ट्यूबरक्लोसिस यानी टीबी की बीमारी आमतौर पर फेफड़ों से संबंधित एक संक्रामक बीमारी है जिसके लक्षण देर से नजर आते हैं और जब इनके बारे में सही से पता लगता है तब तक ये गंभीर होकर शरीर के बाकी अंगों पर भी बुरा असर डालते हैं. माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस ( Mycobacterium tuberculosis) नाम के बैक्टीरिया जनित ये बीमारी पीड़ित द्वारा छींकने, खांसने से दूसरों को संक्रमित कर सकती है. कमजोर इम्यूनिटी या पहले से बीमार लोग टीबी की चपेट में जल्दी आते हैं. इसलिए इस बीमारी में इलाज से ज्यादा जरूरी इसके लक्षणों को पहचानना होता है.
इसके लक्षणों की पहचान होना इसलिए जरूरी है ताकि समय रहते सही इलाज से मरीज की जान बच सके और अन्य लोग संक्रमित होने से बच सकें क्योंकि ये बीमारी दूसरों को जल्द ही अपनी चपेट में लेती है. इसलिए पहले ये जानते हैं कि टीबी के प्रारंभिक लक्षण क्या है और इन्हें कैसे पहचाना जा सकता है ताकि समय रहते इसका इलाज किया जा सके.
टीबी के प्रारंभिक लक्षण इस प्रकार हैं -
- तीन से चार सप्ताह तक खांसी बने रहना
- लगातार खांसी के वक्त सीने में दर्द महसूस करना
- सांस लेते वक्त थकान महसूस करना
- थूक का रंग बदलना और उसमें ब्लड क्लॉटिंग नजर आना
- लगातार बुखार और कमजोरी बने रहना
- भूख की कमी हो जाना
- आंखों के नीचे काले घेरे नजर आना
- वजन में एकाएक कमी आने लगना
- किसी भी काम को करने की इच्छा ना रखना
- बिस्तर से उठते ही थकान लगना और फिर लेट जाना
- फेफड़ों में लगातार कफ का जमा होते रहना
- रात में सोते समय छाती से कफ की आवाज आना
टीबी के अन्य लक्षण इस प्रकार हैं -
- गले के लिम्फ नोड्स में एकाएक इजाफा हो जाना
- गले में सूजन और दर्द महसूस होना
- पेट खराब होना, दस्त लगना
- महिलाओं में पीरियड का समय बदलना
अगर किसी व्यक्ति को दो से तीन सप्ताह बाद भी सामान्य खांसी की दवा से असर नहीं हो रहा है और कफ वाली खांसी का लगातार बनी हुई है तो उसे सबसे पहले टीबी की जांच करवानी चाहिए. अगर खांसी को तीन सप्ताह से ज्यादा नहीं हुए हैं और फिर भी खांसी करते वक्त मुंह से ब्लड का क्लॉट निकलता है या फिर बुखार आता है तो भी मरीज को तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए.
इन लक्षणों के आधार पर शरीर में टीबी की बीमारी की पहचान होती है तो इसका इलाज संभव है. टीकाकरण, सही इलाज और इम्यून सिस्टम को मजबूत करने के साथ साथ इस बीमारी में सबसे बड़ी जरूरत साफ सफाई और हाइजीन मेंटेंन करने की है. इस बीमारी के पकड़ में आने के बाद रोगी को आइसोलेट रहने की सलाह दी जाती है, खांसते या छींकते समय मुंह पर कपड़ा रखना, शरीर की सफाई और साथ ही सोशल डिस्टेंसिंग जरूरी है ताकि ये बीमारी दूसरों को अपने चपेट में न ले सके.
अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें.एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.