- आधार कार्ड सरकार द्वारा जारी किया गया एक 12 अंकीय यूनिक पहचान नंबर है
- सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है
- बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि आधार, पैन या वोटर आईडी नागरिकता सत्यापन के लिए पर्याप्त दस्तावेज नहीं हैं
आधार कार्ड से देश का सबसे बड़ा पहचान पत्र कहा जाता है आज हर भारतीय के जीवन का अहम हिस्सा है. बैंक खाता खुलवाने से लेकर सरकारी सब्सिडी पाने तक, मोबाइल सिम लेने से लेकर पासपोर्ट बनवाने तक, लगभग हर जगह इसकी जरूरत पड़ती है. 12 अंकों का यह यूनिक नंबर, नाम, पता, जन्मतिथि, फोटो और बायोमेट्रिक जानकारी के साथ व्यक्ति की पहचान सुनिश्चित करता है. लेकिन, हाल के दिनों में यह सवाल फिर से चर्चा में है कि आखिर आधार कार्ड की कानूनी सीमा क्या है? क्या यह नागरिकता का प्रमाण है? क्या इसे निवास के पुख्ता सबूत के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है?
इन सवालों पर देश की सर्वोच्च अदालत से लेकर हाईकोर्ट तक ने साफ कर दिया है कि आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है और न ही इसे हर स्थिति में निवास का निर्णायक सबूत माना जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने बिहार के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) मामले में और बॉम्बे हाईकोर्ट ने नागरिकता विवादों में यह टिप्पणी देकर आधार की सीमाएं स्पष्ट कर दी हैं.
आधार कार्ड: पहचान क्या है और इसमें क्या-क्या होता है?
आधार कार्ड, यूनिक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया (UIDAI) द्वारा जारी किया गया एक 12-अंकीय पहचान नंबर है, जो भारत के निवासियों को उनके जनसांख्यिकीय (नाम, पता, लिंग, जन्मतिथि) और बायोमेट्रिक डेटा (फोटोग्राफ, दस अंगुलियों के निशान, आइरिस स्कैन) के आधार पर दिया जाता है.
- यह कार्ड पहचान और पते दोनों का प्रमाण माना जाता है और इसका प्रयोग बैंक खाता खोलने से लेकर सरकारी सब्सिडी तक में होता है.
- ऑफलाइन XML फॉर्मैट में आधारधारक का नाम, पता, फोटो, लिंग, जन्मतिथि, और लिंक किया हुआ मोबाइल नंबर व ई‑मेल (हैश स्वरूप में) मौजूद होता है.
- आधार कार्ड की वैधता आजीवन होती है और पहली बार पंजीकरण नि:शुल्क होता है
सुप्रीम कोर्ट का क्या है रुख?
बिहार में चल रहे विशेष गहन सर्वे (SIR) के दौरान मतदाता सूची में संशोधन की प्रक्रिया के संदर्भ में, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है. कोर्ट ने चुनाव आयोग के उस रुख को सही ठहराया जिसमें उसने आधार को निवास प्रमाण के रूप में नहीं स्वीकारा. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आधार और राशन कार्ड को निवास का निर्णायक प्रमाण नहीं माना जा सकता, विशेष रूप से बिहार में चल रही SIR प्रक्रिया में.
बोम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि नागरिकता प्रमाण नहीं, अन्य दस्तावेज जरूरी
बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी स्पष्ट किया है कि आधार, पैन या वोटर आईडी को नागरिकता का प्रमाण नहीं माना जा सकता. नागरिकता के सत्यापन के लिए, कानूनन अधिक प्रमाण-आधारित दस्तावेजों की आवश्यकता होती है. यह निर्णय नागरिकता संबंधी संवेदनशील मुद्दों में आधार के सीमित उपयोग पर केंद्रित है.
सीमित उपयोग लेकिन व्यापक प्रभाव
सारांश में, आधार कार्ड एक पहचान और निवास का दस्तावेज हो सकता है, लेकिन नागरिकता का प्रमाण नहीं. सुप्रीम कोर्ट और बॉम्बे हाईकोर्ट दोनों ही इस बात पर जोर देते हैं कि आधार को सार्वजनिक न्यायिक या संवैधानिक प्रक्रिया में निर्णायक आधार नहीं बनाया जाना चाहिए. बिहार SIR मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह दोहरा दिया कि मतदाता सूची में नाम जोड़ने या हटाने का अधिकार चुनाव आयोग का है और उसमें आधार का उपयोग निर्णायक नहीं हो सकता. इससे स्पष्ट होता है कि आधार कार्ड के व्यापक उपयोग के बावजूद जैसे बैंकों से लेकर सब्सिडी तक आधार अनिवार्य हुआ है. न्यायपालिका ने इसकी सीमाओं को रेखांकित किया है. यह फ़ैसला नागरिकता और मताधिकार जैसे संवेदनशील मुद्दों में दस्तावेज़ों की सटीकता व भरोसेमंदता की रक्षा करता है.
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