"भारत-पाकिस्तान में 220 करोड़ को घातक गर्मी का सामना करना पड़ेगा अगर...": नए शोध का दावा

शोध में पाया गया कि दक्षिण अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में भी अत्यधिक गर्मी का अनुभव होगा. लेकिन विकसित देशों में लोग विकासशील देशों की तुलना में कम पीड़ित होंगे, जहां बूढ़े और बीमार लोग मर सकते हैं.

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प्रतीकात्मक तस्वीर

नए शोध में भविष्यवाणी की गई है कि सदी के अंत तक जलवायु परिवर्तन की वजह से ग्लोबल वार्मिंग हो सकती है, जिससे भारत और सिंधु घाटी सहित दुनिया के कुछ सबसे अधिक आबादी वाले क्षेत्रों में दिल का दौरा और हीट स्ट्रोक के मामले बढ़ सकते हैं. पेन स्टेट कॉलेज ऑफ हेल्थ एंड ह्यूमन डेवलपमेंट, पर्ड्यू यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ साइंसेज और पर्ड्यू इंस्टीट्यूट फॉर ए सस्टेनेबल फ्यूचर के अंतःविषय अनुसंधान - "प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज" में प्रकाशित शोध ने संकेत दिया कि ग्रह का ग्रह का पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक गर्म होना मानव स्वास्थ्य के लिए विनाशकारी होगा.

इस अध्ययन से संकेत मिलता है कि यदि वैश्विक तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से 2 डिग्री सेल्सियस अधिक बढ़ जाता है, तो पाकिस्तान और भारत की सिंधु नदी घाटी के 2.2 अरब निवासी, पूर्वी चीन में 1 अरब लोग और उप-सहारा अफ्रीका में 800 मिलियन लोग ऐसी गर्मी का अनुभव करेंगे जो मानवीय सहनशीलता से भी अधिक होगी. जो शहर इस प्रकोप को झेलेंगे, उनमें दिल्ली, कोलकाता, शंघाई, मुल्तान, नानजिंग और वुहान शामिल होंगे. क्योंकि इन क्षेत्रों में निम्न और मध्यम आय वाले देश शामिल हैं, इसलिए लोगों के पास एयर-कंडीशनर या अपने शरीर को ठंडा करने के अन्य प्रभावी तरीकों तक पहुंच नहीं हो सकती है.

यदि ग्रह की ग्लोबल वार्मिंग पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 3 डिग्री सेल्सियस ऊपर जाना जारी रखती है, तो बढ़ी हुई गर्मी का स्तर पूर्वी समुद्री तट और संयुक्त राज्य अमेरिका के मध्य भाग को प्रभावित कर सकता है. शोध में पाया गया कि दक्षिण अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में भी अत्यधिक गर्मी का अनुभव होगा. लेकिन विकसित देशों में लोग विकासशील देशों की तुलना में कम पीड़ित होंगे, जहां बूढ़े और बीमार लोग मर सकते हैं. शोध पत्र के सह-लेखक और पर्ड्यू विश्वविद्यालय में पृथ्वी, वायुमंडलीय और ग्रह विज्ञान के प्रोफेसर मैथ्यू ह्यूबर ने कहा, "सबसे खराब गर्मी का असर उन क्षेत्रों में होगा जो समृद्ध नहीं हैं और जहां आने वाले दशकों में तेजी से जनसंख्या वृद्धि का अनुभव होने की उम्मीद है."

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इस तथ्य के बावजूद सच है कि ये देश अमीर देशों की तुलना में बहुत कम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन उत्पन्न करते हैं. परिणामस्वरूप, अरबो गरीब लोग पीड़ित होंगे, और कई लोग मर सकते हैं. लेकिन अमीर देश भी इस गर्मी से पीड़ित होंगे, और इसमें भी आपस में जुड़ी दुनिया में हर कोई किसी न किसी तरह से नकारात्मक रूप से प्रभावित होने की उम्मीद कर सकता है. तापमान को बढ़ने से रोकने के लिए, शोधकर्ताओं ने कहा कि ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन, विशेष रूप से जीवाश्म ईंधन जलाने से उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड को कम किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा, अगर बदलाव नहीं किए गए तो मध्यम आय और निम्न आय वाले देशों को सबसे ज्यादा नुकसान होगा.

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