महाराष्ट्र में 75% कोरोना रोगियों से निजी अस्पतालों ने तय क़ीमत से ज़्यादा की वसूली : सर्वे

कोरोना वायरस (Coronavirus) महमामारी के दौरान मई 2020 में ही महाराष्ट्र सरकार (Maharashtra Government) ने निजी अस्पतालों (Private Hospitals) के लिए कोविड (COVID-19) बेड की दरें तय की थीं. निजी अस्पतालों ने सरकार के नियमों का पालन किया या नहीं इसको लेकर एक सर्वे हुआ है.

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प्रत्येक मरीज से औसतन 1,55,934 रुपये अधिक वसूले गए
मुंबई:

कोरोना वायरस (Coronavirus) महमामारी के दौरान मई 2020 में ही महाराष्ट्र सरकार (Maharashtra Government) ने निजी अस्पतालों (Private Hospitals) के लिए कोविड (COVID-19) बेड की दरें तय की थीं. निजी अस्पतालों ने सरकार के नियमों का पालन किया या नहीं इसको लेकर एक सर्वे हुआ है जिसमें पता चलता है कि 75% रोगियों से निजी अस्पतालों ने तय क़ीमत से ज़्यादा वसूला. तो 56% परिवारों को अस्पताल के बिल भुगतान के लिए कर्ज़ लेना पड़ा. पहली लहर के दौरान मई महीने में जब कोविड चरम पर था तब महाराष्ट्र सरकार ने राज्य के सभी निजी अस्पतालों के कोविड बेड की फ़ीस तय कर दी थी. बावजूद इसके ये सर्वे कहता है कि 75% रोगियों और उनके परिवारों ने महाराष्ट्र के निजी अस्पतालों को तय क़ीमत से अधिक दिया. 

जन आरोग्य अभियान और कोरोना एकल महिला पुनर्वसन समिति ने साथ मिलकर महाराष्ट्र के 34 जिलों में 2,579 कोविड रोगियों और उनके परिवारों का सर्वे किया. इनमें से अधिकांश 95.4% रोगियों ने निजी अस्पतालों में इलाज कराया था, जबकि 4.6% का इलाज सरकारी अस्पताल में हुआ.

मई 2020 में वेंटिलेटर बेड की कीमत सीमा ₹9,000 प्रति दिन, आईसीयू बेड की सीमा ₹7,500 प्रति दिन और आइसोलेशन बेड की सीमा ₹4,000 थी. महाराष्ट्र सरकार ने निजी अस्पतालों के लिए ये सीमा तय की थी. लेकिन 75% लोगों से निजी अस्पतालों ने तय क़ीमत से अधिक वसूला.

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सर्वे में पाया गया कि निजी अस्पताल में इलाज कराने वाले प्रत्येक मरीज से औसतन 1,55,934 रुपये अधिक वसूले गए. इस सर्वेक्षण में कुल रोगियों में से 1,059 महिलाओं ने अपने पति को COVID के कारण खो दिया था, जिनमें से 73% महिलाओं से अधिक शुल्क निजी अस्पतालों ने लिए.

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सर्वेक्षण में उन दवाओं की लागत का भी अध्ययन किया गया जिन्हें परिवारों को बाहर से खरीदने के लिए कहा गया था. सरकारी अस्पतालों में, परिवारों ने बाहर से दवाओं पर औसतन ₹17,000 खर्च किए, जबकि निजी अस्पताल में, दवा पर औसत खर्च लगभग ₹90,000 था.

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आधे से अधिक - 56% मामलों में, परिवारों को अस्पताल के बिलों का भुगतान करने के लिए किसी न किसी रूप में कर्ज़ लेना पड़ा. 

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जन आरोग्य अभियान के सह-संयोजक व जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ अभय शुक्ला कहते हैं, ''इस सर्वे में हमने पाया कि 75% मरीज़ों को प्रतिदिन बेड के लिए दस हज़ार रुपये से ज़्यादा भरने पड़े, जो बहुत ज़्यादा है. और जो औसत है प्रतिदिन पूरे खर्च का इस सैम्पल में वो 21,215 रुपए है. जो ICU केयर के रेट से तीन गुना ज़्यादा है. हर मरीज़ को 1,56,000 ज़्यादा देने पड़े निजी अस्पताल को. तो इस मात्रा में ओवर्चार्जिंग हुई है, कई परिवार पीड़ित हैं, ऐसे में निजी अस्पतालों ने जो तय रक़म से ज़्यादा फ़ीस ली है परिवारों को तुरंत लौटना चाहिए और महाराष्ट्र सरकार जल्द कोई कदम उठाए और ऑडिट कराए.''

अब राज्य सरकार से एक विस्तृत ऑडिट करने और अस्पतालों को मरीजों को अधिक राशि वापस करने की मांग उठ रही.

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