"आखिरी सैलरी से 119 गुना ज्यादा" : पूर्व नौकरशाह को लेकर बोली जांच एजेंसी

ED के मुताबिक, अभिषेक ने लोकपाल के समक्ष एक हलफनामा दायर किया था, जिसमें उन्होंने उल्लेख किया कि सेवानिवृत्ति के बाद 15 महीनों में उन्हें 2.7 करोड़ रुपये की फीस मिली है."

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रमेश अभिषेक विभिन्न एजेंसियों द्वारा कई मामलों का सामना कर रहे हैं.
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  • रिटायर्ड IAS के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने का आरोप
  • CBI ने FIR दर्ज करने के बाद अभिषेक रमेश के परिसरों की तलाशी ली
  • हलफनामे में उन्‍होंने 2.7 करोड़ रुपये की फीस मिलना स्‍वीकारा
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नई दिल्ली :

बिहार कैडर के एक आईएएस अधिकारी को रिटायरमेंट के बाद एक दर्जन से अधिक कंपनियों से परामर्श शुल्क के रूप में करोड़ों रुपये मिले हैं, जिनके साथ  अधिकारी की नौकरी में रहने के दौरान ऑफिशियल डीलिंग थी. अब रिटायर्ड आईएएस अधिकारी विभिन्‍न एजेंसियों की जांच का सामना कर रहा है, जिसमें ईडी और और सीबीआई शामिल हैं. सीबीआई ने उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (Department for Promotion of Industry and Internal Trade) के पूर्व सचिव रमेश अभिषेक (Ramesh Abhishek) के खिलाफ आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति अर्जित करने के आरोप में एफआईआर दर्ज करने के बाद मंगलवार को उनके परिसरों की तलाशी ली. 

सीबीआई ने एफआईआर में कहा, "DPIIT सचिव या फॉरवर्ड मार्केट कमीशन के अध्यक्ष रहते उन्‍होंने विभिन्न संस्थाओं और संगठनों से परामर्श और पेशेवर शुल्क के रूप में बड़ी रकम वसूल की, जिनके साथ उनका लेनदेन था."

ईडी के मुताबिक, अभिषेक ने लोकपाल के समक्ष एक हलफनामा दायर किया था, जिसमें उन्होंने उल्लेख किया कि सेवानिवृत्ति के बाद 15 महीनों में उन्हें 2.7 करोड़ रुपये की फीस मिली है, जो "उनके अंतिम सरकारी वेतन से 119 गुना अधिक" थी, जो कि 2.26 लाख रुपये थी."

कम से कम 16 कंपनियों को फायदा पहुंचाने का आरोप 

सीबीआई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ''विभिन्न एजेंसियों की अब तक की जांच से पता चला है कि उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग में सचिव के पद पर रहते हुए उन्होंने कम से कम 16 कंपनियों को फायदा पहुंचाया.'' इसके साथ ही एफआईआर में कहा गया कि दिल्ली के पॉश ग्रेटर कैलाश इलाके में स्थित घर परिवार की अचल संपत्तियों में संदिग्‍ध बढ़ोतरी का परिणाम है. 

रमेश अभिषेक 22 फरवरी से जुलाई 2019 तक डीपीआईआईटी सचिव के पद पर और उससे पहले 21 सितंबर से जुलाई 2019 तक वह फॉरवर्ड मार्केट कमीशन के अध्यक्ष के रूप में तैनात थे.

साथ ही अभिषेक पेटीएम के तीन स्वतंत्र निदेशकों में से एक हैं, जो फिलहाल आरबीआई द्वारा जांच का सामना कर रहे हैं. एक अधिकारी ने कहा, ''एक स्वतंत्र निदेशक देश के कानूनों का पालन करत हुए स्‍टेकहोल्‍डर्स के हित में काम करने के लिए निरीक्षण, मार्गदर्शन और स्वतंत्र निर्णय प्रदान करने में अहम भूमिका निभाते हैं.'' सूत्रों के अनुसार, सचिव के रूप में तैनात रहते हुए अभिषेक ने कथित तौर पर मूल कंपनी वन 97 कम्युनिकेशंस को आईपीओ लाने में मदद की. 

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वह औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने और व्यापार करने में आसानी के उद्देश्य से नीतियां बनाने से भी जुड़े थे. एक अधिकारी ने कहा, ''सेवा में रहते उन्होंने मेक इन इंडिया, स्टार्ट-अप इंडिया और व्यापार को आकर्षित करने के लिए एफडीआई के उदारीकरण की पहल को लागू करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.''

लोकपाल ने दिया था कानूनी कार्रवाई का निर्देश 

रमेश अभिषेक विभिन्न एजेंसियों द्वारा कई मामलों का सामना कर रहे हैं. उनके लिए स्थिति उस वक्‍त गंभीर हो गईं जब लोकपाल ने अपने 2 फरवरी, 2022 के एक आदेश में कहा कि भ्रष्टाचार के आरोपों की गहन जांच की जरूरत है. आदेश में कहा गया, "तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए हम भ्रष्टाचार से संबंधित आरोपों के प्रति मूकदर्शक नहीं रह सकते हैं, जिनसे सख्ती से निपटा जाना चाहिए. खासकर तब जब शिकायतकर्ता द्वारा दी गई जानकारी के बड़े हिस्से को पब्लिक सर्वेंट द्वारा अपने हलफनामे में स्वीकार कर लिया गया हो." इसलिए, हम इस शिकायत से संबंधित सभी कागजात ईडी के पास भेज रहे हैं.  

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आवश्यक कानूनी कार्रवाई का निर्देश देते हुए लोकपाल ने ईडी से उनकी ग्रेटर कैलाश स्थित संपत्ति का मूल्य निर्धारित करने के लिए कहा था. साथ ही कहा, "ईडी को यह भी जांच करनी चाहिए कि क्या लोक सेवक और/या उसके रिश्तेदारों द्वारा प्राप्त पारिश्रमिक के मामले में हितों का कोई टकराव था. पूछताछ के दौरान पता लगाया जा सकता है कि क्या लोक सेवक को संबंधित प्राधिकारी को सूचित करना आवश्यक था. ग्रेटर कैलाश-द्वितीय में उसके द्वारा खरीदी गई संपत्ति के पुनर्विकास की लागत और क्या उचित प्राधिकारी को सूचित किया गया था या नहीं.” 

ईडी की प्रारंभिक रिपोर्ट के आधार पर लोकपाल ने 3 जनवरी, 2023 को एजेंसी को आगे की जांच का निर्देश दिया था. अभिषेक ने उन आदेशों को दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी, लेकिन कोर्ट ने मई 2023 में लोकपाल की कार्यवाही में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया. लोकपाल ने पिछले साल दिसंबर में इस मामले को सीबीआई को सौंपा और इस साल 15 फरवरी को शुरुआती जांच के बाद उन्होंने आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज किया. 

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