अरविंद केजरीवाल सरकार को झटका, लोकसभा में पारित हुआ दिल्‍ली पर केंद्र को अधिक शक्ति देने वाला बिल..

अरविंद केजरीवाल सरकार का कहना है कि केंद्र में सत्ताधारी BJP इस बिल के जरिए राजधानी दिल्ली में पिछले दरवाजे से सरकार चलाने की कोशिश कर रही है इसलिए यह बिल अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक है .

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नई दिल्ली:

ऐसा प्रस्‍तावित बिल जो केंद्र सरकार को दिल्‍ली पर अधिक अधिकार देगा, कानून बनने के और करीब पहुंच गया है. राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) विधेयक (NCT bill) 2021को लोकसभा की मंजूरी मिल गई है.इस बिल में शहर की चुनी हुई सरकार की तुलना में लेफ्टिनेंट गवर्नर को अधिक अधिकार देने का प्रावधान है जो केंद सरकार का प्रतिनिधित्‍व करते हैं.राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र शासन (संशोधन) विधेयक 2021 में दिल्ली के उपराज्यपाल (एलजी) की कुछ भूमिकाओं और अधिकारों को परिभाषित किया गया है. निचले सदन में विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने कहा, ‘‘संविधान के अनुसार दिल्ली विधानसभा से युक्त सीमित अधिकारों वाला एक केंद्रशासित राज्य है. सुप्रीम ने भी अपने फैसले में कहा है कि यह केंद्रशासित राज्य है. सभी संशोधन न्यायालय के निर्णय के अनुरूप हैं.''

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उन्होंने कहा कि कुछ स्पष्टताओं के लिए यह विधेयक लाया गया है जिससे दिल्ली के लोगों को फायदा होगा और पारदर्शिता आयेगी.उन्होंने कहा कि इसे राजनीतिक दृष्टिकोण से नहीं लाया गया और तकनीकी कारणों से लाया गया है ताकि भ्रम की स्थिति नहीं रहे. मंत्री के जवाब के बाद लोकसभा ने ध्वनिमत से राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र शासन (संशोधन) विधेयक 2021 को मंजूरी प्रदान कर दी. गृह राज्य मंत्री ने कहा कि दिसंबर, 2013 तक दिल्ली का शासन सुचारू रूप से चलता था और सभी मामलों का हल बातचीत से हो जाता था. लेकिन पिछले कुछ वर्षों में विषयों को लेकर हाईकोर्ट,सुप्रीम कोर्ट में जाना पड़ा क्योंकि कुछ अधिकारों को लेकर कोई स्पष्टता नहीं थी .गृह राज्य मंत्री ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि मंत्रिपरिषद के फैसले, एजेंडा के बारे में उप राज्यपाल को सूचित करना अनिवार्य है.उन्होंने कहा, ‘‘कुछ विषयों पर कुछ स्पष्टीकरण की आवश्यकता है. इनके अभाव में दिल्ली के लोगों पर असर हो रहा है. दिल्ली का विकास भी प्रभावित होता है. यह जरूरी है कि प्रशासनिक अस्पष्टताओं को समाप्त किया जाए ताकि दिल्ली के लोगों को बेहतर प्रशासन मिल सके.''

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रेड्डी ने कहा, ‘‘दिल्ली विधानसभा के साथ एक केंद्र शासित प्रदेश है. यह सभी लोगों को समझना चाहिए कि इसकी सीमित शक्तियां हैं. इसकी तुलना किसी अन्य राज्य से नहीं की जा सकती है.'उन्होंने कहा कि इस विधेयक के जरिये किसी से कोई अधिकार नहीं छीना जा रहा है. पहले से ही स्पष्ट है कि राष्ट्रपति केंद्रशासित प्रदेश के प्रशासक के रूप में दिल्ली के उपराज्यपाल को नियुक्त करते हैं. अगर कोई मतभेद की स्थित हो तब विषय को राष्ट्रपति के पास भेजा जा सकता है.विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों के अनुसार, इस विधेयक में दिल्ली विधानसभा में पारित विधान के परिप्रेक्ष्य में ‘सरकार' का आशय राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के उपराज्यपाल से होगा.इसमें दिल्ली की स्थिति संघ राज्य क्षेत्र की होगी जिससे विधायी उपबंधों के निर्वाचन में अस्पष्टताओं पर ध्यान दिया जा सके. इस संबंध में धारा 21 में एक उपधारा जोड़ी जाएगी.इसमें कहा गया है कि विधेयक में यह भी सुनिश्चित करने का प्रस्ताव किया गया है कि उपराज्यपाल को आवश्यक रूप से संविधान के अनुच्छेद 239क के खंड 4 के अधीन सौंपी गई शक्ति का उपयोग करने का अवसर मामलों में चयनित प्रवर्ग में दिया जा सके.विधेयक के उद्देश्यों में कहा गया है कि उक्त विधेयक विधान मंडल और कार्यपालिका के बीच सौहार्दपूर्ण संबंधों का संवर्द्धन करेगा तथा निर्वाचित सरकार एवं राज्यपालों के उत्तरदायित्वों को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के शासन की संवैधानिक योजना के अनुरूप परिभाषित करेगा.

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दिल्‍ली की अरविंद केजरीवाल सरकार का कहना है कि केंद्र में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (BJP) इस बिल के जरिए राजधानी दिल्ली में पिछले दरवाजे से सरकार चलाने की कोशिश कर रही है इसलिए यह बिल अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक है जिसका आम आदमी पार्टी सड़क से लेकर संसद तक विरोध करेगी. (भाषा से भी इनपुट)

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