Crying Over Small Things Reasons: अगर आप छोटी-छोटी बातों पर जल्दी इमोशनल हो जाते हैं और रो पड़ते हैं, तो हो सकता है कि आपने खुद को कमजोर समझा हो. लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है. जल्दी रोने का मतलब यह नहीं कि आप कमज़ोर हैं, बल्कि इसके पीछे कई साइकोलॉजिकल और बायोलॉजिकल फैक्टर्स काम करते हैं. कुछ लोगों की इमोशनल सेंसिटिविटी दूसरों के मुकाबले ज्यादा होती है, जिससे वे जल्दी रोते हैं. आइए जानते हैं कि इसके पीछे कौन-कौन से कारण हो सकते हैं.
छोटी छोटी बातों पर रोना क्यों आता है? (Why Do Some People Cry So Easily?)
ब्रेन स्ट्रक्चर का असर : हमारे इमोशन्स को कंट्रोल करने में ब्रेन का एक हिस्सा, जिसे Limbic System कहते हैं, अहम रोल निभाता है. अगर यह ज्यादा एक्टिव होता है, तो इंसान छोटी-छोटी बातों पर भी इमोशनल हो जाता है. ऐसा लोगों का इमोशनल थ्रेशोल्ड यानी भावनाओं को सहने की क्षमता कम होती है, जिससे वे जल्दी रोने लगते हैं.
पर्सनैलिटी का फर्क : हर इंसान की पर्सनैलिटी अलग होती है. Highly Sensitive People (HSPs) यानी जो लोग ज्यादा संवेदनशील होते हैं, वे आमतौर पर गहरी सोच रखते हैं और हर चीज को इमोशनली ज्यादा महसूस करते हैं. ऐसे लोग दूसरों के मुकाबले जल्दी रो सकते हैं. हालांकि, यह सेंसिटिविटी उन्हें ज्यादा क्रिएटिव और इम्पैथेटिक भी बनाती है.
बचपन के अनुभव : बचपन में अगर इमोशन्स को खुलकर एक्सप्रेस करने का माहौल मिला हो, तो इंसान बड़े होकर भी इमोशनल एक्सप्रेशन को नॉर्मल तरीके से अपनाता है. वहीं, जिनका बचपन ऐसे माहौल में बीता हो जहां रोना कमजोरी माना जाता था, वे या तो ज्यादा इमोशनल हो जाते हैं या फिर अपनी फीलिंग्स को दबाने लगते हैं.
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सोसाइटी का असर : समाज में रोने को लेकर अलग-अलग धारणाएं हैं. महिलाओं को आमतौर पर इमोशनल और सेंसिटिव माना जाता है, जबकि पुरुषों को रोने से बचने के लिए कहा जाता है. इसका असर यह होता है कि कुछ लोग अपनी इमोशन्स को दबाने लगते हैं, तो कुछ लोग किसी भी परिस्थिति में जल्दी इमोशनल हो जाते हैं.
मेंटल हेल्थ कंडीशंस : कई बार बार-बार रोने के पीछे मेंटल हेल्थ इश्यूज भी हो सकते हैं. Anxiety और Depression जैसी कंडीशंस में इमोशन्स ज्यादा तेज हो जाते हैं, जिससे किसी छोटी बात पर भी रोना आ सकता है. Anxiety के कुछ आम लक्षणों में चिंता, चिड़चिड़ापन, फोकस करने में दिक्कत और थकान शामिल हैं. वहीं, Depression में एनर्जी की कमी, नींद और भूख में बदलाव, खालीपन महसूस होना और काम में दिलचस्पी कम हो जाना जैसे लक्षण दिख सकते हैं.
हार्मोनल बदलाव : हार्मोन का सीधा असर इमोशन्स पर पड़ता है. Prolactin नामक हार्मोन इमोशनल रिएक्शन को प्रभावित करता है. यह हार्मोन महिलाओं और पुरुषों दोनों में पाया जाता है, लेकिन महिलाओं में यह ज्यादा मात्रा में होता है, इसलिए वे भावनात्मक रूप से ज्यादा ओपन होती हैं. इसके अलावा, पीरियड्स, प्रेग्नेंसी और हार्मोनल पिल्स लेने के कारण भी इमोशनल सेंसिटिविटी बढ़ सकती है.
स्ट्रेस और नींद की कमी : अगर लगातार स्ट्रेस बना रहता है या नींद पूरी नहीं होती, तो इमोशनल कंट्रोल कमजोर पड़ जाता है. रिसर्च के मुताबिक, Sleep Deprivation ब्रेन की एक्टिविटी को प्रभावित करता है, जिससे इंसान छोटी-छोटी बातों पर ज्यादा इमोशनल हो जाता है.
क्या जरूरत से ज्यादा रोना कोई समस्या है?
अगर रोना आपकी लाइफ को प्रभावित कर रहा है और डेली रूटीन में दिक्कतें पैदा कर रहा है, तो यह इमोशनल हेल्थ से जुड़ा इश्यू हो सकता है. अगर बार-बार बिना किसी ठोस कारण के रोने का मन करता है, चीजों से इंटरेस्ट खत्म हो रहा है या मूड हमेशा डाउन रहता है, तो किसी एक्सपर्ट से सलाह लेना बेहतर रहेगा.
रोना कमजोरी नहीं, बल्कि एक नेचुरल इमोशनल रेस्पॉन्स है
अगर आप दूसरों के मुकाबले जल्दी रो पड़ते हैं, तो यह आपकी कमजोरी नहीं, बल्कि एक नेचुरल इमोशनल रेस्पॉन्स है. यह आपके ब्रेन, पर्सनैलिटी, बचपन के एक्सपीरियंस, सोसाइटी, हॉर्मोन्स और स्ट्रेस लेवल जैसी कई चीजों पर निर्भर करता है. इसे रोकने की कोशिश करने के बजाय इसे समझना ज्यादा जरूरी है. अगर जरूरत महसूस हो, तो प्रोफेशनल हेल्प लेना भी एक अच्छा ऑप्शन हो सकता है.
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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)