''कड़ाके की ठंड में तो बच्‍चों की हालत और खराब होगी..'': कोविड महामारी में सड़कों पर रह रहे बच्‍चों को लेकर SC चिंतित

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गुजरात, ओडिशा से बच्चों की पहचान और पुनर्वास में तेजी लाने को कहा है.

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा, सड़कों पर भूख से मर रहे बच्चों की जरूरतें अब और नहीं रुक सकतीं
नई दिल्‍ली:

कोरोना महामारी के दौरान सड़कों पर रह रहे बच्चों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया है.राज्य सरकारों द्वारा कोविड अनाथों की पहचान और पुनर्वास की कमी पर चिंता जताते हुए SC ने कहा है कि हमें सिर्फ कागज पर बयान नहीं, कार्रवाई की जरूरत है. देश में कोविड का तीसरा दौर है और अधिकारी व्यस्त हैं लेकिन इस सबका एक हिस्सा बच्चों की देखभाल भी कर रहा है. सड़कों पर भूख से मर रहे बच्चों की जरूरतें अब और नहीं रुक सकतीं.इस कड़ाके की ठंड में इन बच्चों की हालत और खराब होगी.जहां भी संभव हो उन्हें तुरंत पुनर्वास की जरूरत है. 

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सुप्रीम कोर्ट  ने दिल्ली, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गुजरात, ओडिशा से बच्चों की पहचान और पुनर्वास में तेजी लाने को कहा. साथ ही राज्य सरकारों को बच्चों की पहचान करने के लिए स्वैच्छिक संगठनों और जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण की मदद लेने का निर्देश दिया. SC ने राज्य सरकारों और NCPCR को पुनर्वास नीति बनाने को कहा है और राज्‍यों से 3 हफ्ते में स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है.सुनवाई के दौरान राज्यों द्वारा सड़कों पर रह रहे बच्चों की जानकारी पोर्टल पर अपडेट न करने पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराज़गी जताई और कहा हमें सिर्फ कागज पर बयान नहीं कार्रवाई की जरूरत है. 2 साल से हम कोरोना महामारी के बीच में रहे हैं लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि जो आदेश हमारे द्वारा पारित किया गया उसका पालन ना किया जाए. राज्यों को कोर्ट के आदेशों को गंभीरता से लेना चाहिए

जस्टिस एल नागेश्वर राव ने राज्यों से कहा कि हम पिछले दो वर्षों से COVID के साथ जी रहे हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि इस अदालत द्वारा पारित निर्देशों को लागू नहीं किया जाएगा. मामले को बहुत गंभीरता से लें. हमें इन बच्चों को सड़कों से हटाना होगा. जो  बच्चे सड़कों पर भूखे मर रहे हैं वे इंतजार नहीं कर सकते. आप अधिकारियों को बताएं. किसी भी राज्य ने यह नहीं कहा है कि वे ऐसा नहीं करेंगे. उन्होंने सहयोग किया. कोविड के कारण हम जिन समस्याओं का सामना कर रहे हैं. ये बच्चे इसके विकराल रूप का सामना कर रहे हैं. ऐसा नहीं है कि इन बच्चों के पास वापस जाने के लिए घर हैं.उनके पास कोई नहीं है जो उनकी देखभाल कर सके. अदालत ने दिल्ली सरकार से कहा कि आपके द्वारा दिए गए नंबर जमीनी हकीकत को नहीं दर्शाते हैं. इतने महीने हो गए और आपने केवल 428 बच्चों की पहचान की है. इस कड़ाके की ठंड में इन बच्चों की स्थिति और खराब हो जाएगी. जहां भी संभव हो उन्हें तुरंत पुनर्वास दें. यह एक महीना उनके लिए बहुत कठिन है 

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जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा कि कोविड से  अनाथ हुए अब अधिक असुरक्षित हैं, वे सड़कों पर रहेंगे. जस्टिस राव ने तमिलनाडु सरकार से कहा कि देश में कोविड का तीसरा दौर है और अधिकारी व्यस्त हैं लेकिन इस सबका एक हिस्सा बच्चों की देखभाल भी कर रहा है. बच्चों की पहचान करें और सुनिश्चित करें कि उनकी देखभाल की जाए.कोरोना और जिन दूसरी दिक्कतों का सामना हम कर रहे हैं वह ऐसे बच्चों के लिए उससे कहीं ज्यादा है जिनका कोई देखभाल करने वाला नहीं है. इस दौरान महाराष्ट्र सरकार ने कहा कि हम मामले में गंभीरता से काम कर रहे हैं 3000 बच्चों को अब तक चिन्हित किया गया है -पोर्टल पर उपलब्ध डाटा रियल टाइम डाटा नहीं है

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इस दौरान उत्तर प्रदेश सरकार ने बताया कि 2015-16 में एक एनजीओ ने 3000 बच्चों को चिन्हित किया था जो सड़कों पर रह रहे हैं. हम ऐसे बच्चों को चिन्हित करने की कोशिश कर रहे हैं इसके लिए हमने जिला स्तर की टीम लगाई है जो भीख मांगने वाले और सड़कों पर रहने वाले बच्चों को चिन्हित कर रही है. झारखंड सरकार ने बताया कि ऐसे 109 बच्चों को चिन्हित करने के बाद शेल्टर होम रखा गया है. गुजरात सरकार ने बताया कि ऐसे 1990 बच्चों को चिंहित किया गया है और उनको मौजूदा सरकारी स्कीम के तहत लाभ दिया जा रहा है.

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वहीं राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ( NCPCR) ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि बाल स्वराज पोर्टल पर अपलोड किए गए आंकड़ों के अनुसार 1 अप्रैल, 2020 से 1.47 लाख बच्चों ने COVID-19 और अन्य कारणों से या तो अपने माता या पिता या माता-पिता दोनों को खो दिया है.अप्रैल 2020 से 11 जनवरी, 2022 तक COVID से 10094 बच्चे अनाथ हुए 1,36,910 बच्चों के माता या पिता की मौत हो गई जबकि 488 बच्चे लावारिस हो गए हैं. इसके आंकड़े राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा 'बाल स्वराज पोर्टल-कोविड केयर' पर 11 जनवरी तक अपलोड किए गए आंकड़ों पर आधारित हैं. कुल- 1,47,492 में 76,508 लड़के, 70,980 लड़कियां और 4 ट्रांसजेंडर हैं. उम्र के हिसाब से बच्चों की अधिकतम संख्या 8-13 वर्ष (59,010) के आयु वर्ग के बीच है.14 से 15 वर्ष के आयु समूह  के 22,763, 16 से 18 वर्ष के आयु समूह 22,626 और चार से सात वर्ष का आयु समूह 26,080 हैं. 

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बच्चों के आश्रय की वर्तमान स्थिति :

- अधिकतम बच्चे अपने एकल माता-पिता के साथ हैं -1,25,205

- 11,272 बच्चे परिवार के सदस्यों के साथ हैं

- अभिभावकों के साथ 8,450 हैं 


ये अतिरिक्त हलफनामा NCPCR द्वारा सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद दाखिल किया गया है. दरअसल,  शीर्ष न्यायालय ने बाल स्वराज पोर्टल पर अपलोड किए गए डेटा के आधार पर बच्चों की स्थिति के संबंध में रिपोर्ट मांगी थी. आयोग  ने 13 जनवरी, 2022 के हलफनामे में आगे कहा है कि यह सुनिश्चित करने के लिए नियमित स्तर पर कदम उठा रहा है कि बच्चे महामारी में कम या ज्यादा प्रतिकूल रूप से प्रभावित न हों. यह भी कहा गया है कि NCPCR प्रत्येक राज्य/केंद्र शासित प्रदेश के साथ जोन-वार बैठकें कर रहा है. 26 अगस्त 2021 को  सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि मार्च 2020 में COVID-19 महामारी की शुरुआत के बाद अनाथ हो गए बच्चों की निजी स्कूलों में शिक्षा कम से कम वर्तमान शैक्षणिक वर्ष के दौरान बिना किसी व्यवधान के जारी रहे 

कोर्ट ने सुझाव दिया कि ऐसा स्कूलों को फीस माफ करने या राज्य सरकार द्वारा ऐसे बच्चों की आधी फीस माफ करने के लिए कह कर किया जा सकता है. राज्यों को बाल कल्याण समितियों और जिला शिक्षा अधिकारियों के साथ मिलकर काम करने के लिए निजी स्कूलों के साथ बातचीत करने के लिए निर्देशित किया गया. जहां ये बच्चे पढ़ रहे हैं ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि इस साल उनकी शिक्षा बाधित न हो. सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने पीएम केयर्स फंड के तहत अनाथों के लिए चलाए जाने वाली सभी वेलफेयर स्कीम का लाभ उन बच्चों को भी मिले जो कोविड-19 के दौरान अपने माता-पिता को खो चुके हैं न कि केवल उन बच्चों को जो महामारी के कारण अनाथ हुए हैं. कोर्ट ने कई राज्यों को फटकार लगाई थी क्योंकि स्पष्ट आदेश के बावजूद अनाथ बच्चों के बारे में जानकारी नहीं दी गई. कोर्ट ने राज्यों को निर्देश दिया था कि वह अनाथ बच्चों की जानकारी जुटाने के लिए चाइल्ड केयर हेल्पलाइन, पुलिस, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं समेत हर विभाग की मदद लें. कोर्ट में केंद्र सरकार की ओर से बताया गया था कि महामारी के कारण अनाथ हुए बच्चों के बड़े होने पर उन्हें उच्च शिक्षा के लिए 10 लाख रुपये प्रदान किए जाएंगे. यह राशि पीएम केयर्स फंड से दी जाएगी

इसके बाद कोर्ट ने सवाल किया था कि केवल कोरोना के कारण नहीं बल्कि कोरोना काल में अनाथ हुए सभी बच्चों को यह सहायता क्यों नहीं दी जा सकती.विशेषकर पश्चिम बंगाल जो मार्च 2020 से अब तक केवल 27 बच्चों के अनाथ होने की बात कह रहा है, उसपर कोर्ट ने हैरानी जताई क्योंकि अब तक जितने राज्यों ने आंकड़े दिए हैं वो कुल मिलाकर करीब 7 हजार है. मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस  अनिरुद्ध बोस की बेंच ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा था कि यदि पश्चिम बंगाल सरकार अनाथ बच्चों की संख्या का पता नहीं लगा पा रही है, तो उसे किसी दूसरी एजेंसी को यह काम देना होगा. कोविड-19 महामारी के दौरान अनाथ हुए बच्चों को लेकर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है.  इन अनाथ बच्चों को सरकार की आर्थिक सहायता से जुड़ी स्कीमों का लाभ मिलेगा लेकिन असली विवाद बच्चों की संख्या को लेकर है. दरअसल सरकार की ओर से बताया गया है कि मार्च 2020 से लेकर जुलाई 2021 के बीच 645 बच्चे अनाथ हुए जबकि NCPCR के पोर्टल पर ऐेसे बच्चों के आंकड़े 6855 है. अदालत ने कहा कि सरकारें  उस संख्या पर स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करें जिन्होंने दोनों या माता-पिता में से एक को खो दिया है, उनको राज्यों और केंद्र की योजनाओं का लाभ मिला है या नहीं. राज्यों को विवरण देना होगा कि क्या इन अनाथों को आईसीपीसीएस योजना के तहत प्रति माह 2000 रुपये मिल रहे हैं या नहीं. शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्यों को इन अनाथों की निजी या सरकारी स्कूलों में शिक्षा जारी रखना सुनिश्चित करना चाहिए.SC ने सभी राज्यों के जिलाधिकारियों को  पुलिस, आंगनवाड़ी, आशा कार्यकर्ताओं और  सिविल सोसायटी संगठनों को मार्च 2020 के बाद अनाथ या माता-पिता में से एक को खोने वाले अनाथों की पहचान करने के लिए शामिल करने का निर्देश दिया था. 

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