How Negative Opinions Affect Mental Health: आपने अपने आसपास कई बार यह देखा होगा कोई बच्चा पढ़ाई में अच्छा नहीं कर पा रहा, कोई कर्मचारी अपने काम में पीछे रह जाता है या कोई युवा बार-बार मौके मिलने के बावजूद आगे नहीं बढ़ पाता. जब वजह पूछी जाती है, तो अक्सर एक बात सामने आती है मुझसे नहीं होगा या लोगों को मुझसे उम्मीद ही नहीं है. यही सोच धीरे-धीरे इंसान के आत्मविश्वास को कमजोर कर देती है. मनोविज्ञान में इसी स्थिति को गोलेम इफेक्ट (Golem Effect) कहा जाता है.
यह कोई अचानक होने वाली मानसिक बीमारी नहीं है, बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी में धीरे-धीरे बनने वाला असर है. जब किसी इंसान को बार-बार यह महसूस कराया जाए कि वह काबिल नहीं है, कमजोर है या उससे ज्यादा उम्मीद नहीं की जा सकती, तो वह खुद भी वही मानने लगता है. नतीजा यह होता है कि उसकी परफॉर्मेंस सच में गिरने लगती है. यानी लोगों की नकारात्मक उम्मीदें, धीरे-धीरे उसकी हकीकत बन जाती हैं.
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गोलेम इफेक्ट क्या है? (What is Golem Effect)
गोलेम इफेक्ट का सीधा-सा मतलब है, कम उम्मीदें, कमजोर नतीजे. जब किसी व्यक्ति के बारे में यह धारणा बना ली जाती है कि वह अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाएगा, तो उसके साथ व्यवहार भी वैसा ही होने लगता है. उसे कम मौके मिलते हैं, कम सराहना मिलती है और छोटी-छोटी गलतियों पर ज्यादा टोका जाता है. धीरे-धीरे वह व्यक्ति खुद को उसी नजर से देखने लगता है.
यह असर पढ़ाई, नौकरी, खेल, रिश्तों और यहां तक कि पैसों से जुड़े फैसलों में भी दिखता है. इंसान खुद पर भरोसा खो देता है और अपनी क्षमता से कम पर ही रुक जाता है.
गोलेम इफ़ेक्ट कैसे काम करता है? (How Golem Effect Works)
गोलेम इफेक्ट एक दिन में नहीं बनता. यह छोटे-छोटे अनुभवों से शुरू होता है:
1. बार-बार नेगेटिव फीडबैक मिलना: जैसे तुमसे ये नहीं होगा, तुम एवरेज हो, तुम दूसरों जैसे नहीं हो.
2. कम मौके मिलना: जब किसी से उम्मीद कम होती है, तो उसे जिम्मेदारियां भी कम दी जाती हैं.
3. आत्मविश्वास में गिरावट: इंसान खुद पर शक करने लगता है और कोशिश करना कम कर देता है.
4. परफॉर्मेंस गिरना: कम प्रयास और डर की वजह से नतीजे भी कमजोर हो जाते हैं.
5. नकारात्मक धारणा और मजबूत होना: लोग कहते हैं देखा, हमने पहले ही कहा था और यह चक्र चलता रहता है.
बच्चों और स्टूडेंट्स पर गोलेम इफेक्ट का असर:
बच्चों पर गोलेम इफेक्ट सबसे ज्यादा असर डालता है, क्योंकि उनका आत्मविश्वास अभी बन ही रहा होता है. अगर टीचर, माता-पिता या रिश्तेदार बार-बार यह कहें कि बच्चा कमजोर है या उससे ज्यादा उम्मीद नहीं है, तो बच्चा वही मान लेता है:
- वह सवाल पूछने से डरता है.
- नई चीजें सीखने से कतराता है.
- फेल होने का डर हावी रहता है.
धीरे-धीरे उसकी क्षमता होते हुए भी परफॉर्मेंस कमजोर रह जाती है.
वर्कप्लेस में गोलेम इफेक्ट कैसे दिखता है?
ऑफिस में अगर बॉस या सीनियर किसी कर्मचारी को लो परफॉर्मर मान लेते हैं, तो उसे कम चैलेंजिंग काम दिए जाते हैं, ट्रेनिंग और प्रमोशन के मौके कम मिलते हैं, उसकी गलतियों पर ज्यादा ध्यान जाता है.
नतीजा यह कि कर्मचारी खुद को महत्वहीन समझने लगता है और उसका आउटपुट सच में गिर जाता है.
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सोच कैसे असर डालती है? (How Does Thinking Affect?)
हम जैसा अपने बारे में सोचते हैं, वैसा ही व्यवहार करते हैं. जब मन में यह बैठ जाए कि मुझसे नहीं होगा, तो दिमाग पूरी ताकत से कोशिश ही नहीं करता. इंसान अपने कम्फर्ट जोन में सिमट जाता है.
इसके साथ-साथ आसपास के लोग भी हमारी कमजोरियों पर ज्यादा फोकस करने लगते हैं. इससे हमारी नकारात्मक सोच और पक्की हो जाती है और वही हमारी पहचान बन जाती है.
गोलेम इफेक्ट से बाहर कैसे निकलें? | How to break free from the Golem effect?
अच्छी बात यह है कि गोलेम इफेक्ट को बदला जा सकता है. इसके लिए कुछ छोटे लेकिन असरदार कदम जरूरी हैं:
1. नेगेटिव लेबल को पहचानें: अगर कोई आपको बार-बार कमजोर कहता है, तो समझिए कि यह राय है, सच्चाई नहीं.
2. अपनी छोटी सफलताओं पर ध्यान दें: हर दिन की छोटी-छोटी जीतें आत्मविश्वास को दोबारा मजबूत करती हैं.
3. खुद से बात बदलें: मुझसे नहीं होगा, की जगह कहें "मैं सीख सकता हूं."
4. सही माहौल चुनें: ऐसे लोगों के साथ रहें जो आपको आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करें.
5. तुलना से बचें: हर इंसान की ग्रोथ अलग होती है. अपनी प्रगति को ही अपना पैमाना बनाएं.
गोलेम इफेक्ट हमें यह सिखाता है कि दूसरों की सोच हमारी जिंदगी पर कितना गहरा असर डाल सकती है. अगर हमें बार-बार कमजोर बताया जाए, तो हम सच में कमजोर महसूस करने लगते हैं. लेकिन, जैसे नकारात्मक उम्मीदें हमें नीचे खींच सकती हैं, वैसे ही सकारात्मक सोच हमें ऊपर भी उठा सकती है.
(अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.)














