2024 रहा अब तक का सबसे गर्म वर्ष, विशेषज्ञों का दावा-अत्यधिक गर्मी, बाढ़ और तूफान लगातार आएंगे

Climate Change: जलवायु परिवर्तन का खतरा तेजी से बढ़ता जा रहा है. एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2024 अब तक का सबसे गर्म साल रहा. जानिए कारण...

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Climate Change: वैश्विक तापमान मनुष्यों के अनुमान से कहीं अधिक गति से बढ़ रहा है.

Climate Change: ब्रुसेल्स यूरोपीय संघ द्वारा वित्तपोषित कोपरनिकस जलवायु परिवर्तन सेवा (सी3एस) ने शुक्रवार को कहा कि वर्ष 1850 के बाद से वर्ष 2024 वैश्विक स्तर पर सबसे गर्म वर्ष रहा. 1850 में वैश्विक तापमान की माप शुरूआत हुई थी. समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने यूरोपीय जलवायु निकाय की प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से बताया कि 2024 पहला कैलेंडर वर्ष है, जिसमें औसत वैश्विक तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा, जो कि पेरिस समझौते द्वारा निर्धारित एक महत्वपूर्ण सीमा है.

2024 में वैश्विक औसत तापमान 15.1 डिग्री सेल्सियस था. यह 2023 से 0.12 डिग्री सेल्सियस अधिक था, जो अब तक सबसे गर्म वर्ष था. कोपरनिकस ने कहा कि यह पूर्व-औद्योगिक स्तर के अनुमान से 1.6 डिग्री सेल्सियस अधिक है. बयान में कहा गया कि 2023 और 2024 के लिए दो साल का औसत भी पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक हो गया है.

तापमान कहीं अधिक बढ़ रहा

पेरिस समझौते का उद्देश्य वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तर से दो डिग्री सेल्सियस से भी कम पर सीमित रखना है. इस सदी के अंत तक इसे 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने का लक्ष्य है. बयान में कहा गया है, "हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि हमने पेरिस समझौते द्वारा निर्धारित सीमा का उल्लंघन किया है - यह कम से कम 20 वर्षों के औसत तापमान विसंगतियों को संदर्भित करता है, लेकिन यह रेखांकित करता है कि वैश्विक तापमान आधुनिक मानव द्वारा अनुभव किए गए तापमान से कहीं अधिक बढ़ रहा है."

वैज्ञानिकों ने पाया कि 2024 में औसत तापमान 1850-1900 की आधार रेखा से 1.60 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा. यह वह समय था, जब जीवाश्म ईंधनों के जलने जैसी मानवीय गतिविधियों ने जलवायु पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालना शुरू नहीं किया था. यह पहली बार है जब औसत वैश्विक तापमान पूरे कैलेंडर वर्ष के दौरान 1850-1900 के औसत से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा है.

विनाश का बढ़ रहा खतरा

विशेषज्ञों का मानना ​​है कि विश्व अब ऐसे चरण में प्रवेश कर रहा है, जहां तापमान लगातार इस सीमा से ऊपर रहेगा. जलवायु कार्यकर्ता और ‘सतत सम्पदा जलवायु फाउंडेशन' के संस्थापक निदेशक हरजीत सिंह ने कहा कि विश्व एक नयी जलवायु वास्तविकता में प्रवेश कर रहा है, जहां अत्यधिक गर्मी, विनाशकारी बाढ़ और प्रचंड तूफान लगातार और गंभीर होते जाएंगे. उन्होंने कहा, ‘‘इस तरह के भविष्य की तैयारी के लिए हमें समाज के हर स्तर पर पर्यावरण अनुकूलन प्रयासों को तत्काल बढ़ाना होगा. अपने घरों, शहरों और बुनियादी ढांचे को नया स्वरूप देना होगा तथा जल, भोजन और ऊर्जा प्रणालियों के प्रबंधन के तरीकों में बदलाव करना होगा.''सिंह ने कहा कि विश्व को जीवाश्म ईंधन से स्वच्छ ऊर्जा की ओर तेजी से और निष्पक्ष रूप से बढ़ना होगा तथा यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई भी पीछे न छूटे, तथा अमीर देशों पर साहसिक कदम उठाने की बड़ी जिम्मेदारी है.

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सी3एस वैज्ञानिकों ने कहा कि 2024 में वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों का स्तर अब तक के सबसे उच्च वार्षिक स्तर पर पहुंच गया. कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 2023 की तुलना में ‘2.9 पार्ट्स पर मिलियन' (पीपीएम) अधिक था, जो 422 पीपीएम तक पहुंच गया, जबकि मीथेन का स्तर ‘तीन पार्ट्स प्रति बिलियन' (पीपीबी) बढ़कर 1897 पीपीबी तक पहुंच गया.पृथ्वी की जलवायु की स्थिरता का एक आवश्यक संकेत माने जाने वाले आर्कटिक और अंटार्कटिका के आसपास समुद्री बर्फ का विस्तार लगातार दूसरे वर्ष ‘‘रिकॉर्ड या लगभग रिकॉर्ड निम्नतम स्तर'' पर पहुंच गया.

हालात खराब

संयुक्त राष्ट्र की जलवायु विज्ञान संस्था आईपीसीसी का कहना है कि तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए उत्सर्जन को 2025 तक अत्यंत कम करना होगा और 2030 तक 43 प्रतिशत तथा 2035 तक 57 प्रतिशत कम होना होगा. वर्तमान नीतियां अधिक गर्म भविष्य की ओर इशारा करती हैं, यानी 2100 तक लगभग तीन डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि होगी. अगर प्रत्येक देश अपने जलवायु वादों या राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) को पूरा भी कर ले, तो भी 2030 तक उत्सर्जन में केवल 5.9 प्रतिशत की कमी आएगी, जो कि आवश्यकता से बहुत कम है.

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