क्या है पार्किंसन बीमारी? क्यों लग जाता है ये कांपते वाला रोग, जान लीजिए कारण, लक्षण और इलाज का तरीका

Parkinson Disease: पार्किंसन के केस ज्यादातर 50 से 60 साल की उम्र के बाद के होते हैं, लेकिन फैमिली हिस्ट्री या किसी अन्य कारण से कम उम्र के लोग भी इसका शिकार हो सकते हैं.

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Parkinson's Disease: पार्किंसन की बीमारी एक किस्म का ब्रेन डिसऑर्डर है, जिसमें लोगों का अपने हाथ पैर और शरीर के अन्य हिस्सों के मूवमेंट पर कंट्रोल नहीं रहता. हाथ पैरों में कंपन, स्टिफनेस और कभी कभी बैलेंस बनाने में दिक्कत होने लगती है. ये एक किस्म की प्रोग्रेसिव बीमारी है. जो समय के साथ साथ बढ़ती जाती है और मरीज की हालत गंभीर होती जाती है, जिसके तहत पीड़ितों को चलने फिरने में और बात करने तक में मुश्किल होती है. वैसे तो ये बीमारी किसी को भी अपनी चपेट में ले सकती हैं, लेकिन ऐसी कुछ स्टडीज हुई हैं जो दावा करती हैं कि महिलाओं के मुकाबले ये बीमारी पुरुषों को ज्यादा होती है. पार्किंसन के केस ज्यादातर 50 से 60 साल की उम्र के बाद के होते हैं, लेकिन फैमिली हिस्ट्री या किसी अन्य कारण से कम उम्र के लोग भी इसका शिकार हो सकते हैं.

पार्किंसन के कारण, लक्षण और इलाज | Causes, Symptoms And Treatment of Parkinson's

पार्किंसन का कारण (Causes of Parkinson's)

इस बीमारी में बेसल गैन्ग्लिया में मौजूद नर्व सेल डैमेज हो जाते हैं या मर जाते हैं. बेसल गैन्ग्लिया ब्रेन के उस पार्ट को कहते हैं जो शरीर के मूवमेंट को कंट्रोल करता है. इसी पार्ट के नर्व सेल्स और न्यूरोन्स डोपामाइन नाम का कैमिकल बनाते है. जिनके डैमेज होने पर डोपामाइन कम बनता है. हालांकि ये अब भी रिसर्च का विषय है कि इस हिस्से के न्यूरॉन्स क्यों खत्म हो जाते हैं.

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पार्किंसन के कुछ केसेज में हेरिडिटी को भी एक कारण माना गया और कुछ केसेर स्पेसिफिक जेनेटिक वेरिएंट्स की वजह से दिखाई दिए. इसके बाद ये भी माना गया कि पार्किंसन की वजह जैनेटिक्स भी हो सकती है, लेकिन एक ही फैमिली में पीढ़ी दर पीढ़ी पार्किनस हो ही ये भी जरूरी नहीं है, जिसके बाद कुछ रिसर्च में ये मान लिया गया कि जैनेटिक्स, एंनवायरमेंटल फैक्ट्स और कुछ टॉक्सिन्स के मिले जुले असर से पार्किंसन हो सकता है.

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पार्किंसन के लक्षण (Symptoms of Parkinson's)

  • हाथ, पैर, जबड़े और सिर में झटके आना.
  • मसल्स में इस तरह से जकड़न आना कि वो मसल बहुत देर के लिए कॉन्ट्रेक्टेड लगने लगे.
  • शरीर के काम करने की स्पीड धीमी होते जाना.
  • अंगों का बैलेंस और कॉर्डिनेशन खत्म होना, जिसकी वजह से कई बार पीड़ित गिर भी सकता है.

कुछ और लक्षणों की बात करें तो...

डिप्रेशन, खाना खाने, चबाने और बात करने में दिक्कत होना, यूरिनरी प्रॉब्लम, कॉन्सटिपेशन के अलावा स्किन प्रॉबलम्स भी हो सकती हैं. इस बीमारी के लक्षणों की शुरुआत आमतौर पर शरीर के एक तरफ के हिस्से से होती है और, फिर धीरे धीरे असर बढ़ता जाता है. कुछ लोगों को सोने में दिक्कत होती है. स्मेल आना बंद होना और पैरों का लगातार रेस्टलेस महसूस करना भी पार्किंसन होने का संकेत हो सकता है.

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पार्किंसन बीमार को कैसे पहचानें?

बीमारी के गंभीर होने के बावजूद अब तक कोई ब्लड टेस्ट या लेबोरेटरी टेस्ट ऐसा नहीं है जो पार्किंसन को डायग्नोज कर सके. डॉक्टर्स इस केस में कुछ न्यूरोलॉजिकल एग्जामिनेशन करके ये तय करते हैं कि वो पार्किंसन के शिकार हैं. पेशेंट की मेडिकल हिस्ट्री से भी अंदाजा लगाया जाता है. अगर तयशुदा दवाओं से किसी की हालत में सुधार होता है तो भी ये मान लिया जाता है कि व्यक्ति पार्किंसन का शिकार है.

पार्किंसन बीमारी का इलाज (Treatment of Parkinson's)

पार्किंसन बीमारी के ट्रीटमेंट के लिए कोई स्पेसिफिक मेडिसिन या सर्जिकल ट्रीटमेंट नहीं है. कुछ थेरेपीज और बीमारी के जरिए इस बीमारी में पेशेंट को रिलीफ देने की कोशिश की जाती है.

अक्सर डॉक्टर ऐसी दवाएं देते हैं जो ब्रेन में डोपामाइन के लेवल को बढ़ाएं. इसके अलावा कुछ थेरेपीज दीद जाती हैं जो काफी हद तक मूवमेंट को कंट्रोल करने में मदद कर सकें.

(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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