Acute Ischemic Stroke क्या है? जानें उपचार में गोल्डन आवर का महत्त्व और इलाज के तरीके

Acute Ischemic Stroke: एक्यूट इस्केमिक स्ट्रोक एक ऐसी स्थिती होती है जिस स्थिती में मस्तिष्क में खून का बहाव कम होने लगता है और इस के चलते मस्तिष्क की नसों को ऑक्सिजन नहीं मिल पाता.

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Acute Ischemic Stroke Treatment: एक्यूट इस्केमिक स्ट्रोक एक ऐसी स्थिती होती है जिस स्थिती में मस्तिष्क में खून का बहाव कम होने लगता है और इस के चलते मस्तिष्क की नसों को ऑक्सिजन नहीं मिल पाता. अगर ऐसी स्थिती में उपचार नहीं मिलता है तो मस्तिष्क की नसें गतीशीलता से मरनें लगती है और लकवा होता है. लकवे के दुनियाभर में सालाना 13 मिलियन मरीज है और इन में से 4.4 मिलियन लोगों की मृत्यू होती है. इसमें और एक चीज यह है की इन में से 80 प्रतिशत मरीजों को अगर समय पर इलाज मिलता तो वे बच सकते थे. ब्रेन इस्केमिया एक वैद्यकीय इमर्जेन्सी है और उस पर लक्षण दिखाई देने के डेढ़ घंटे से लेकर 6 घंटों में उपचार होना चाहिए, इसलिए इसे गोल्डन आवर कहते हैं जिस से मृत्यू या अपाहिज होने से बचा जा सकता है. लक्षण शुरू होने के बाद एक एक मिनट भी महत्त्वपूर्ण होता है.

एक्यूट ब्रेन इस्केमिया/इस्केमिक स्ट्रोक के एडमिनिस्ट्रेशन में समय का व्यवस्थापन काफी महत्त्वपूर्ण होता है. अगर रिपर्फ्युजन थेरपी में अगर 1 मिनट की देर हो जाती है तो इस्केमिक स्ट्रोक में एक बड़ी आर्टरी को नुकसान पहुचता है और इस के चलते 2 मिलियन नसों की मौत होने लगती है. इनके अलावा मेलिनेटेड फाइबर के 7.9 मील और हर मिनट 14 बिलियन सिनॅपसेस भी नष्ट होते है. अगर उपचार ना मिले तो साधारण नुकसान की तुलना में होनेवांला नुकसान 3.6 साल प्रति मिनट इतना घातक होता है.

जल्द उपचार मिलने से होने वाले लाभ

अगर समय पर जल्द उपचार मिलता है तो  शुरूआत में खून की गुत्थी तोडने वाली दवाईयां (थ्रॉम्बॉईसिस) देकर एक्युट इस्केमिक स्ट्रोक पर नियंत्रण प्राप्त किया जाता है और मस्तिष्क को खून मिलने की कोशिश की जाती है, जिससे दीर्घकालीन समस्या और मृत्यू से बचा जा सकें. उदाहरण के तौर पर देखा जाए तो एक अभ्यास के मुताबिक अगर मरीज को पहलें 60 मिनटों में उपचार प्राप्त होते है तो उन्हें दिव्यांग होने से बचाना अधिक आसान होता है और उन्हें बचाना मुश्किल होता है जिन्हें गोल्डन आवर के बाद उपचार प्राप्त होते है.

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किन कारणों से होती है उपचार में देरी

इस्केमिक स्ट्रोक की स्थिती में उपचार में देर होने का प्रमुख कारण यह है की अस्पताल में पहुचनें में होने वाली देर. इस्केमिया के लक्षणों को मरीज या उसका केअरटेकर पहचान ही नहीं पाता और गोल्डन आवर में उसे अस्पताल में नहीं पहुंचा पाता इसी के कारण यह देर होती है. वॉर्निंग साइन या लकवे के लक्षण जैसे बैलन्स खो देना, देखने में तकलीफ, हाथ न उठा पाना और बात करने में तकलीफ होते हैं.

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यह भी महत्त्वपूर्ण है की अस्पताल के इमजेंसी विभाग में भी निदान करने वाली टिम के पास उपचारों की सुविधा हो या उन्हें उस सुविधा को जल्द से जल्द प्राप्त करनें की सुविधा हो. उपचार विशेष रूप से टिश्यु प्लास्मिनोजेन एक्टिवेटर को अस्पताल में हर दम उपलब्ध होना जरूरी है, ऐसे अस्पतालों को स्ट्रोक रेडी अस्पताल भी कहा जाता है. गुत्थी को निकालने हेतु एन्डोवस्कूलर थ्रॉम्बोक्टॉमी की सुविधा भी उपलब्ध होनी चाहिए.

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जल्द उपचार प्राप्त करने के तरीके

अभ्यास से यह शाबित हो चुका है की भारत में इस्केमिक स्ट्रोक मैनेजमेंट के 18.3 प्रतिशत मरिजों को पहलें 60 मिनटों में उपचार प्राप्त होते हैं. इस से यह पता चलता है की हमें डोअर टू रिपर्फ्युजन टाइम को कम करने की जरूरत है. कई प्रकार के जल्द उपचार उपलब्ध है. उनमें से कुछ नीचे दिए गए है -

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इमरजेंसी के बारे में सूचना

लकवा कितना घातक है उसके अनुसार आप जल्द ही पहुचें और साधारण तौर पर नीजी वाहन की तुलना में एम्बुलेंस से यात्रा करें. एम्बुलेंस में उपस्थित वैद्यकीय कर्मचारियों के साथ अस्पताल में उपस्थित टीम जल्द उपचार कराने में काफी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है. इस लिए अस्पताल में पहुचने से पहलें उन्हें जानकारी देना जरूरी है. 

रैपिड ट्राइएज प्रोटोकॉल

अस्पताल में रैपिड ट्राइएज और उपचार शुरू करने के लिए आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध होनी चाहिए. वैद्यकीय तथा सहयोगी कर्मचारीयों को मरीज की  बिमारी के अनुसार काम करने का प्रशिक्षण प्राप्त होना जरूरी है. इस से स्ट्रोक का निदान हो सके और उपचार कम से कम समय में प्राप्त हो सकें.

सिंगल कॉल एक्टिवेशन सिस्टम

विविध क्षेत्रों के जानकारों की टीम अस्पताल में उपचारों के लिए तैय्यार होनी चाहिए. एक ही कॉल पर पूरी टिम तैयार होने की जरूरत होती है. सिंगल कॉल एक्टिवेशन सिस्टम से पूरी टिम को स्ट्रोक प्रोटोकॉल के बारें में जानकारी दी जानी चाहिए. 

गतिशीलता से निदान की सुविधा

अस्पताल में गतिशीलता से निदान करने की सुविधा होनी आवश्यक है जिससे आपातकाल में समय बच सकें. स्ट्रोक में कई बार मरीज के आनें के 24 मिनट के अंदर सीटी स्कैन करना जरूरी होता है. डॉक्टरों  ने मरीज के अस्पताल में आनें के 84 मिनटों में सीटी स्कैन करना जरूरी होता है. स्कैनिंग करते समय इंटरएक्रेनियल हैमरेज की शक्यता के अनुसार करनी होगी. लेबोरेटरी टेस्ट के रिजल्ट्स भी जल्द से जल्द उपलब्ध कराने की जरूरत होती है.

सहयोगी दृष्टिकोण

स्ट्रोक टीम द्वारा रिजल्ट के अनुसार उनका अभ्यास करते हुए मरीज पर टीम के माध्यम से उपचार करना जरूरत है. इनके अलावा टीम ने कुछ अंतराल में अस्पताल की प्रक्रिया, उपचारों की गुणवत्ता तथा मरीज की बिमारी के अनुसार उपचार करना जरूरी है. टिम में इमरजेंसी फिजिशिअन, न्युरोलॉजिस्ट,  इंटरनवेन्शनल रेडिओलॉजिस्ट्स,  कार्डिओलॉजिस्ट, लैबोरेटरी तंत्रज्ञ, नर्सेस और पैरामेडिकल कर्मचारीयों को भी स्ट्रोक का व्यवस्थापन करने का प्रशिक्षण दिया जाना आवश्यक है. 

लगातार देखभाल

अस्पताल में मरीज की समुची देखभाल होना जरूरी है. अस्पताल और टीम ने यह समय कम करने हेतु सुधार के क्षेत्र ढूंढना आवश्यक है. स्ट्रोक मरीज मैनेजमेंट टूल्स जैसे कई टूल्स है जिनके माध्यम से टीम को कितना समय लगेगा, देरी के कारण, नए टार्गेट्स बना कर उनके साथ गुणवत्ता में सुधार को ढूंढना जरूरी है. 

अस्पताल में उपस्थित फिजिशियन्स की टीम को एक्युट स्ट्रोक मैनेजमेंट का प्रशिक्षण देना आवश्यक है तथा वहां उपस्थित न्यूरोलॉजिस्ट को स्ट्रोक को पहचानते हुए उन्हें प्राथमिकता देनी चाहिए. वे मरीज के ब्रेन सीटी स्कैन का टेस्ट करते हुए इंट्राक्रेनल ब्लीड या हैमरेजिक स्ट्रोक की शक्यता को नकारते हुए मरीज को थ्रॉम्बोलाईज करते है. अगर मस्तिष्क की बड़ी खून की नली में तकलीफ है तो इंटरवेंशनल रेडिओलॉ‍जिस्ट/इंटरवेन्शनिस्ट उस गुत्थी को एन्डोवस्कूलर थ्रॉम्बोक्टोमी प्रक्रिया करते हुए निकालकर खून का बहना सुनिश्चित करते हुए खतरा कम करने हेतु आकार को फूलने से बचा कर उपचार करते है. इस एक्यूट स्ट्रोक मैनेजमेंट के कारण की जीवन बच गए है. हमारे पास स्ट्रोक के जो मरीज गोल्डन आवर में आते हैं उन्हें अच्छे उपचार मिलने के साथ ही प्री स्ट्रोक लेवल का जीवन प्राप्त करने के लिए काम किया जाता है. इसलिए एक घंटे में स्ट्रोक के मरीज की जांच होती है तो उस हिसाब से उनकी जिंदगी बच सकती है  और उनकी जिंदगी खुशहाल हो सकती है.

स्ट्रोक के लक्षणों के बारे में लोगों मे जागरूकता निर्माण करने की जरूरत है, जिससे वे लक्षणों को जानकर तुरंत मरीज को गोल्डन आवर में स्ट्रोक रेडी अस्पताल में ले जा सकें. अस्पतालों ने भी डोअर-टू निडल टाइम को कम करते हुए मरीज पर उपचार करते हुए उपचारों में देरी नहीं करनी चाहिए.

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(डॉ. संतोष एन एस, कन्सल्टेंट - न्यूरोलॉजी, मणिपाल हॉस्पिटल्स, व्हाइटफिल्ड)

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