World Breastfeeding Week 2024: ब्रेस्टफीडिंग को लेकर कहीं आप भी तो नहीं करते इन मिथकों पर यकीन, एक्सपर्ट से जानिए इनका सच

Breastfeeding Myth Or Truth स्तनपान को लेकर कई तरह के भ्रम हैं. कुछ ऐसे जो पीढ़ी दर पीढ़ी ट्रांसफर हो रहे हैं तो कुछ किसी के निजी अनुभव के आधार पर

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World Breastfeeding Week 2024: हर साल 1 अगस्त से 7 अगस्त तक विश्व स्तनपान सप्ताह मनाया जाता है. इस दिन को हर साल एक अलग थीम में मनाया जाता है. थीम, वर्ल्ड अलायंस फॉर ब्रेस्टफीडिंग एक्शन (डब्ल्यूएबीए) चुनती है. इस बार की थीम 'क्लोजिंग द गैप- ब्रेस्टफीडिंग सपोर्ट फॉर ऑल' है. यानि इसे लेकर लोग इतना जागरूक हों कि मांओं को कहीं भी बच्चे को फीड कराने में दिक्कत न आए. इसके लिए उसका परिवार, समाज, सहयोगी सबका सहयोग मिले. स्तनपान को लेकर कई तरह के भ्रम हैं. कुछ ऐसे जो पीढ़ी दर पीढ़ी ट्रांसफर हो रहे हैं तो कुछ किसी के निजी अनुभव के आधार पर. कई मिथ यानि मिथक है जो तथ्य से कोसों दूर है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो तथ्य और कल्पना के बीच महीन सी लकीर है जिसे समझना जरूरी है.  

जहां परिवार और समाज की बात आती है तो कुछ अनुभव भी साझा किए जाने लगते हैं। मसलन मांओं को कहा जाता है सादा खाओ, व्यायाम से बिलकुल दूर रहो, बच्चे को दूध पिलाना तो बहुत आसान काम है और भी बहुत कुछ. लेकिन आखिर महिला रोग विशेषज्ञ और डब्ल्यूएचओ क्या सोचता है? क्या इसमें सत्यता है या कोरी कल्पना को आधार बनाकर हम आगे बढ़ रहे हैं. आईएएनएस ने इस बारे में बात की सीके बिड़ला अस्पताल के प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग की प्रमुख सलाहकार डॉ तृप्ति रहेजा से.

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कई महिलाओं को फिगर की सबसे ज्यादा फिक्र होती है तो क्या वाकई डील डौल पर असर पड़ता है? 

डॉ कहती हैं ऐसा बिलकुल नहीं है. शारीरिक बदलाव उम्र की वजह से आते हैं. बदलाव आनुवांशिकी (जेनेटिक्स), और हार्मोनल परिवर्तनों की वजह से आते हैं. इसका ब्रेस्ट फीडिंग से कोई मतलब नहीं.

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दूसरा मिथक वो है जो दादी नानी के जमाने से चला आ रहा है. आमतौर पर लोग सोचते हैं कि स्तनपान आसान काम है. डब्ल्यूएचओ का मानना है ये आसान काम नहीं. शुरू में परेशानियां आती हैं. स्तनपान कराने में माताओं और शिशुओं दोनों के लिए समय और अभ्यास की आवश्यकता होती है. स्तनपान कराने में भी समय लगता है, इसलिए माताओं को अपने अपनों की मदद की जरूरत होती है.

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क्या स्तनपान कराने वाली महिलाएं कर सकती हैं व्यायाम-

डॉ रहेजा उस मिथक को भी गलत बताती हैं जो व्यायाम को लेकर है. कहती हैं बिलकुल गलत सोच है कि लैक्टेटिंग मदर को एक्सरसाइज नहीं करना चाहिए. विश्व स्वास्थ्य संगठन भी यही मानता है. कहता है कि इसके कोई प्रमाण नहीं मिले हैं कि व्यायाम करने वाली मांओं के दूध की क्वालिटी पर असर पड़ता है.

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स्तनपान कराने वाली महिलाएं कैसी रखें अपनी डाइट-

क्या स्तनपान के लिए एक सख्त दिनचर्या का पालन करना आवश्यक है? जैसे ये खाना वो न खाना, या आप कॉफी नहीं पी सकते. इस पर एक्सपर्ट कहती हैं नहीं ये भी सच से कोसों दूर वाली बात है. बच्चे की मांग के अनुसार स्तनपान कराना सबसे अच्छा है, सख्त दिनचर्या की आवश्यकता नहीं है. हर किसी की तरह, स्तनपान कराने वाली माताओं को भी बैलेंस डाइट की आवश्यकता होती है. सामान्य तौर पर, खाने की आदतों को बदलने की कोई ज़रूरत नहीं है. बच्चे गर्भ में रहने के समय से ही अपनी मां की खाने की पसंद से परिचित होते हैं. 

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अब सबसे कॉमन या आम से भ्रम की बात! कहा जाता है कि मांओं को बच्चे की जरूरत के हिसाब से दूध नहीं होता इसलिए वो बाहर का आहार यानि पाउडर वाले दूध से उसका पेट भर सकती है. सच्चाई इससे बिलकुल इतर है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट दावा करती है कि लगभग सभी माताएं अपने बच्चों के लिए सही मात्रा में दूध बनाती हैं. स्तन दूध का उत्पादन इस बात से निर्धारित होता है कि बच्चा स्तन से कितनी अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है.

स्तनपान से जुड़े और भी कई मिथक हैं और इन मिथकों का खंडन जरूरी है. उन मांओं के लिए जो फीड करा रही हैं और वो भी जो भविष्य में अपनी जिम्मेदारी निभाने वाली हैं. लोगों का साथ मिले और कोरी कल्पना के आधार पर महिलाएं भ्रमजाल में न फंस जाएं. तथ्यों को समझने से माताओं को अपनी सेहत और अपने बच्चे की भलाई के लिए सबसे अच्छा विकल्प चुनने में मदद मिल सकती है.

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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