते थे. तीन साल के लिए वो जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे और सात वर्षों तक राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष बने रहे.

ये एक हकीकत है कि सियासत में कभी पलटकर नहीं देखा जाता है. लकिन जो सवाल आज सियासी गलियारों में घूम रहे हैं वो यह कि क्या गुलाम नबी एक नई पारी की तैयारी कर रहे हैं.... तो क्या इस इस्तीफे को आगामी जम्मू-कश्मीर चुनाव से जोड़कर देखा जा सकता है ...और सबसे अहम सवाल यह कि क्या इस नई पारी में बीजेपी बतौर पार्टनर की भूमिका निभाएगी?

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