इलेक्शन के दौरान चुनावी बॉन्ड पर रोक लगाने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई को तैयार

सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि राजनीतिक दलों की फंडिंग और उनके खातों में पारदर्शिता की कथित कमी से संबंधित एक मामले का निपटारा होने के बाद ही बॉन्ड की बिक्री की अनुमति हो

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पश्चिम बंगाल (West Bengal) समेत अन्य राज्यों में चुनाव के दौरान चुनावी बॉन्ड (Electoral Bond) पर रोक लगाने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई को तैयार है. कोर्ट 24 मार्च को इस पर सुनवाई करेगा. वकील प्रशांत भूषण ने मामले की जल्द सुनवाई की मांग की थी, क्योंकि ये बॉन्ड 1 अप्रैल से जारी होने वाले हैं. CJI एसए बोबडे ने कहा कि वे अगले बुधवार को इस पर सुनवाई करेंगे. सुप्रीम कोर्ट ने याचिका की प्रति केंद्र को देने की अनुमति दी है. सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर केंद्र और अन्य पक्षों को यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया है कि चुनावी बॉन्ड की आगे और बिक्री की अनुमति नहीं दी जाए.

 याचिका में कहा गया है कि राजनीतिक दलों की फंडिंग और उनके खातों में पारदर्शिता की कथित कमी से संबंधित एक मामले का निपटारा होने के बाद ही बॉन्ड की बिक्री की अनुमति हो. लंबित याचिका में  एनजीओ की ओर से दाखिल आवेदन में दावा किया गया है कि इस बात की गंभीर आशंका है कि पश्चिम बंगाल और असम समेत कुछ राज्यों में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले चुनावी बॉन्डों की आगे और बिक्री से ‘‘मुखौटा कंपनियों के जरिए राजनीतिक दलों का अवैध और गैरकानूनी वित्तपोषण और बढ़ेगा.''

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इसमें आरोप लगाया गया है  कि राजनीतिक दलों द्वारा 2017-18 और 2018-19 के लिए उनकी ऑडिट रिपोर्ट में घोषित चुनावी बॉन्डों के आंकड़ों के अनुसार ‘‘सत्तारूढ़ दल को आज तक जारी कुल चुनावी बॉन्ड के 60 प्रतिशत से अधिक बॉन्ड प्राप्त हुए थे.''आवेदन में केंद्र को मामला लंबित रहने तक और चुनावी बॉन्ड की बिक्री नहीं होने देने का निर्देश देने की मांग करते हुए दावा किया गया है कि अब तक 6,500 करोड़ रुपये से अधिक के चुनावी बॉन्ड बेचे गए हैं, जिनमें अधिकतर चंदा सत्तारूढ़ पार्टी को गया है. आरोप लगाया कि राजनीतिक दलों द्वारा 2017-18 और 2018-19 के लिए उनकी ऑडिट रिपोर्ट में घोषित चुनावी बॉन्डों के आंकड़ों के अनुसार ‘‘सत्तारूढ़ दल को आज तक जारी कुल चुनावी बॉन्ड के 60 प्रतिशत से अधिक बॉन्ड प्राप्त हुए थे.''

आवेदन में केंद्र को मामला लंबित रहने तक और चुनावी बॉन्ड की बिक्री नहीं होने देने का निर्देश देने की मांग करते हुए दावा किया गया है कि अब तक 6,500 करोड़ रुपये से अधिक के चुनावी बॉन्ड बेचे गए हैं, जिनमें अधिकतर चंदा सत्तारूढ़ पार्टी को गया है. वकील प्रशांत भूषण के माध्यम से दाखिल याचिका में कहा गया, ‘‘इस बात की गंभीर आशंका है कि पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल और असम में होने वाले चुनावों से पहले चुनावी बॉन्ड की और बिक्री होने से मुखौटा कंपनियों के जरिये राजनीतिक दलों का अवैध और गैरकानूनी वित्तपोषण और अधिक बढ़ेगा.'' 

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एनजीओ ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR)' ने एक अलग याचिका दाखिल कर मामले को अत्यावश्यक श्रेणी में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने का भी अनुरोध किया और कहा है कि आखिरी बार यह 20 जनवरी, 2020 को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध थी. शीर्ष अदालत ने पिछले साल 20 जनवरी को 2018 की चुनावी बॉन्ड योजना पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया था और योजना पर रोक लगाने की एनजीओ की अंतरिम अर्जी पर केंद्र तथा चुनाव आयोग से जवाब मांगा था.  सरकार ने दो जनवरी, 2018 को चुनावी बॉन्ड योजना की अधिसूचना जारी की थी.
 

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