Premature Heart Aging: कोविड-19 से जुड़ी एक बड़ी स्टडी ने चौंकाने वाले सामने लाए हैं. इस रिसर्च में पाया गया कि कोरोना संक्रमण ने शरीर की आर्टरीज को वक्त से पहले बूढ़ा कर दिया है और इसका असर सबसे ज्यादा महिलाओं पर पड़ा है. अच्छी बात यह है कि कुछ नुकसान वक्त के साथ कम भी हो सकता है. यूरोपियन हार्ट जर्नल में छपे एक एडिटोरियल के मुताबिक कोरोना महामारी ने इंसान की नसों पर ऐसा निशान छोड़ा है जो उम्र बढ़ने जैसा जान पड़ता है और ये असर पूरी तरह रिवर्स नहीं होता. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन ने इसे Post-Acute Covid-19 Syndrome (PACS) बताया है, यानी ऐसे लक्षण जो इंफेक्शन के तीन महीने बाद शुरू हों और कम से कम दो महीने तक बने रहें.
इसमें सबसे खतरनाक असर दिल और ब्लड सर्कुलेशन पर दिखाई दिया. इसमें हार्ट अटैक और ब्लड क्लॉट जैसी समस्याएं देखी गईं. ये सब बातें एंडोथेलियल चोट, सूजन और ब्लड क्लॉटिंग की गड़बड़ी से जुड़ा हो सकता है.
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कार्टेशियन कोहोर्ट का खुलासा
यह स्टडी CARTESIAN नाम के इंटरनेशनल रिसर्च प्रोजेक्ट पर बेस्ड है. इसमें 2390 लोगों को शामिल किया गया, जिनमें 391 कोविड नेगेटिव कंट्रोल ग्रुप थे और बाकी कोविड पॉजिटिव. इन्हें तीन ग्रुप में बांटा गया: वे जिन्हें अस्पताल में भर्ती नहीं करना पड़ा था (Non-hospitalized) (828), वे जो अस्पताल के जनरल वार्ड में भर्ती हुए थे (729) और ICU में भर्ती होने वाले (146).
इंफेक्शन के करीब 6 महीने बाद जांच की गई तो तीनों कोविड पॉजिटिव ग्रुप में आर्टरीज की कठोरता कंट्रोल ग्रुप से ज्यादा मिली. इसे कैरोटिड-फेमोरल पल्स वेव वेग (PWV) से मापा गया जो नसों की उम्र का एक भरोसेमंद पैमाना माना जाता है. कंट्रोल ग्रुप का PWV औसतन 7.53 m/s रहा. इसके मुकाबले नॉन हॉस्पिटलाइज्ड में +0.41 m/s, हॉस्पिटलाइज्ड में +0.37 m/s और ICU ग्रुप में +0.40 m/s ज्यादा रहा.
महिलाओं में ज्यादा खतरा
रिजल्ट्स में सबसे अहम बात सामने आई कि महिलाओं में यह असर ज्यादा दिखा. ICU में भर्ती हुई महिलाओं में तो PWV का औसत +1.09 m/s तक बढ़ गया, जबकि पुरुषों में ऐसा कोई खास फर्क नहीं दिखा. यही नहीं, जिन महिलाओं में छह महीने बाद भी लक्षण बने रहे, उनमें PWV और बढ़ा हुआ मिला (+0.39 m/s). करीब 42 प्रतिशत मरीजों ने छह महीने बाद भी लगातार लक्षणों की शिकायत की.
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12 महीने बाद के नतीजे
स्टडी के 1024 लोगों को 12 महीने तक फॉलो किया गया. इनमें कंट्रोल ग्रुप में PWV सामान्य उम्र के हिसाब से बढ़ता गया, लेकिन कई कोविड सर्वाइवर्स में यह घटता भी दिखा. इसका मतलब है कि नसों की सख्ती का कुछ हिस्सा inflammation और ऑटोनोमिक इंबैलेंस कम होने पर सुधर सकता है. हालांकि कुछ नुकसान स्थायी भी रह सकता है.
यह सवाल भी उठता है कि जब पुरुषों में कोविड से मौत का खतरा ज्यादा था तो महिलाओं में नसों पर असर क्यों दिखा. रिसर्च में हार्मोन जैसे एस्ट्रोजन के असर और सोशल फैक्टर्स को भी देखा गया.
पीडब्ल्यूवी के फर्क छोटे थे, लेकिन फिर भी अहम माने गए क्योंकि ये हार्ड आउटकम्स और लंबे समय के लक्षणों से जुड़ सकते हैं. कोविड के दौरान इंफ्लेमेशन और क्लॉटिंग बढ़ाने वाले IL-1, IL-6, TNF और MCP-1 जैसे मार्कर्स आर्टरीज को नुकसान पहुंचा सकते हैं.
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क्लिनिकल और रिसर्च इम्पैक्ट
स्टडी के नतीजे साफ इशारा करते हैं कि PACS वाले मरीजों में हार्ट हेल्थ पर खास ध्यान देने की जरूरत है. महिलाओं में अगर लक्षण बने रहें तो उन्हें ज्यादा फॉलो-अप और केयर की जरूरत होगी. रिसर्च के स्तर पर आगे PWV को एक भरोसेमंद बायो मार्कर्स मानने, महिलाओं और पुरुषों में फर्क समझने और इलाज के नए रास्ते खोजने की जरूरत है.
अब असली चुनौती है ऐसे रास्ते खोजना जिनसे इस नुकसान को रोका जा सके और जो लोग पहले से प्रभावित हैं उन्हें लंबे समय की हार्ट प्रॉब्लम से बचाया जा सके.
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(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)