बीमार कर रहा पैकेज्ड फूड, लेकिन कंपनियों के दबाव में नीतियां नहीं बनाते नेता : लैंसेट

लैंसेट की रिपोर्ट बताती है कि UPFs दुनिया के खाने की क्वालिटी को खराब कर रहे हैं. ताजी सब्ज़ियों, दालों और नेचुरल फूड्स की जगह अब नूडल्स, चिप्स, फ्रोजन स्नैक्स, शुगर-लोडेड ड्रिंक्स और फ्लेवर्ड पैकेज्ड सामान ले रहे हैं. इनसे मोटापा, डायबिटीज, दिल की बीमारी, फैटी लीवर और कई क्रॉनिक बीमारियों का खतरा तेजी से बढ़ रहा है.

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लैंसेट जर्नल की हालिया सीरीज ने साफ चेतावनी दी है.

आज हमारी थाली में क्या आ रहा है? घर का ताजा बना खाना या पैकेट में बंद चमचमाता प्रोडक्ट? सच ये है कि दुनिया तेजी से अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स (UPFs) की तरफ खिसक रही है. आसान, स्वादिष्ट और तुरंत खाने लायक यह खाना धीरे-धीरे हमारी आदत बन चुका है. लेकिन, लैंसेट जर्नल की हालिया सीरीज ने साफ चेतावनी दी है, यह बदलाव हमें चुपचाप बीमार बना रहा है. इससे भी बड़ा खतरा यह है कि जिन कंपनियों का फायदा इन चीजों से होता है, वे इतनी ताकतवर हैं कि नेताओं को भी कड़े कानून बनाने से रोक लेती हैं.

लैंसेट की रिपोर्ट बताती है कि UPFs दुनिया के खाने की क्वालिटी को खराब कर रहे हैं. ताजी सब्ज़ियों, दालों और नेचुरल फूड्स की जगह अब नूडल्स, चिप्स, फ्रोजन स्नैक्स, शुगर-लोडेड ड्रिंक्स और फ्लेवर्ड पैकेज्ड सामान ले रहे हैं. इनसे मोटापा, डायबिटीज, दिल की बीमारी, फैटी लीवर और कई क्रॉनिक बीमारियों का खतरा तेजी से बढ़ रहा है.

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UPF को रोकना सिर्फ लोगों की आदत बदलने का सवाल नहीं

रिसर्चर्स का कहना है कि लोगों को समझाना काफी नहीं है. असली कोशिशें वहां होनी चाहिए जहां ये प्रोडक्ट तैयार होते, बेचे जाते और आक्रामक तरीके से मार्केट किए जाते हैं. दुनिया में हेल्दी डाइट को लेकर बने ज़्यादातर नियम अब तक सिर्फ नमक, चीनी और फैट कम करने तक सीमित रहे हैं. लेकिन, असल समस्या इसके पीछे की इंडस्ट्री है, वही इंडस्ट्री जो अरबों डॉलर मार्केटिंग में खर्च करती है और लॉबिंग के जरिए सरकारों को सख्ती करने से रोकती है.

ब्राज़ील के प्रमुख शोधकर्ता कार्लोस मोंटेरो चेताते हैं कि UPF की बढ़ती खपत कोई नेचुरल बदलाव नहीं, बल्कि बड़े कॉर्पोरेशन द्वारा बनाई गई एक रणनीति है. कंपनियां बेहद आकर्षक विज्ञापनों, डिजिटल इन्फ्लुएंसर्स, ऑफर्स और बच्चों को टारगेट करने वाले तरीकों से बाजार पर कब्जा करती हैं. जब किसी देश में नियम कड़े करने की बात आती है, तो यही कंपनियां राजनीतिक दबाव बनाकर ऐसे कानूनों को कमजोर कर देती हैं.

ग्लोबल स्तर पर तंबाकू जैसे एक्शन की ज़रूरत

सिडनी यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों का मानना है कि UPF इंडस्ट्री को चुनौती देना उतना ही -रूरी है जितना कभी तंबाकू कंपनियों को चुनौती देना था. इसके लिए दुनिया भर में मिलकर काम करने की ज़रूरत है-

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  • पॉलिसी को इंडस्ट्री की दखलंदाज़ी से बचाना,
  • छोटे और स्थानीय फूड प्रोड्यूसर्स को समर्थन देना
  • और हेल्दी फूड सिस्टम को मजबूत करना.

समाधान क्या है?

रिसर्च टीम ने कहा कि UPF इंडस्ट्री की ताकत को कम किए बिना स्थिति नहीं बदलेगी. इसके लिए फूड सिस्टम में असली सुधार, पारदर्शी नियम, मजबूत जागरूकता और वैश्विक स्तर पर एकजुट कार्रवाई जरूरी है.

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आखिरकार सवाल यही है-क्या हम अपने खाने की असल कीमत समझ रहे हैं? पैकेट की चमक से बाहर निकलकर सोचने का समय आ गया है, क्योंकि सेहत को नुकसान पहुंचाने वाली इस जंग में नीतियों की सख्ती और जनता की जागरूकता ही असली हथियार हैं.

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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)

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