वरिष्ठ अधिवक्ता सौरभ कृपाल ने एनडीटीवी से बात करते हुए कहा कि उनके जज बनने में देरी हो रही है क्योंकि वो समलैंगिक हैं. उन्होंने अपने आप को गे बताते हुए कहा कि यही कारण है कि साल 2017 से मेरा प्रमोशन अटका हुआ है. कृपाल ने कहा कि मुझे नहीं लगता है कि सरकार खुले तौर पर एक समलैंगिक व्यक्ति को जज के तौर पर नियुक्त करना चाहेगी. उनकी यह टिप्पणी ऐसे समय में आयी है जब सरकार द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्तियों पर नए सिरे से ध्यान देने का प्रयास किया गया जिसे सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी नहीं मिली.
गौरतलब है कि केंद्र सरकार पांच साल से कृपाल की नियुक्ति की सिफारिश पर फैसले नहीं ले रही है. जिससे खुले तौर पर समलैंगिक व्यक्ति को भारतीय अदालत का जज बनने का इंतजार लगातार बढ़ता जा रहा है.
गौरतलब है कि साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटा दिया था. इसके अनुसार आपसी सहमति से दो वयस्कों के बीच बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अब अपराध नहीं माना जाएगा. चीफ़ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने एकमत से यह फ़ैसला सुनाया था. अदालत ने करीब 55 मिनट में सुनाए इस फ़ैसले में धारा 377 (section 377) को रद्द कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को अतार्किक और मनमानी बताते हुए कहा था कि LGBT समुदाय को भी समान अधिकार है.
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