Force-feeding Risks for Infants: सर गंगा राम अस्पताल के एक नए अध्ययन से पता चलता है कि दूध छुड़ाने के दौरान शिशुओं को दाल से बनी चीजें जबरन खिलाने से हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस (एचपी) हो सकता है, जो निमोनिया जैसी एक दुर्लभ फेफड़ों की बीमारी है. शोध में एग्रेसिव बिहेवियर के खतरों के बारे में भी बताता है. नए शोध के अनुसार, दूध छुड़ाने के दौरान दाल जैसे मसूर की दाल से बने फूड्स जबरदस्ती खिलाने से शिशुओं में दुर्लभ लेकिन गंभीर फेफड़ों की बीमारी हो सकती है, जिसे हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस (एचपी) के रूप में जाना जाता है. इस बीमारी के लक्षण निमोनिया जैसे होते हैं और इसके डायग्नोस और इलाज के लिए एक अलग दृष्टिकोण की जरूरत होती है.
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डॉक्टरों ने किया 13 महीने का एक अध्ययन
सर गंगा राम अस्पताल के डॉक्टरों ने 13 महीने का एक अध्ययन किया, जिसे जर्नल ऑफ पीडियाट्रिक रेस्पिरोलॉजी एंड क्रिटिकल केयर में प्रकाशित किया गया, जो भारतीय बाल मेडिकल हेल्थ सर्विस में कुछ वीनिंग प्रथाओं के बारे में बढ़ती चिंताओं को रेखांकित करता है. शोध में देखभाल करने वालों और मेडिकल प्रोफेशनल्स को प्रोपर वीनिंग टेक्नीक और उनसे जुड़े जोखिमों के बारे में शिक्षित करने के महत्व पर जोर दिया गया है. अध्ययन के लेखकों ने चेतावनी दी, "माता-पिता को पता होना चाहिए कि बच्चे को खाने के लिए मजबूर करने जैसी सरल क्रिया के गंभीर परिणाम हो सकते हैं."
स्टडी में तीन साल से कम आयु के शिशुओं की जांच
अध्ययन में तीन साल से कम आयु के शिशुओं के 9 मामलों की जांच की गई, जिनमें से ज्यादातर लड़के थे, जिनमें लगातार श्वसन संबंधी लक्षण दिखाई दिए, खांसी, सांस लेने में कठिनाई और बुखार जैसी दिक्कतें थी. सभी में वीनिंग के दौरान दाल-बेस्ड फूड्स को जबरन खिलाने का इतिहास था. एचपी फेफड़ों में एक एलर्जी प्रतिक्रिया है जो बार-बार सांस लेने या महीन कणों की आकांक्षा के कारण होती है. इन मामलों में, दाल के कण आक्रामक भोजन के कारण शिशुओं के वायुमार्ग में प्रवेश करते हैं, जिससे इम्यून रिएक्शन और फेफड़ों की सूजन शुरू हो जाती है.
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यह स्थिति सामान्य फूड एलर्जी से अलग होती है. प्रभावित बच्चों में लैब टेस्ट ने दाल-विशिष्ट IgG एंटीबॉडी के हाई लेवल को दिखाया. चेस्ट सीटी स्कैन ने लगातार फेफड़ों की अपारदर्शिता का पता लगाया, जो शुरू में पुराने संक्रमण जैसा था. तपेदिक और फंगल कारणों को खारिज करने के बाद, बीमारी की एलर्जी की पुष्टि की गई. सभी शिशुओं में जबरदस्ती खिलाने और मौखिक स्टेरॉयड के साथ इलाज बंद करने के बाद सुधार हुआ. सर गंगा राम अस्पताल के बाल स्वास्थ्य संस्थान की शोध टीम में कई विभागों के विशेषज्ञ शामिल थे.
अध्ययन के सह-लेखक, डॉ. धीरेन गुप्ता, जो बाल रोग विशेषज्ञ के सह-निदेशक हैं, ने बताया कि कैसे बलपूर्वक खिलाने से बार-बार ये दिक्कत हो सकती है, खासतौर से अविकसित निगलने की सजगता वाले शिशुओं में.
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